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प्रतिवेदन की परिभाषा | प्रत्यावेदन लेखन का मतलब क्या है | meaning in english , अर्थ किसे कहते है ?

प्रतिवेदन लेखन का मतलब क्या है , meaning in english , प्रत्यावेदन की परिभाषा अर्थ किसे कहते है ?

(3) प्रत्यावेदन

जब किसी कर्मचारी अथवा अधिकारी का प्राप्य किसी दूसरे कर्मचारी अथवा अधिकारी को मिल जाता है, तब न्यायोचित माँग के लिए सम्बन्धित अधिकारी के पास वस्तुस्थिति का पूर्ण विवरण देने वाला आवेदन-पत्र दिया जाता है । ऐसा आवेदन पत्र ‘प्रत्यावेदन‘ कहलाता है। नौकरी करते समय जीवन में प्रायः ऐसी स्थिति आती है जब किसी कर्माचारी पर निराधार दोषारोपण किया जाता है अथवा किसी वरिष्ठ कर्मचारी या अधिकारी की उपेक्षा कर कनिष्ठ कर्मचारी या अधिकारी की प्रोत्रति कर दी जाती है । कभी-कभी निर्दोष होने पर भी न्यायालय से अथवा सम्बद्ध विभाग से – दण्ड की घोषणा हो जाती है जिसके विरुद्ध आवाज उठाने की जरूरत पड़ती है । इन सबके लिए वस्तुस्थिति का सांगोपांग विवरण देने वाला जो आवेदन-पत्र सम्बन्धित उच्च अधिकारी को दिया जाता है उसे ‘प्रत्यावेदन‘ कहते हैं। उदाहरणार्थ यदि हम किसी राजकीय, कालेज में हिन्दी के वरिष्ठ लेक्चरर हैं और विभागाध्यक्ष के पद पर किसी कनिष्ठ लेक्चरर की प्रोन्नति कर दी जाय, तो हम अपना प्रत्यावेदन निम्नांकित रूप में प्रस्तुत करेंगे।

सेवा में,

शिक्षा निदेशक (उच्च शिक्षा),

उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद

द्वारा,

प्राचार्य,

राजकीय महाविद्यालय,

रानीखेत (अल्मोड़ा)

विषय-हिन्दी विभाग में विभागाध्यक्ष की नियुक्ति में असंगति के सम्बन्ध में।

महोदय,

(1) मैं विगत 9 वर्षों से राजकीय महाविद्यालय, रानीखेत (उत्तर प्रदेशीय सरकार से शासित) में हिन्दी विभाग के लेक्चरर पद पर लगातार कार्य करता आ रहा हूँ । निदेशालय की यह नीति रही है कि वरिष्ठता सूची में जिसका नाम शीर्ष पर रहता है, प्रोन्नति का अवसर आने पर सर्वप्रथम उसे ही प्रोन्नत किया जाता है।

(2) प्रदेश में जितने भी राजकीय कालेज हैं, उनके हिन्दी विभागों के सभी लेक्चररों में मेरा नाम वरिष्ठताक्रम में शीर्ष पर है । जब प्रोन्नति का अवसर आया, तब मेरी उपेक्षा कर दी गयी और मेरे तीन दिन बाद कार्यभार ग्रहण करने वाले डॉ० भीम सिंह, लेक्चरर, राजकीय कालेज, “चन्दौली को प्रस्तुत कालेज का हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है । इस प्रकार के निर्णय से निदेशालय की गरिमामयी परम्परा की अवमानना होती है।

(3) विनम्र निवेदन है कि वरिष्ठता सूची का पुनः अवलोकन करने की कृपा करें तथा न्यायोचित कार्रवाई कर मुझे अनुगृहीत करें ।

भवदीय

23 जनवरी, 1977 ई०   सीताराम प्रसाद

लेक्चरर, हिन्दी विभाग,

राजकीय कालेज,

रानीखेत

(4) सम्पादक के नाम पत्र

‘सम्पादक के नाम पत्र‘ में पाठक या लेखक अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करते हैं । किसी घटना, सामाजिक समस्या, पत्र-पत्रिका में प्रकाशित सूचना, लेख आदि के बारे में पाठकों या किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिक्रिया-स्वरूप सम्पादक के नाम लिखे गये पत्र को ‘सम्पादक के नाम पत्र‘ कहते हैं । इसमें ‘पत्रकला‘ के साथ-साथ ‘निबन्धकला‘ की भी परीक्षा हो जाती है। इसी कारण इसे ‘निबन्धात्मक पत्र‘ भी कह सकते हैं। इसके लिए निम्नांकित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-

(1) ‘सम्पादक के नाम पत्र‘ को प्रकाशानार्थ किसी पत्र-पत्रिका के सम्पादक के पास सहपत्र से संलग्न कर भेजना चाहिए, जैसे-कागज के दायीं ओर सबसे ऊपर प्रेषक का पता एवं दिनांक लिखना चाहिए। उससे थोड़ा नीचे बायीं ओर सम्बन्धित पत्र या पत्रिका का नाम और पता लिखना चाहिए । इसी के नीचे ‘महोदय‘ सम्बोधन के बाद कॉमा (,) लगाना चाहिए। इसके बाद नये अनुच्छेद से प्रकाशित होने वाले पत्र को प्रकाशित करने के लिए अनुरोध करना चाहिए । अन्त में समापन शब्द दायीं ओर लिखकर कामा (,) लगाना चाहिए और उसके नीचे हस्ताक्षर कर पता लिख देना चाहिए—

शंकर-भवन,

लंका, वाराणसी (उ० प्र०)

5-1-77

 

सेवा में,

सम्पादक,

दैनिक ‘आज‘

महोदय,

आपके दैनिक पत्र में ‘जल-आपूर्ति में अव्यवस्था‘ पर अपने विचार प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ। आशा है, आप इन्हें प्रकाशित कर हमें अनुगृहीत करेंगे ।

भवदीयय

रंजना बनर्जी

(2) एक ही कागज पर सहपत्र समाप्त कर प्रकाश्य सामग्री लिखी जा सकती है । लेकिन सम्पादक की सुविधा के लिए अलग-अलग कागज पर लिखना चाहिए । प्रकाश्य सामग्री के शीर्षक को रेखांकित कर देना चाहिए ।

(3) प्रकाश्य सामग्री लिखने के बाद अन्त में दाहिनी ओर नयी पंक्ति पर रेखिका (–.) के बाद अपना नाम और संक्षिप्त पता लिख देना चाहिए ।

शंकर- भवन,

लंका, वाराणसी

5-1-77

नमूना-1

सेवा में,

सम्पादक,

दैनिक ‘आज‘

कबीरचैरा, वाराणसी

महोदय,

मैं आपके लोकप्रिय दैनिक पत्र में गाँवों में खोले गये प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र की दयनीय स्थिति । पर अपने विचार प्रकाशनार्थ भेज रहा हूँ । आशा है इन्हें प्रकाशित कर अनुगृहीत करेंगे।

भवदीय,

रंजना बनर्जी

गाँवों के प्राथमिक चिकित्सा- केन्द्र

गाँवों में रहनेवाली सामान्य जनता की सुख-सुविधा के लिए सरकार ने प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र खोले हैं। इनमें कई प्रशिक्षित कर्मचारियों के साथ एम० बी० बी० एस० डॉक्टर भी नियुक्त हैं। बाहर से देखने पर अस्पताल का स्वरूप अच्छा दिखाई पड़ता है अर्थात सुन्दर भवन, सुशिक्षित कर्मचारी, योग्य डाक्टर तथा डाक्टर साहब के लिए जीप, ड्राइवर आदि । यह सब कुछ साधनहीन एवं गरीब जनता की सुविधा के लिए है। लेकिन चिकित्सा केन्द्र पर जाने से पता लगता है कि यहाँ की स्थिति बड़ी ही दयनीय है। गाँवों में शहरों से भी अधिक बीमारियों का प्रकोप होता है । इस प्रकोप से बचाव के लिए केन्द्र में पर्याप्त दवाएँ नहीं रहती हैं। दवाएँ नाममात्र की रहती हैं जो सभी रोगियों को सुलभ नहीं हो पाती हैं। कभी-कभी एक ही दवा अनेक बीमारियों के लिए दी जाती है । अनपढ़ जनता अज्ञानवश ठगी जाती है । सुदूर देहातों में जो केन्द्र हैं उनके कर्मचारी दवाओं को बाजार में बेच देते हैं, सूई लगाने के लिए पैसा लेते हैं। कभी-कभी रोगी तो इन सब कारणों से तंग आकर सरकार को दोषी ठहराने लगते हैं। कभी-कभी डॉक्टर भी प्रमादवश गाँवों में विलम्ब से पहुंचते हैं, जिससे रोगी का इलाज नहीं हो पाता, अथवा उनकी मृत्यु भी हो जाती है। सरकार को ऐसे केन्द्रों पर सदा ध्यान देना चाहिए।

रंजना बनर्जी,

लंका, वाराणसी ।

नमूना-2

नीचे दिये गये नमूने के अनुसार भी सम्पादक के नाम पत्र लिखा जा सकता है-

हिन्दी विभाग,

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

वाराणसी-5

दि० 7-3-77

सेवा में,

सम्पादक: दैनिक ‘नवभारत टाइम्स‘

नयी दिल्ली-110001

क्या कुमारीध्श्रीमती विशेषण आवश्यक है ?

महोदय,

व्यक्तिगत परीक्षार्थिनी के रूप में मैंने एम० ए० (हिन्दी) की परीक्षा उत्तीर्ण की है और अब शोध छात्रा हूँ। शोध छात्रा के रूप में पंजीयन के लिए जब मैं आवेदन-पत्र में आवश्यक प्रविष्टियाँ भरने लगी, तो अचानक मेरा ध्यान इस वाक्य पर चला गया—‘महिलाएँ अपने नाम से पूर्व कुमारी या श्रीमती, जो भी हों अवश्य लिखें। किसी भी परीक्षा अथवा नौकरी के लिए फार्म भरिए, किसी से अपना परिचय दीजिए अथवा बैंक में खाता खोलवाइए-सर्वत्र महिलावर्ग से यह पूछा जाता है कि आप कुमारी/श्रीमती अथवा मिस/मिसेज में से क्या हैं । आखिर नारी से ही ऐसा प्रश्न क्यों किया जाता है ? पुरुषों से ऐसा प्रश्न क्यों नहीं किया जाता ? यदि नहीं किया जाता है तो यह पुरुष वर्ग के प्रति पक्षपात है। नारी और पुरुष को समान अधिकार मिले हैं तो दोनों से यह प्रश्न पूछना चाहिए । क्या ऐसा लगता है कि कुमारी या श्रीमती के अभाव में नारी का नाम अधूरा है अथवा नारी अग्राह्य है ? ऐसा बन्धन मात्र नारी के लिए ही क्यों है ? मैं बार-बार यही सोचती हूँ कि महिलावर्ग से क्यों पूछा जाता है यह प्रश्न ? पाठकों से उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।

मंजुरानी श्रीवास्तव,

हिन्दी विभाग,

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,

वाराणसी-5

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