पानी की स्थायी कठोरता दूर की जाती है , जल की स्थाई कठोरता को हटाने के लिए किसका उपयोग किया जाता है

जल की स्थाई कठोरता को हटाने के लिए किसका उपयोग किया जाता है ? पानी की स्थायी कठोरता दूर की जाती है  ?

पानी की स्थाई कठोरता दूर करने के लिए पोटैशियम क्लोराइड सर्वाधिक उपयुक्त है।
अधिक भारी अणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या की अपेक्षा प्रोट्रॉनों की संख्या अधिक होती है।
शुष्क बर्फ अर्थात् ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को गर्म करने पर वह सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है।
पिक्रिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है, जिसका उपयोग प्रयोगशालाआ में अभिकर्मक के रूप में किया जाता है।
क्रीम एक प्रकार का दूध होता है, जिसमें वसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा पानी की मात्रा कम हो जाती है।
एक किलोग्राम शहद से लगभग 3500 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
100ः एथिल ऐल्कोहॉल को एब्सोल्यूट ऐल्कोहॉल कहते है।

द्रव का ताप बढ़ने पर उसका पृष्ठ-तनाव घटता है।
केशिकात्व सिद्धान्त के कारण लालटेन में बत्ती के सहारे तेल चढ़ता है।
पुरातत्व अवशेषों अथवा जीवाश्म की आयु निर्धारित करने के लिए रेडियो-सक्रिय कार्बन का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है। हीरे का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है और पूर्ण आन्तरिक परावर्तन वह अत्यधिक चमकीला दिखाई देता है।
जल की सतह पर कोई चिकनाई (जैसे, तेल या ग्रीज) गिराने पा पृष्ठ तनाव घट जाता है।
यदि किसी द्रव में घुलनशील पदार्थ मिलाया जाये, तो द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है।
यदि क्लोरोफॉर्म को सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डल में खला छोड दिया जाए, तो वह विषैली गैस फॉस्जीन में बदल जाती है।
वायुमण्डलीय मुक्त नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तन करने की प्रक्रिया ‘नाइट्रोजन स्थिरीकरण‘ कहलाती है।
मिट्टी में क्षारकत्व के घटाने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
टेल्कम पाउडर के निर्माण में थियोफ्रेस्टस खनिज का उपयोग किया जाता है।

विस्फोटक वे पदार्थ हैं, जो दहन पर अत्यधिक ऊष्मा व तीव्र ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
च्म्ज्छ एक अति संवेदनशील विस्फोटक है। रासायनिक नाम- च्मदजं मतहजीतपजवस जमतजंदपजतंउपदम द्य
च्म्ज्छ की विस्फोटक गति 8.300 मी प्रति सेकण्ड है, त्क्ग् कीविस्फोटक गति 8.180 मी प्रति सेकण्ड है, जबकि TNT की विस्फोटक गति 6,900 मी प्रति सेकण्ड है।
परमाणु में उपस्थित सभी कणों में न्यूट्रॉन पाया जाता है। नाभिक के बाहर न्यूट्रॉन रेडियोधर्मी हो जाता है।
विद्युत् धारा का निर्माण गतिशील इलेक्ट्रॉन करते हैं।
इलेक्ट्रॉन की अनिश्चितता का सिद्धान्त, हाइजेनबर्ग ने प्रतिपादित किया था।
परमाणु अणु या आयन, जिसमें इलेक्ट्रानों की संख्या समान हो, समइलेक्ट्रॉनिक (Isoelectronics) कहलाते हैं; जैसे-छ2 (7़7 = 14e -), CO (6 ़ 8 = 14e-), CN (6 ़ 8 = 14 e-)।
इलेक्ट्रॉन का प्रतिकरण पॉजिट्रान है।
केवल हाइड्रोजन परमाणु ही ऐसा परमाणु है, जिसके नाभिक में न्यूट्रॉन नहीं होता है।
केवल हाइड्रोजन एक ऐसा तत्व है, जिसके सभी समस्थानिकों को अलग-अलग नाम दिए गये हैं, जैसे-प्रोटियम, ड्यूटीरियम व ट्राइटियम।
किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो प्रदर्शित करती है कि तत्व का एक परमाणु, कार्बन परमाणु के द्रव्यमान के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।
परमाणु भार = तत्व के परमाणु का द्रव्यमान परमाणु भार
कार्बन परमाण के द्रव्यमान का बारहवाँ भाग
परमाणु की त्रिज्या का मात्रक फर्मी (Fermi) होता है।
इलेक्ट्रॉन, तरंग तथा कण दोनों के गुण प्रदर्शित करता है।
इलेक्ट्रॉन पर आवेश 1.6×10-19 कूलॉम होता है।
पाजिट्रॉन (Positron) की खोज 1932 में एण्डरसन ने की थी। यह एक धनावेशित मूल कण है, जिसका द्रव्यमान व आवेश इलेक्ट्रॉन के बराबर होता है। इसे इलेक्ट्रॉन का एण्टीकरण (Antiparticle) भी कहते हैं।
न्यूट्रिनो (Nutrino) की खोज 1930 में पाउली (Pauli) ने की। ये द्रव्यमान व आवेश रहित मूल कण हैं।
पाई मेसान (Tu Meson) की खोज 1935 में युकावा (Yukaua) ने की। ये कण दो प्रकार के होते हैं-धनात्मक पाई मेसान व ऋणात्मक पाई मैसान । ये अस्थायी कण हैं, जिनका जीवन काल 10-8 सेकण्ड व द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का 274 गुना होता है।
फोटॉन (Photon), ये ऊर्जा के बण्डल हैं, जो प्रकाश की चाल से चलते हैं। सभी प्रकार की विद्युत्-चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है। इनका विराम द्रव्यमान (Rest Mas) शून्य होता है।
किसी तत्व के एक मोल में स्थित परमाणुओं की संख्या 6.023×1023 होती है। इस संख्या को आवोगाद्रो (Avogadro’s No.) संख्या कहते हैं।
किसी भी परमाणु की बाह्यतम कक्षा के इलेक्ट्रॉन संयोजी इलेक्ट्रॉन (Valence Electron) और भीतरी कक्षाओं के इलेक्ट्रॉन, कोर इलेक्ट्रॉन (Core Electron) कहलाते हैं, जैसे-सोडियम (Na11) में, Na11-2, 8, 1, जिसमें 1 संयोजी व बाकी दस (2, 8) कोर इलेक्ट्रॉन हैं।
संयोजी इलेक्ट्रॉनों में अधिक ऊर्जा होने के कारण ये रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेते हैं। ये इलेक्ट्रॉन ही उस तत्व की संयोजकता को प्रदर्शित करते है।
जब परमाणु आपस में संयोग करके अणु बनाते हैं तो इस प्रक्रिया में एक से अधिक इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण एक परमाणु से दूसरे परमाणु में होता है, जिसके परिणामस्वरूप परमाण अपने समीपस्थ निष्क्रिय गैसों (Inert Gsaes) के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को प्राप्त कर लेते हैं। इलेक्ट्रॉन त्यागने वाले परमाणु पर धनावेश तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने वाले परमाणु पर ऋणावेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेशित परमाणुओं को आयन (lon) कहा जाता है। विपरीत आवेश वाले आयन आपस में वैद्युत आकर्षण बल द्वारा एक-दूसरे से बँधे रहते हैं। परमाणुओं के इस प्रकार संयोग करने की विधि को वैद्युत संयोजकता का सिद्धान्त कहते हैं तथा उनके बीच स्थापित बन्ध को वैद्युत संयोजी बन्ध अथवा आयनिक बन्ध कहा जाता है।
यौगिक, जिनका संयोजन एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण के फलस्वरूप होता है, विद्युत संयोजी यौगिक (Electrovalent Compound) या आयनिक यौगिक (lonic Compounds) कहलाते हैं, जैसे-छंब्स
दो परमाणुओं के संयुक्त होने की वह प्रक्रिया, जिसमें इलेक्ट्रॉनों की पारस्परिक साझेदारी होती हैं, सहसंयोजकता (Covalency) कहलाती है। परमाणुओं के बीच में जितने इलेक्ट्रॉन युग्म होते हैं, उनमें उतने ही बंध स्थापित होते हैं, जैसेकृक्लोरीन के परमाणुओं के मध्य एकाकी बन्ध (Single Bond), ऑक्सीजन के परमाणुओं के मध्य द्विबंध (Double Bond) आदि। सहसंयोजक यौगिक में किसी तत्व को सहसंयोजकता का संख्यात्मक मान, तत्व के परमाणुओं द्वारा साझीकृत इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्या है। इस प्रकार क्लोरीन व ऑक्सीजन की सहसंयोजकता क्रमशः 2 तथा 3 है।
सहसंयोजकता में सहभाजित इलेक्ट्रॉन युग्म की रचना के लिए प्रत्येक x संयोजी परमाणु का एक-एक इलेक्ट्रॉन भाग लेता है। परन्तु कुछ अणु ऐसे हैं, जिसमें सहभाजित इलेक्ट्रॉन युग्म का सहभाजन, दोनों परमाणुओं में से किसी एक ही परमाणु द्वारा दिया जाता है, पर इलेक्ट्रॉन युग्म का सहभाजन दोनों परमाणुओं के बीच होता है। इस प्रकार के बन्ध को उपसह संयोजक (Co-ordinate Bond) कहते हैं।
सर्वाधिक वैद्युत धनात्मक तत्व फ्रान्शियम है।
स्वतन्त्र अवस्था (शुद्ध) में सोना मुलायम, बहुत तन्य तथा आघातवर्ध्य (धातु का वह गुण, जिसके कारण उसे पतली चादरों के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है जैसे — मिठाइयों पर चढ़ा चाँदी का वर्क) होता है, अतरू इसके जेवरात बनाने के लिए, इसमें चाँदी व ताँबा मिलाया जाता है, जिससे यह कठोर हो जाये।
एल्युमीनियम, चाँदी, सोना काफी आघातवर्ध्य धातुएँ हैं, इन्हें पीटकर आसानी से पतली से पतली चादरों में बदला जा सकता है। मिठाइयों पर लगा चाँदी का वर्क तथा भोज्य पदार्थों, दवा, चाकलेट्स आदि के ऊपर लिपटा एल्युमीनियम वर्क (Foil) चाँदी और एल्युमीनियम की आघातवर्ध्यता के ही कारण सम्भव है।

मोल, आवोगाद्रो संख्या एवं द्रव्यमान के बीच सम्बन्ध

संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त (Electronic Theory fo Valency) के अनुसार, प्रत्येक तत्व के परमाणु की बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 से कम होती है तो यह उतने ही इलेक्ट्रॉनों को प्राप्त कर अपना अष्टक पूर्ण करना चाहता है और ऐसे तत्वों की संयोजकता ऋणात्मक होती है और यदि तत्व के बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 से अधिक है तो यह परमाणु अधिक इलेक्ट्रॉनों को त्यागकर अपना अष्टक पूर्ण करता है, ऐसे तत्वों की संयोजकता धनात्मक होती है।
जिन तत्वों के परमाणुओं की बाह्य कक्षा में आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं, उनके परमाणु अक्रिय होते हैं तथा रासायनिक क्रिया में भाग नहीं लेते।
हीलियम और आर्गन जल में विलेय हैं, अतः अल्प मात्रा में ये नदियों, समुद्रों तथा वर्षा के जल में भी पायी जाती हैं।
रेडान प्रकृति में नहीं पायी जाती। यह उच्च रेडियोएक्टिव गैस है, जिसका उपयोग रेडियोधर्मी अनुसंधानों तथा कैंसर की शल्य क्रिया रहित उपचार में होता है।
हीलियम की खोज फ्रेकलैण्ड व लाकियर ने की। यह हाइड्रोजन को छोड़कर अन्य समस्त गैसों से हल्की है। अज्वलनशील होने के कारण हीलियम वायुयान के टायरों एवं गुब्बारों के भरने में प्रयुक्त होती है।
हीलियम तापमापी, निम्न तापमिति में उपयोग में लाये जाते हैं।
हीलियम का उपयोग खाद्य-पदार्थों की सुरक्षा हेतु भी किया जाता है।