हिंदी माध्यम नोट्स
प्रथम लोकसभा अध्यक्ष जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया , पहले स्पीकर जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
प्रथम लोकसभा अध्यक्ष जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया , पहले स्पीकर जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ?
उत्तर : जी.वी. मावलंकर (श्री गणेश वासुदेव मावलंकर) प्रथम लोकसभा अध्यक्ष थे जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था |
प्रथम प्रभुसत्ता संपन्न विधानमंडल
गवर्नर-जनरल द्वारा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसरण में, संविधान सभा द्वारा अन्य उपबंध किए जाने तक, भारत सरकार अधिनियम, 1935 को डौमीनियन का अस्थायी संविधान बनाने के लिए उसमें रूपभेद किया गया और उसे अनुकूल बनाया गया । गवर्नर-जनरल की “उसके कृत्यों के निर्वहन में‘‘ ‘‘सहायता करने तथा मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद बनी । गवर्नर-जनरल की विधायी शक्तियां समाप्त कर दी गईं और उसे यह शक्ति प्रदान की गई कि वह डौमीनियन की शांति एवं अच्छे प्रशासन के लिए केवल आपात स्थिति में अध्यादेश प्रख्यापित कर सकता है। गवर्नर-जनरल डौमीनियन विधानमंडल का अंग नहीं रहा और विधानमंडल को भंग करने की उसकी शक्ति समाप्त हो गई। इस प्रकार, गवर्नर-जनरल देश का केवल उपाधिधारी प्रमुख रह गया और डौमीनियन विधानमंडल पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न हो गया। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 में भारत की संविधान सभा को पूर्णप्रभुसत्ता संपन्न निकाय घोषित किया गया और 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को उस सभा ने देश का शासन चलाने की पूर्ण शक्तियां ग्रहण कर लीं। अधिनियम की धारा 8 के द्वारा संविधान सभा को पूर्ण विधायी शक्ति प्राप्त हो गई। किंतु साथ ही यह अनुभव किया गया कि संविधान सभा के संविधान निर्माण के कृत्य तथा विधानमंडल के रूप में इसके साधारण कृत्य में भेद बनाए रखना वांछनीय होगा। सदन के सहमत हो जाने पर, इस विषय पर विचार करने के लिए 20 अगस्त, 1947 को श्री जी. वी. मावलंकर की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई।
29 अगस्त, 1947 को मावलंकर समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात संविधान सभा ने संकल्प किया कि संविधान निर्माण निकाय के रूप में सभा के कार्य और डौमीनियन विधानमंडल के रूप में उसके कार्य में स्पष्ट भेद किया जाए और जब सभा डौमीनियन विधान सभा के रूप में कार्य करे तो उसकी अध्यक्षता के लिए एक अध्यक्ष के चुनाव हेतु उपबंध किया जाए।
उपरोक्त संकल्प के अनुसरण में भारतीय डौमीनियन की स्थापना से ठीक पूर्व लागू विधानसभा नियमों को संविधान सभा के प्रेजीडेंट द्वारा रूपभेदित किया गया तथा उन्हें अनुकूल बनाया गया।
संविधान सभा (विधायी) की एक अलग निकाय के रूप में प्रथम बैठक 17 नवंबर, 1947 को संविधान सभा के प्रेजीडेंट डा. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई।
अध्यक्ष पद के लिए चूंकि केवल श्री जी.वी. मावलंकर का एक ही नाम प्राप्त हुआ था अतः उन्हें विधिवत निर्वाचित घोषित किया गया । डा. राजेन्द्र प्रसाद अध्यक्ष-पीठ से उठ गए और तब अध्यक्ष मावलंकर ने वह स्थान ग्रहण किया। इस बीच संविधान सभा स्वतंत्र भाग के लिए संविधान के निर्माण कार्य में लगी हुई थी।
संविधान सभा ने इस सिद्धांत को स्वीकार किया कि संसदीय कार्यपालिका सामूहिक रूप से संसद के निर्वाचित सदन के प्रति उत्तरदायी हो, जैसी कि संघीय संविधान समिति ने सिफारिश की थी और बाद में प्रारूप समिति द्वारा तैयार किए गए संविधान के प्रारूप में उसे सम्मिलित किया गया। 4 नवंबर, 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में पेश करते हुए और संसदीय शासन प्रणाली के लिए सिफारिश करते हुए, प्रारूप समिति के सभापति बी. आर. अंबेडकर ने कहा कि “संविधान के प्रारूप में संसदीय शासन प्रणाली की सिफारिश करते हुए अधिक स्थिरता की अपेक्षा अधिक उत्तरदायित्व को तरजीह दी गई है‘‘ । यद्यपि संसदीय शासन प्रणाली के विचार के विरुद्ध कुछ आवाजें सुनी गईं तथापि प्रारूप समिति के प्रस्ताव के पक्ष में भारी बहुमत था और अंत में 26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र भारत के गणराज्य का संविधान लागू हो जाने से, आधुनिक संस्थागत ढांचे और उसकी अन्य सब शाखा-प्रशाखाओं सहित पूर्ण संसदीय शासन प्रणाली स्थापित हो गई । संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गई और वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रथम आम चुनावों के पश्चात नये संविधान के उपबंधों के अनुसार संसद का गठन होने तक इसी प्रकार कार्य करती रही।
नये संविधान के अंतर्गत प्रथम आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए । प्रथम निर्वाचित संसद जिसके दो सदन थे, राज्य सभा और लोक सभा, मई, 1952 में बनी; दूसरी लोक सभा मई, 1957 में बनी; तीसरी अप्रैल, 1962 में; चैथी मार्च, 1967 में; पांचवीं मार्च, 1971 में; छठी मार्च, 1977 में; सातवीं जनवरी, 1980 में, आठवीं जनवरी, 1985 में; नवी दिसंबर, 1989 में और दसवीं जून, 1991 में बनी। 1952 में पहली बार गठित राज्य सभा एक निरंतर रहने वाला, स्थायी सदन है जिसका कभी विघटन नहीं होता। हर दो वर्ष बाद इसके एक-तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं।
संदर्भ
1. विषय पर विस्तृत विवेचन के लिए देखिये सुभाष काश्यप, हिस्ट्री ऑफ पार्लियामेंटरी डेमोक्रेसी, दिल्ली, 1991; द टैन लोकसभाज, दिल्ली, 1992 तथा हिस्ट्री आफ द पार्लियामेंट आफ इंडिया, दिल्ली, पाग एक 1994, भाग दो 1995
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…