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पुनर्जागरण कालीन चित्रकला एवं संगीत कला पर एक लेख लिखिए , चित्रकार , संगीतकार renaissance art characteristics in hindi
renaissance art characteristics in hindi painting music पुनर्जागरण कालीन चित्रकला एवं संगीत कला पर एक लेख लिखिए , चित्रकार , संगीतकार के नाम बताइए ?
प्रश्न: पुनर्जागरण कालीन चित्रकला एवं संगीत कला पर एक लेख लिखिए। क्या यह अपनी प्रकृति में मध्यकालीन थी? विवेचना कीजिए।
उत्तर: कला के क्षेत्र में पुनर्जागरण का सर्वाधिक प्रभाव चित्रकला पर पड़ा। इस युग की कला का उद्देश्य जीवन एवं प्रकृति में तारतम्य स्थापित करना था। इस काल की कला धार्मिक बंधनों से मुक्त होकर यथार्थवादी हो गयी और सर्वसाधारण को भी इसमें स्थान मिला। किंतु कला के लिए अभी भी धार्मिक विषयों का चयन किया जाता था। कला के क्षेत्र में विशेषकर चित्रकला का अधिक विकास हुआ। अब मेडोना, संतों और बाईबिल के दृश्यों के साथ-साथ प्राचीन गाथाओं के गायक-नायिकाओं और यूनानी तथा रोमन साहित्य के सुन्दर दृश्यों के चित्र भी बनने लगे। चैदहवीं सदी के शुरु तक अधिकांश चित्रकार प्राचीन बाइजेन्टाइन कला से ही चिपके रहे थे। बाइजेन्टाइन कला में आकृति, डिजाइन और अंकन में परम्परावादी शैली पर अधिक जोर दिया जाता था और विषय-वस्तु तथा उद्देश्य पूर्णतः धार्मिक होते थे। उस युग की चित्रकला का क्षेत्र भी सीमित था और उसका उपयोग गिरजाघरों की दीवारों को धार्मिक दृश्यों और महापुरुषों के चित्रों से सजाने में ही किया जाता था।
इटली निवासी जियेटो (1336 ई. के आसपास) को चित्रकला का जन्मदाता माना जाता है। जियेटो रैनेसाकालीन चित्रकला का प्रथम प्रवर्तक था। उसने प्राकृतिक सौन्दर्य व जनसाधारण से संबंधित चित्र बनाये। पन्द्रहवीं सदी के चित्रकारों ने उसकी कमियों को दूर करने का प्रयास किया और उनके चित्रों में प्रकाश, छाया, रंगों का समन्वय, आकृति का सही अंकन आदि पर जोर दिया गया।
इस नई शैली का अग्रदूत फ्लोरेन्स नगर का मेसाविक्यों (1401-1429 ई.) था। फ्रा लिप्पी और फ्रा एंजेलिको ने इस शैली को विकसित करने में योगदान दिया। पन्द्रहवीं सदी के अंत में बोटी शैली (1444-1510 ई.) हुआ, जिसने विविध विषय-वस्त को लेकर बेजोड़ चित्र बनाए। उपर्युक्त सभी चित्रकार फ्लोरेंस नगर के थे, अतः उनकी चित्रकला शैली को ‘फ्लोरेन्स शैली‘ भी कहा जाता था। इटली में फ्लोरेन्स शैली के अलावा अन्य शैलियों का भी विकास हुआ, जिनमें ‘उम्बीयन शैली‘ और ‘वेनेशियन शैली‘ मुख्य थी। उम्बीयन शैली का प्रमुख चित्रकार पीएट्रो पेरूजिनो (1446-1524 ई.) सर्वाधिक विख्यात है। वेनेशियन शैली में टिटियन (1477-1576 ई.) ने विशेष नाम कमाया।
रॉफेल (1483-1520 ई.) इटली का एक महान चित्रकार था। रॉफेल न केवल एक सफल चित्रकार बल्कि एक कवि और वास्तुकार भी था। इसकी प्रमुख कृतियाँ सिस्टाइन मेडोना, स्कूल ऑफ एथेन्स है। ‘कोलोना मेडोना‘ चित्र जीसस की माता मेरी का है। ‘स्कूल ऑफ एथेन्स‘ नामक चित्र में राफेल ने प्राचीन ग्रीक दार्शनिक अरस्तु, प्लेटो आदि को शास्त्रार्थ करते हुए दिखाया गया है।
माइकल एजलो (1475-1564 ई.) बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। यह एक चित्रकार, मूर्तिकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक, स्थापत्यकार इत्यादि था। “Jack of all trads – noster of all” इसके लिए कहावत है। इसने लगभग 145 चित्र बनाये। प्रमुख चित्र द लास्ट जजमेंट (The last Judgement), फॉल ऑफ मैन (Fall of Man) हैं। द लास्ट जजमेंट चित्र सिस्टाइन चैपल (Sistine Chapel) नामक वेटिकन चर्च की छत (Ceiling) पर बनाया गया। ‘फॉल ऑफ मैन‘ में ईसा के जन्म से प्रलय तक की कहानी का चित्रण है। यह भी सिस्टाइन चैपल में बना है। इसे बनाते-बनाते माइकल एंजलो अंधा हो गया था।
लियोनार्दो द विन्ची (1452-1519 ई.) फ्लोरेन्स के विन्ची गांव का रहने वाला था। उसे फ्लोरेन्स में मेडीची (Medici) परिवार का संरक्षण प्राप्त हुआ। वह बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति था। वह एक कलाकार, वैज्ञानिक, आविष्कारक, सैनिक, इंजीनियर और शरीर शास्त्र का विद्यार्थी था। लिओनार्दो दा विन्ची अर्थात् ‘परीक्षण का अनुयायी‘ के बारे में प्रसिद्ध है। उसके प्रमुख चित्रों में हैं – मोनालीसा, लास्ट सपर (अंतिम भोज), वर्जिन ऑफ द रॉक्स, वर्जिन एण्ड चाइल्ड विद सेन्ट ऐन आदि प्रमुख हैं। उसके चित्रों में सादगी तथा भावाभिव्यक्ति की प्रधानता के साथ-साथ यथार्थ में आदर्श की झलक भी देखने को मिलती है। उसकी चित्रकला की मुख्य विशेषताएं हैं – प्रकाश और छाया, रंगों का चयन तथा शारीरिक अंगों का सबल प्रदर्शन। उसके चित्रों की बारीकियों पर ‘ट्रीटाइस ऑन पेंटिंग‘ नामक एक ग्रंथ की रचना की। इसकी फ्रांस में मृत्यु हुई।
वर्जिन ऑफ द रॉक्स चित्र में वर्जिन मेरी (मदर मेरी) को ईसा व अन्य के साथ चट्टानों के बीच क्रीड़ा करते (खेलते) हुए दर्शाया गया है।
वर्जिन एन्ड द चाइल्ड विद सेन्ट एन में मदर मेरी को पुत्र यीशु के साथ संत ऐन के साथ दर्शाया गया है।
मोनालीसा के चित्र का अन्य नाम ला गियोकोन्डा (La Gioconda) है जिसका अर्थ है ‘गियोकोन्डा की पत्नी‘। यह विन्ची के मित्र की पत्नी लीसा गिरर्दिनी थी। इसी का चित्र मोनालीसा है। इसे ‘ल जकोन्दो‘ भी कहा जाता है। हिंदी में इसका अर्थ है ‘कौतुकमयी‘।
अन्य कलाकार: पोट्रेट बनाने वाले चित्रकारों में इटली का वेसेलो तिशियन (1477-1576 ई.) सर्वोपरि था। उसने पोपो, पादरियों, सामन्तों आदि के अनेक चेहरे (पोट्रेट) बनाये थे। बेल्जियम के वान तथा आइक बन्धुओं ने चित्रकला को एक नया मोड दिया। उन लोगों ने रंगों को मिश्रित करने की एक नवीन पद्धति ढूंढ निकाली जिससे चित्रों का रूप और अधिक निखर गया। फूलों के शहर फ्लोरेन्स के चित्रकार फ्रान्जेलिको ने सेंट मार्क्स मोनेस्ट्री के चालीस कक्षों की दीवारों पर बाईबिल के चित्र बनाये। फ्रान्जेलिको के फ्रेस्को (भित्तिचित्र) विधि से बने चित्रों के अलावा टेम्पेरा (रंगों में अंडा, गोंद या फलों का गूदा मिलाकर बनाए गए चित्र) में बनाए हुए चित्र भी हैं, जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। इस प्रकार के बनाए गए चित्रों में प्रसिद्ध मेडोना का चित्र है, इसके अतिरिक्त मेशेशियो को भी इटली के प्रारंभिक चित्रकारों में गिना जाता है। जब तक वह जीवित रहा, तब तक उसे कोई ज्यादा पसन्द नहीं करता था। फ्रान्ज हाल्स (1605-1666) की गणना भी विश्व के महान् पोर्टेट चित्रकारों में की जाती है। उसने सामन्तों के चेहरे बनाए परन्तु वह अपने चित्रों के विषय की खोज में प्रायः शराबखानों तथा अंधेरी सड़कों का चक्कर लगाया करता था। उसके विश्व प्रसिद्ध चित्र ‘लाफिंग कैवलरी‘ की खूबी यह है कि सैनिकों के चेहरे पर एक ऐसी खुशी है, मानों वे अपनी ही महिमा से प्रसन्न हैं। रैम्बा वान रिन (1606-1669 ई.) बेल्जियम का अन्य प्रमुख चित्रकार था। वह रेखाचित्रों के लिए अधिक विख्यात है। रंगों, प्रकाश और छाया के अंकन में उसे विशेष निपुणता प्राप्त थी। स्पेन में डीगोवेलेसकैथ (1599-1660 ई) हुआ, जिसने राजवंश के लोगों के अनेक आकर्षक पोर्टेट बनाए। जर्मनी के अलब्रेख्त ड्यूरेर तथा हैन्स दाल्वीन ने लकडी तथा तांबे के पत्थरों पर आश्चर्यजनक चित्रों को अंकित किया।
पुनर्जागरण कालीन संगीत कला
मध्यकाल में संगीत वर्जित था। परंतु रैनेसा काल में सेन्ट एम्ब्रोस नामक विद्वान ने चर्च में संगीत को समर्थन दिया। इटली का गिओवानी पालेस्ट्राइना, मास्किनदस, जॉन बुल, विलियम बर्ड आदि इस काल के प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे। मानिस भी चर्च में संगीत का समर्थन किया। सर्वप्रथम मार्टिन लूथर द्वारा कल्पना की गई कि धार्मिक अवसरों पर सामाजिक की व्यवस्था होनी चाहिए। सन् 1554 में गियावेनी पेलेस्ट्रीना ने मासिज़ (डंेेमे) नामक एक पुस्तक लिखी। यह गंभ आज भी चर्च संगीत का आधार मानी जाती है। इस काल में मध्यकाल की भद्दी और तीखी ध्वनि के गलि वाद्य का स्थान वायलिन ने ले लिया। नवीन वाद्य-यंत्रों में हाप्सीकार्ड प्रमुख था जो पियानो का पर्व पियाना एवं वायलिन रेनेसा काल की देन है। क्रिसमस के समय गाये जाने वाले गीत – क्रिसमस कैरेल्स कहलाते है।
पुनर्जागरणकालीन संगीतकारों ने ही कॉन्सर्ट, सिंफोनी, सोनाटा, ओरेटोरिया और ऑपेरा के रूप में आधुनिक शास्त्रीय संगीत की आधारशिला रखी।
संगीत के क्षेत्र में पुनर्जागरण ने एक गायक की ध्वनियों द्वारा सम्पादित की जाने वाली दो प्रकार की लम्बी नाटकीय रचनाओं को जन्म दिया। एक का नाम ‘औरतोरिया‘ (परिकीर्तन) और दूसरे का नाम ‘ओपेरा‘ था। औरतोरियो का विषय विशुद्ध धार्मिक होता था और उसमें कार्य, व्यापार, वेशभूषा तथा दृश्यावली का प्रयोग किया जाता था। ओपेरा आमतौर पर सांसारिक विषयों से संबंधित होता था। इसमें अभिनय, वेशभूषा, गायन, दृश्यावली सभी का उपयोग किया जाता था। सबसे पहले ऑपेरा 1594 ई. में प्रस्तुत किया गया था। इस युग में छोटे-छोटे प्रेमगीतों का प्रचार बढ़ा। ‘मास्किनदस‘ इस युग का एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ हुआ।
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