हिंदी माध्यम नोट्स
पद्मपाणि बोधिसत्व चित्र कहां से मिला है ? बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र , बोधिसत्व का अर्थ क्या होता है
प्रश्न : पद्मपाणि बोधिसत्व चित्र कहां से मिला है ? बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र , बोधिसत्व का अर्थ क्या होता है ?
उत्तर : बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र “अजंता की गुफा” से मिलता है |
अन्य ज्ञान : मथुरा से बुद्ध एवं बोधिसत्वों की खडी तथा बैठी मद्रा में बनी हई मूर्तियाँ मिली हैं। उनके व्यक्तित्व में चक्रवर्ती तथा योगी दोनों का ही आदर्श देखने को मिलता है। बुद्ध मर्तियों में कटरा से प्राप्त मूर्ति विशेष रूप से उल्लखनीय है जिसे चैकी पर उत्कीर्ण लेख में बोधिसत्व की संज्ञा दी गयी है। इसमें बुद्ध को भिक्षु वेष धारण किये हुए दिखाया गया है। व बोधिवक्ष के नीचे सिंहासन पर विराजमान हैं तथा उनका दायां हाथ अभय मुद्रा में ऊपर उठा हुआ है। उनका हथली तथा तलवों पर धर्मचक्र तथा त्रिरत्न के चिहन बनाय गये हैं। बुद्ध के दोनों ओर चामर लिये हुए पुरुष हैं तथा ऊपर से देवताओं को उनके ऊपर पुष्प की वर्षा करते हए दिखाया गया है। बुद्ध के पीछे वृत्ताकार प्रभामण्डल प्रदाशत किया गया है। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व की मर्तियों में हमें प्रभामण्डल दिखाई नहीं देता। अनेक विद्वान् इसके पीछे ईरानी प्रेरणा स्वीकार करते हैं जहां देव मूर्तियों के पृष्ठभाग में प्रभामण्डल बनाने की प्रथा थी। इस प्रकार समग्र रूप से यह मूर्ति कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त प्रशंसनीय है।
अभयमुद्रा में आसीन बुद्ध की एक मूर्ति अन्योर से मिली है जिसे बोधिसत्व की संज्ञा दी गयी है। बुद्ध मूर्तियों के अतिरिक्त मैत्रेय, काश्यप अवलोकितेश्वर आदि बोधिसत्व-मूर्तियाँ भी मथुरा से मिलती हैं।
प्रश्न: कुषाण कालीन मूर्तिकला की मथुरा शैली का विशद वर्णन कीजिए।
उत्तर: कुषाण काल में मथुरा भी कला का प्रमुख केन्द्र था जहां अनेक स्तूपों, विहारों एवं मूर्तियों का निर्माण करवाया गया। इस समय तक शिल्पकारी एवं मूर्ति निर्माण के लिये मथुरा के कलाकार दूर-दूर तक प्रख्यात हो चुके थे। दुर्भाग्यवश आज वहां एक भी विहार शेष नहीं है। किन्तु यहां से अनेक हिन्दू, बौद्ध एवं जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इनमें अधिकांशतः कुषाण युग की हैं। कनिष्क, हुविष्क तथा वासुदेव के काल में मथुरा कला का सर्वोत्कृष्ट विकास हुआ। प्रारम्भ में यह माना जाता था कि गन्धार की बौद्ध मूर्तियों के प्रभाव एवं अनुकरण पर ही मथुरा की बौद्ध मूर्तियों का निर्माण हुआ थाय परन्तु अब यह स्पष्टतः सिद्ध हो चुका है कि मथुरा की बौद्ध मूर्तियां गन्धार से सर्वथा स्वतंत्र थी तथा उनका आधार मूल रूप से भारतीय ही था। वासुदेव शरण अग्रवाल के मतानुसार सर्वप्रथम मथुरा में ही बुद्ध मूर्तियों का निर्माण किया गया जहां इनके लिये पर्याप्त धार्मिक आधार था। उनकी मान्यता है कि कोई मूर्ति तब तक नहीं बनाई जा सकती जब तक उसके लिये धार्मिक मांग न हो। मर्ति की कल्पना धार्मिक भावना की तुष्टि के लिये होती है। इस बात के प्रमाण हैं कि ईसा पर्व पहली शताब्दी में मथरा भक्ति आंदोलन का केन्द्र बन गया था जहां संकर्षण, वासुदेव तथा पंचवीरों (बलराम, कृष्ण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध तथा साम्ब) की प्रतिमाओं के साथ ही साथ जैन तीर्थकरों की प्रतिमाओं का भी पूर्ण विकास हो चुका था। इसका प्रभाव बौद्ध धर्म पर पड़ा। फलस्वरूप बौद्धों भी बुद्ध मूर्ति के निर्माण की आवश्यकता प्रतीत हुई। कनिष्क के शासनकाल में महायान बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण प्राप्त हो गया। इसमें बुद्ध की मूर्तिरूप में पूजा किये जाने का विधान था। बौद्धों की तप्ति अब केवल प्रतीक पूजा से नहीं हो सकती थी। उन्हें बुद्ध को मानव मूर्ति के रूप में देखने की आवश्यकता प्रतीत हई और इसी भावना से मथुरा के शिल्पियों द्वारा पहले बोधिसत्व तथा फिर बुद्ध मूर्तियों का निर्माण किया। जहां तक गंधार का प्रश्न है हमें वहां किसी भी प्रकार के धार्मिक आंदोलन का प्रमाण नहीं मिलता है। यह नहीं कहा जा सकता कि मथुरा या गंधार के किसी शिल्पी ने क्षणिक भावावेश में आकर बुद्ध मूर्ति की रचना कर ली हो। अपितु यही मानना तर्कसंगत है कि बुद्धमूर्ति रचना की पृष्ठभूमि काफी पहले से ही प्रस्तुत की गयी होगी और यह पृष्ठभूमि मथरा के धार्मिक आंदोलन से तैयार हुई। मथुरा से कुछ ऐसी बोधिसत्व प्रतिमायें मिली हैं जिन पर कनिष्क संवत् की प्रारंभिम तिथियों में लेख खदे हैं। इसके विपरीत गंधार कला की मूर्तियों में से एक पर भी कोई परिचित संवत नहीं है। जो तीन-चार तिथियाँ मिलती हैं उनके आधार पर गंधार कला का समय पहली से तीसरी शती ईसवी के बीच ठहरता है। इस प्रकार मथरा की बौद्ध प्रतिमा लक्षण के चिह्न जैसे पद्मासन, ध्यान, नासाग्रदृष्टि, उष्णीश आदि मिलते हैं उनका स्रोत भारतीय ही है न कि ईरानी तथा यूनानी। स्पष्टतः गंधार के शिल्पकारों ने इन प्रतिमालक्षणों को मथुरा के शिल्पियों से ही ग्रहण किया था जो उनके पूर्व इन प्रतिमालक्षणों से युक्त बोधिसत्व तथा बुद्ध की बहुसंख्यक प्रतिमाओं का निर्माण कर चके थे। इस प्रकार स्पष्ट है कि बुद्ध मूर्तियाँ सर्वप्रथम मथुरा में ही गढ़ी गयी। यदि वे गंधार में विदेशी कलाकारों द्वारा गढी गयी होती तो उनमें प्रतिमालक्षण के विविध चिहन कादपि नहीं आये होते क्योंकि यूनानी तथा ईरानी कला में टुन लक्षणों का अभाव था। अग्रवाल महादेय ने मथुरा की बोधिसत्व तथा बुद्ध प्रतिमाओं का स्रोत यक्ष प्रतिमाओं (विशेषकर परखम यक्ष जैसी बड़ी प्रतिमाओं) को माना है।
मैत्रेय, भविष्य में अवतार लेने वाले बुद्ध हैं। मान्यता के अनुसार शाक्य बुद्ध के परिनिर्वाण के चार हजार वर्षों पश्चात् उनका जन्म होगा। मैत्रेय मूर्तियों में उनका दायां हाथ अभय मुद्रा में अथवा कमल नाल लिये हुए तथा बायां हाथ अमृत घट लिये हुए दिखाया गया है। काश्यप को सप्तमानुषी बुद्धों में गिना जाता है। इनका चित्रण भी मिलता है। वे मूर्तियाँ सफेद, चित्तीदार, लाल एवं रवादार पत्थर से बनी हैं। गन्धार मूर्तियों के विपरीत वे सभी आध्यात्मिकता एवं भावना प्रधान हैं। अनेक मूर्तियाँ वेदिका स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं। बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें भी स्तम्भों पर मिलती हैं। जन्म, अभिषे, महाभिनिष्क्रमण, सम्बोध, धर्मचक्रप्रवर्तन, महापरिनिर्वाण आदि उनके जीवन की विविध घटनाओं का कुशलतापूर्वक अंकन मथुरा कला के शिल्पियों द्वारा किया गया है। यहां के कलाकारों ने ईरानी तथा यूनानी कला के कुछ प्रतीकों को भी ग्रहण कर उन पर भारतीयता का रंग चढ़ार दिया। यही कारण है कि मथुरा की कुछ बुद्ध मूर्तियों में गंधार मूर्तियों के लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे – कुछ मूर्तियों में मूंछ तथा पैरों में चप्पल दिखाई गयी है। कुछ उपासकों की भी मूर्तियाँ हैं जो अपने हाथ जोड़े हुए तथा माला ग्रहण किये हुए प्रदर्शित किये गये हैं। कुछ दृश्य महाभारत की कथाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मथुरा शैली में शिल्पकारी के भी सुन्दर नमूने मिलते हैं। बुद्ध एवं बोधिसत्व मूर्तियों के अतिरिक्त मथुरा से कनिष्क की एक सिररहित मूर्ति मिली है जिस पर श्महाराज राजाधिराजा देवपुत्रों कनिष्कोंश् अंकित है। यह खड़ी मुद्रा में है तथा 5 फुट 7 इंच ऊँची है। राजा घुटने तक कोट पहने हुए है, उसके पैरों में भारी जूते हैं, दायाँ हाथ गदा पर टिका है तथा वह बायें हाथ से तलवार की मुठिया पकड़े हुए है। कला की दृष्टि से प्रतिमा उच्चकोटि की है जिसमें मूर्तिकार को सम्राट की पाषाण मूति बनाने में अद्भुत सफलता मिली है। इसमें मानव शरीर का यथार्थ चित्रण दर्शनीय है। यह मूर्ति भी यूनानी कला के प्रभाव से मुक्त है। इस श्रेणी की दूसरी मूर्ति वेम तक्षम (विम कडफिसेस) की है जो सिंहासनासीन है। सिंहासन के आगे दोनों ओर दो सिंहों की आकृतियां हैं। सम्राट नक्काशीदार कामदानी वस्त्र ओढ़े हुए हैं। इसके नीचे छोटी कोट तथा पैरों में जूते दिखाये गये हैं। शिल्प की दृष्टि से इसे सम्राट का यथार्थ रूपांकन कहा जा सकता है। मजूमदार का विचार है कि इसका निर्माता कोई ईरानी शिल्पकार था।
मथुरा के शिल्पियों ने बुद्ध-बोधिसत्व मूर्तियों के अतिरिक्त हिन्दू एवं जैन मूर्तियों का भी निर्माण किया था। हिन्दू देवताओं में विष्णु, सूर्य, शिव, कुबेर, नगर, यक्ष की पाषाण प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो अत्यन्त सुन्दर एवं कलापूर्ण हैं। मथुरा तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों से अब तक चालीस से भी अधिक विष्णु मूर्तियों प्राप्त हो चुकी हैं। अधिकांश चतुर्भुजी हैं। इनक तीन हाथ में शंख, चक्र, गदा दिखाया गया है और चैथा हाथ अभय मुद्रा में ऊपर उठा हुआ है। इनकी बनावट बोधिसत्व मैत्रेय की मूर्तियों जैसी है। उल्लेखनीय है कि विष्णु का लोकप्रिय प्रतीक पद्म मथुरा की कुषाणकालीन मूर्तियों में नहा मिलता। कुछ मूर्तियों में गरुड का भी अंकन मिलता है। विष्णु के अवतारों से संबंधित मर्तियां प्रायः नहीं मिलती। मात्र वाराह अवतार की एक प्रतिमा तथा कृष्ण लीलाओं से संबंधित दो दृश्यांकन मिले हैं। मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित एक शिलापट्ट पर बालक कृष्ण को सिर पर लाद. कर गोकुल ले जाते हुए वसुदेव तथा दूसरे पर कृष्ण द्वारा अश्व रूप धारण कर केशी असुर पर पैर से प्रहार करते हुए चित्रित किया गया है। वाराह प्रतिमा खण्डित अवस्था में मिलती ह। छाती पर श्श्रीवत्सश् प्रतीक अंकित है। शिव प्रतिमायें लिंग तथा मानव दोनों रूपों से मिलती हैं। शिव लिंग कई प्रका हैं जैसे – एक मुखी, दो मुखी, चार मुखी, पांच मुखी आदि। शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी पार्वती की प्रतिमा पहली बार संभवतः मथुरा में ही कुषाण कलाकारों द्वारा बनाई गयी थी। मथुरा में इस समय पाशुपत सम्प्रदाय के अनुयाया संख्या में निवास करते थे। उनमें लिंग पूजा का व्यापक प्रचलन था। यही कारण है कि यहां अनेक प्रकार के लि निर्माण किया गया। इस काल की शिव मूर्तियों में जटा जट, मस्तक पर तीसरा नेत्र, त्रिशूल तथा वाहन नन्दी का प्रमा किया गया है। अर्ध नारीश्वर रूप में (जिसमें आधा भाग शिव तथा आधा पार्वती का है) शिव की मूर्ति प्रथम बार २० काल में मथुरा में तैयार की गयी थी। शिव की विविध रूपों वाली मूर्तियां कलात्मक दृष्टि से काफी सुन्दर हैं।
मथुरा काला में सूर्य प्रतिमाओं का भी निर्माण किया गया। ईरानी प्रभाव के कारण इन्हें सर्वथा भिन्न प्रकार से तयार गया हा मानव रूप से सूर्य को लम्बी कोट. पतलन तथा बट पहने हए दो या चार घोडों के रथ पर सवार दिखाया गया है। उनक सिर पर गोल तथा चपटी टोपी. कंधों पर लहराते केश तथा मंह पर नकीली मँछे दिखाई गयी हैं। इसी प्रकार का वशभूषा कुषाण राजाओं की मर्तियों में भी देखने को मिलती है। स्पष्टतः यह ईरानी परम्परा है। आर.जी. भण्डारकर का विचार है कि भारत में सूर्य की पजा ईरान से यहां आने वाले मग नामक परोहितों द्वारा प्रारंभ की गयी थी। हिन्दू धम क इन प्रमुख देवताओं के अतिरिक्त मथरा की कषाणकालीन कला में कार्तिकेय, कबेर. इन्द्र. गणेश. अग्नि आदि का मूतिया ही बनाई गयी। लोळ देवताओं में म न नागों शवों आदि की प्रतिमायें मिलती हैं। देवा मातया म ष् ष् बारीति सप्तमातका आदि हैं। लक्ष्मी को कमल पर बैठी हई (पदमासना) मद्रा में दिखाया गया ह। वा.एस. श् श् लक्ष्मी की एक ऐसी अनुपम मूर्ति का उल्लेख किया है जो कमलों से भरे पूर्णघट पर खड़ी है। अपने बायें हाथ से दुग्ध धारिणी मुद्रा में दूध की धार छोड़ती हुई दिखाई गयी है। उसके पीछे सनाल कमलों का सुन्दर चित्रण हुआ है जिसका उठती हई बेल पर मोर-मोरनी का जोडा बना है। वह किसी प्रतिभाशील कुषाण शिल्प की उत्तम कृति है। ष् चतुर्भुजी मूर्तियां मिलती हैं। कई मूर्तियाँ महिषमर्दिनी रूप की हैं। सप्तमातृकाओं (ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारी, माहेश्वरी, तथा चामुण्डा) की मूर्तियों में उन्हें साधारण वेश में घाघरा पहने हुए दिखाया गया है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…