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पंचायतीराज व्यवस्था : प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण , पंचायती राज नोट्स , पंचायत राज व्यवस्था , महत्व , सम्बंधित प्रश्न
panchayat raj vyvstha , पंचायतीराज व्यवस्था : प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण , पंचायती राज नोट्स , पंचायत राज व्यवस्था , महत्व , सम्बंधित प्रश्न :-
भारतीय संविधान में 73 वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतीराज
व्यवस्था को संवैधानिक ढँ़ाचे के रूप में स्थापित किया गया। इसके
तहत् अनुच्छेद (243) के अंतर्गत 16 अनुच्छेद तथा अनुसूची गप के
अंतर्गत 29 विषयों को जोड़ा गया।
संविधान में पंचायतीराज व्यवस्था के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए
गए हैं-
अनुच्छेद (243)ः
1 ‘‘जिला’’ से किसी राज्य का जिला अभिप्रेत है.
2 ‘‘ग्राम सभा’’ से ग्राम स्तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर
समाविष्ट किसी ग्राम से संबंधित निर्वाचक नामावली में
रजिस्ट्रीकृत व्यक्तियों से मिलकर बना निकाय अभिप्रेत है.
3 ‘‘मध्यवर्ती से स्तर’’ से ग्राम और जिला स्तरों के बीच का
ऐसा स्तर अभिप्रेत है जिसे किसी राज्य का राज्यपाल, इस
भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, मध्यवर्ती
स्तर के रूप में विनिर्दिष्ट करे.
4 ‘‘पंचायत‘‘ से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अनुच्छेद 243 ख के
अधीन गठित स्वायत्त शासन की कोई संस्था (चाहे वह
किसी भी नाम से ज्ञात हो) अभिप्रेत है.
5 ‘‘पंचायत क्षेत्र’’ से पंचायत का प्रादेशित क्षेत्र अभिप्रेत है.
6 ‘‘जनसंख्या’’ से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित
की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े
प्रकाशित हो गए हैं.
7 ‘‘ग्राम’’ से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजनों के लिए,
लोक अधिसूचना द्वारा ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट ग्राम अभिप्रेत
है और इसके अंतर्गत इस प्रकार विनिर्दिष्ट ग्रामों का समूह
भी है।
243 क.ग्राम सभा ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शक्तियों का
प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन कर सकेगी, जो किसी
राज्य के विधान-मंडल द्वारा उपबंधित किए जाएं।
243 ख. पंचायतों का गठन
(1) प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर पंचायतों
का गठन किया जाएगा।
(2) मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का उस राज्य में गठन नही किया
जा सकेगा जिसकी जनसंख्या बीस लाख से कम है।
243 ग. पंचायतों की संरचना
(1) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा पंचायतों की
संरचना का उपबंध कर सकेगाः परंतु किसी भी स्तर पर
पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या का ऐसी पंचायत
में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या की संख्या
से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक हीं हो।
(2) किसी पंचायत के सभी स्थान, पंचायत क्षेत्र में प्रादेशिक
निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए व्यक्तियों से
भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के लिए प्रत्येक पंचायत क्षेत्र
को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया
जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनंसख्या का उसको
आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त पंचायत क्षेत्र
में यथासाध्य एक ही हो।
(3) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,-
(क) ग्राम स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का मध्यवर्ती स्तर
पंचायतों में या ऐसे राज्य की दशा में, जहां मध्यवर्ती स्तर
पर पंचायतें नहीं है, जिला स्तर पर पंचायतों में.
(ख) मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का जिला स्तर पर
पंचायतों में.
(ग) लोक सभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान सभा
के ऐसे सदस्यों का, जो उन निर्वाचन-क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व
करते हैं जिनमें ग्राम स्तर से भिन्न स्तर पर कोई पंचायत
क्षेत्र पूर्णतः या भागतः समाविष्ट है, ऐसी पंचायत में.
(घ) राज्य सभा के सदस्यों का और राज्य की विधान परिषद के
सदस्यों का, जहां वे,-
(प) मध्यवर्ती स्तर पर किसी पंचायत क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के
रूप में रजिस्ट्रीकृत है, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में.
(पप) जिला स्तर पर किसी पंचायत क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के
रूप में रजिस्ट्रीकृत है, जिला स्तर पर पंचायत में,
प्रतिनिधित्व करने के लिए उपबंध कर सकेगा।
(4) किसी पंचायत के अध्यक्ष और किसी पंचायत के ऐसे अन्य
सदस्यों को, चाहे वे पंचायत क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों
से प्रत्यक्ष का निर्वाचन चुने गए हों या नहीं पंचायतों के
अधिवेशनों में मत देने का अधिकार होगा।
(5) (क) ग्राम स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन
ऐसी रीति से, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा,
उपबंधित की जाए, किया जाएगा और
(ख) मध्यवर्ती स्तर या जिला स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष
का निर्वाचन,उसके निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से किया
जाएगा।
243 घ. स्थानों का आरक्षण (1) प्रत्येक पंचायत में-
(क) अनुसूचित जातियों; और
(ख) अनुसूचित जनजातियों, के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और
और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, उस
पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की
कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो उस पंचायत क्षेत्र
में अनुसूचित जातियों की अथवा उस पंचायत क्षेत्र में
अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र
की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी पंचायत में
भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए
जा सकेंगे ।
(2) आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई
स्थान, यथास्थिति, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों
की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे।
(3) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों
की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई स्थान (जिनके
अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की
स्त्रियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या भी है) स्त्रियों के
लिए अरिक्षत रहेंगे और ऐसे स्थान किसी पंचायत में
भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए
जा सकेंगे।
(4) ग्राम या किसी अन्य स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पद
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और स्त्रियों के
लिए ऐसी रीति से आरक्षित रहेंगे जो राज्य का विधान-मंडल,
विधि द्वारा, उपबंधित करेंः
परंतु किसी राज्य में प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अनुसूचित
जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित अध्यक्षों
के पदों की संख्या का अनुपात, प्रत्येक स्तर पर उन
पंचायतों में ऐसे पदों की कुल संख्या से यथाशक्य वही
होगा, जो उस राज्य में अनुसूचित जातियों की अथवा उस
राज्य में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात
उस राज्य की कुल जनसंख्या से हैः
परंतु यह और कि प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के
पदों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई पद स्त्रियों
के लए आरक्षित रहेंगे तथा आरक्षित पदों की संख्या प्रत्येक
स्तर पर भिन्न-भिन्न पंचायतों को चक्रानुक्रम से आबंटित की
जाएगी।
(5) खंड (1) और (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड
(4) के अधीन अध्यक्षों के पदों का आरक्षण (जो स्त्रियों के
आरक्षण से भिन्न है) अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की
समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा।
(6) किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के
किसी वर्ग के पक्ष में किसी स्तर पर किसी पंचायत में स्थानों
के या पंचायतों में अध्यक्षों के पदों के आरक्षण के लिए
उपबंध करने का अधिकार होगा।
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