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नेहरू कमेटी की रिपोर्ट क्या थी ? इसका विरोध किनके द्वारा किया गया ? किसने तैयार की थी दो विशेषताएं बताइए
नेहरू रिपोर्ट कब व किसने प्रस्तुत की नेहरू कमेटी की रिपोर्ट क्या थी ? इसका विरोध किनके द्वारा किया गया ? किसने तैयार की थी दो विशेषताएं बताइए ? nehru committee report in hindi why was the report formed ?
प्रश्न: नेहरू कमेटी की रिपोर्ट क्या थी ? इसका विरोध किनके द्वारा किया गया?
उत्तर: भारतीय राजनीतिक समस्या के समाधान के लिए बुलाए गए सर्वदलीय सम्मेलन दिल्ली (1928) में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई जिसे नेहरू कमेटी कहते हैं। मई, 1928 में नेहरू कमेटी ने अपनी निम्नलिखित रिपोर्ट दी।
पप. कमेटी ने नागरिक अधिकारों की स्वतंत्रता तथा धर्म या जातिगत आधार पर भेदभाव की समाप्ति का समर्थन तथा सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विरोध किया गया।
पप. कमेटी ने सरकार से उत्तरदायी सरकार एवं अधिराज्य की मांग की और इसे स्पष्ट किया गया।
अगस्त. 1928 में लखनऊ में सर्वदलीय कांग्रेस बुलाई गई वहां नेहरू रिपोर्ट की सिफरिशों को स्वीकार किया गया, लेकिन मुस्लिम लीग इससे असहमत होकर अलग हो गई। 1929 में आगा खां के नेतृत्व में दिल्ली में मुस्लिम लीग का अधिवेशन हुआ, इसमें मुहम्मद सफी सहित अनेक नेताओं ने रिपोर्ट का विरोध किया। मुहम्मद अली जिन्ना ने अपनी ओर से रिपोर्ट के विरूद्ध 14 सूत्रीय सिद्धान्त प्रस्तुत कर दिए।
प्रश्न: कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929) की प्रमुख मांगे क्या थी?
उत्तर: जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में 31 दिसम्बर, 1929 को रावी नदी के तट पर कांग्रेस का लाहौर में वार्षिक अधिवेशन हुआ। जिसमें पूर्ण स्वराज की मांग की गई साथ ही 30 जनवरी, स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इसमें तय किया गया कि यदि सरकार ने कांग्रेस की पूर्ण स्वराज की मांग नहीं मानी तो कांग्रेस गांधी जी के नेतृत्व में एक सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ देगी।
प्रश्न: “कांग्रेस के करांची अधिवेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी मूल अधिकारों एवं आर्थिक कार्यक्रमों का प्रस्तावों की घोषणा।‘‘ वर्णन कीजिए।
उत्तर: सरदार भाई पटेल की अध्यक्षता में मार्च, 1931 में करांची में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें गांधी-इरविन पैक्ट का अनुमोदन किया गया। इसमें मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से संबंधित प्रस्ताव पारित किये गए जिसका एजेंडा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बनाया, वे थे-
1. मूल नागरिक अधिकारों में भाषण की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, विधानसभा की स्वतंत्रता एवं संघ बनाने की स्वतंत्रता
2. कानून के समक्ष समानता
3. सार्वभौतिक वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव
4. निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा
5. किराया और करों में पर्याप्त कमी
6. एक जीवित मजदूरी सहित कामदारों के लिए बेहतर शर्ते एव काम के सीमित घंटे
7. महिलाओं और किसानों के संरक्षण
8. अल्पसंख्यकों का संरक्षण
9. प्रमुख उद्योगों, खानों और परिवहन पर सकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण।
प्रश्न: ऐटली की घोषणा क्या थी ? इसका भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1. 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऐटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में यह घोषणा की कि सम्राट की सरकार 30 जून, 1948 तक भारत की प्रभुसत्ता भारतीयों के हाथ में सौंप देगी। यदि लीग संविधान सभा का बहिष्कार जारी रखेगी तो हमें सोचना होगा कि अंग्रेजी प्रदेशों की केन्द्रीय प्रभुसत्ता निश्चित तिथि तक किसको सौपी जाये।
2. किसी केन्द्रीय सरकार को, प्रदेशों की सरकार को या अन्य को जो भारतीयों लोगों के हित में हो, अर्थात जून, 1948 अंतिम तिथि दे दी गई। अंग्रेज चले जाएंगे, भारत का विभाजन संभव है। इसलिए लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही आंदोलन को और प्रचण्ड कर दिया।
प्रश्न: बाल्कन योजना क्या थी? इसके प्रति नेहरू का दृष्टिकोण क्या था?
उत्तर:
1. इसके अन्तर्गत सभी प्रान्तों को पृथक रूप से सत्ता का स्थानान्तरण करना था।
2. इसमें सभी देशी रियासतों का पृथक रूप से सत्ता का स्थानान्तरण।
3. बंगाल व पंजाब की विधायिका को यह विकल्प कि वे अपने प्रान्त के विभाजन के लिए निर्णय ले सकें।
4. देशी राजाओं को तीन विकल्प दिये गये- भारत के साथ मिले, पाकिस्तान के साथ मिले या स्वतन्त्र रहें।
5. कुछ संशोधनों के साथ ब्रिटिश कैबिनेट द्वारा स्वीकृति।
6. 15-16 अप्रैल को गर्वनरों के सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया।
7. मई प्रथम सप्ताह में ब्रिटिश कैबिनेट से स्वीकृत।
8. 10 मई, 1947 को शिमला में नेहरू को इस बारे में बताया गया। जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
प्रश्न: 1947 में भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर: ब्रिटिश शासन द्वारा भारत में अपने साम्राज्य को बनाये रखने के लिए ‘फूट डालो और राज्य करो‘ की नीति का पालन किया गया था। इसी नीति के तहत ब्रिटिश सरकार ने 1909 के एक्ट द्वारा मुसलमानों को ‘साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व‘ प्रदान किया। इस पद्धति ने भारत के राष्ट्रीय जीवन में जिस विष का संचार किया, उसकी चरम परिणति ही पाकिस्तान था। साथ ही, पाकिस्तान की मांग तथा मुस्लिम पृथकतावाद की पराकाष्ठा के लिए कुछ अंशों में हिन्दू सम्प्रदायवाद और हिन्द महासभा जैसे कतिपय संगठन भी दोषी कहे जा सकते हैं।
1946-47 के साम्प्रदायिक दंगों एवं उपद्रव ने भी भारत में विभाजन की रूपरेखा तैयार कर दी। 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस‘ के अवसर पर कलकत्ता में 7000 व्यक्ति मारे गये। इसी प्रकार की घटनाएं नोआखली और त्रिपुरा में हुई, जिसकी प्रतिक्रिया बिहार, गढ़मुक्तेश्वर एवं पंजाब में हुई। इसके अलावा अंतरिम सरकार की असफलता, जिन्ना की हठधर्मिता, लीग के प्रति व्यवहार में कांग्रेस की भूलें, लॉर्ड माउण्टबेटन के प्रभाव एवं सत्ता को प्रति आकर्षण आदि तत्त्वों ने भी भारत के विभाजन में प्रमुख भूमिका निभायी।
प्रश्न: कांग्रेस ने देश के विभाजन को आखिरकार क्यों और किस प्रकार स्वीकार किया था ?
उत्तर: कांग्रेस ने पाकिस्तान की मांग विवशतावश स्वीकार की।. कांग्रेस द्वारा पाकिस्तान की मांग स्वीकार करने के निम्नलिखित कारण थे-
1. हिंदू-मुस्लिम दंगे रोकने का यह एकमात्र रास्ता था। देश के पूर्वी एवं पश्चिमी भाग सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहे थे। ऐसा माना गया कि विभाजन स्वीकार करने के पश्चात् शांति स्थापित हो सकेगी।
2. तत्काल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इस मांग को स्वीकार किया गया।
3. विशाल एवं कमजोर भारत की तुलना में लघु, संगठित एवं मजबूत भारत को स्वीकार किया गया।
4. ‘खंडित पाकिस्तान‘ को जिन्ना द्वारा स्वीकार करना।
प्रश्न: स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर कृषक विद्रोह की प्रमुख घटनाएं क्या थी? विवेचना कीजिए।
उत्तर: क्रांति की इस लहर से हमारे देश के किसान भी अलग न रहे। 1945 के अंत और 1946 के आरंभ से किसानों का संग्राम जोर पकड़ता गया और कम-से-कम तीन संघर्ष तेभागा, तेलंगाना और पुन्नप्रा-वायालार ऐतिहासिक संघर्ष बन गए। तेलंगाना उस वक्त निजाम द्वारा शासित हैदराबाद रियासत का अंग था। यहां के तेलगुभाषी किसानों का आंदोलन था। जब उनसे कम दाम पर जबरदस्ती गल्ला वसूल किया जा रहा था। तेलंगाना के किसानों के विद्रोह का तात्कालिक कारण पुलिस द्वारा कमरय्या की हत्या था। कमरय्या कम्युनिस्ट थे और स्थानीय किसान सभा के संगठनकर्ता थे। किसानों के इस विद्रोह का नेतृत्व हैदराबाद के कम्युनिस्टों और आंध्र महासभा ने किया।
पुन्नप्रा-वायालार का संघर्ष किसानों और मजदूरों का मिला-जुला संघर्ष था जो सामंतों और शोषण के विरुद्ध था। यह रियासत अब केरल राज्य का अंग है। तेभागा आंदोलन बंगाल में उस समय आरंभ हुआ जब साम्राज्यवादी, प्रतिक्रियावादी शक्तियों को उभार रहे थे और कलकत्ता, नोआखाली वगैरह में सांप्रदायिक दंगों की आग लगा रहे थे। बंगाल के किसानों का यह आंदोलन एकता का प्रतीक बनकर आरंभ हुआ, जहां हिंदू मुसलमान और आदिवासी थे। इसके अलावा पंजाब, संयुक्त प्रांत, बिहार और महाराष्ट्र में भी किसान आंदोलन ने काफी जोर पकड़ा।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: कांग्रेस की स्थापना से पूर्व भारत में स्थापित राजनीतिक संस्थाओं के बारे में बताइए।
उत्तर:
ऽ कांग्रेस की स्थापना से पूर्व भारत में अनेक राष्ट्रीय संगठनों की स्थापना हुई जिनका उद्देश्य अपने-अपने निर्धारित क्षेत्र में भारतीय राजनीति को नई दिशा देना था।
ऽ 1836 ई. में बंगाल में ‘बंगभाषा प्रकाशन सभा‘ गठित की गई। इस संस्था ने सरकार की नीतियों की समीक्षा एवं सुधार कार्यों के लिए सरकार को प्रार्थना पत्र दिया।
ऽ 1838 ई. में द्वारकानाथ टैगोर ने कलकत्ता में लैंड होल्डर्स सोसायटी की स्थापना की। यह भारत की प्रथम राजनीतिक संस्था थी। इसका उद्देश्य जमींदारों के हितों की रक्षा करना था। प्रसन्न कुमार ठाकुर, राधाकान्त देव आदि इसके अन्य प्रमुख सदस्य थे। यह सोसायटी ब्रिटेन में एडम्स द्वारा 1839 ई. में स्थापित ‘ब्रिटिश इण्डिया ऐसोसिएशन‘ से भी सहयोग करती थी।
ऽ 1843 ई में कलकत्ता में ‘बंगाल ब्रिटिश ऐसोसिएशन‘ की स्थापना हुई। इसकी स्थापना में भी द्वारकानाथ टैगोर का हाथ था। अनेक अंग्रेज भी इसके सदस्य थे। संस्था ने अंग्रेजी शासन के अंतर्गत भारतीय जनता की वास्तविक स्थिति को जानने का प्रयास किया। जार्ज थाम्पसन नामक अंग्रेज ने एक बार इसकी अध्यक्षता भी की।
ऽ 1851 ई. में लैंडहोल्डर्स सोसायटी एवं बंगाल ब्रिटिश एसोसिएशन को मिलाकर कलकत्ता में ‘ब्रिटिश इंडियन ऐसोसिएशन‘ की स्थापना हुई। इसके संस्थापकों में राधाकांत देव, देवेन्द्र नाथ टैगोर, राजेन्द्र लाल मित्र तथा हरिशचन्द्र मुखर्जी शामिल थे। इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य भारतीयों के लिए राजनैतिक अधिकारों की मांग करना था। इसके प्रथम अध्यक्ष राधाकान्त देव थे। हिन्दू पैट्रियाट इसका मुख पत्र था।
ऽ 1852 ई. में बम्बई एसोसिएशन की स्थापना डॉ. भाउदाजी द्वारा की गई।
ऽ 1852 ई. में मद्रास नेटिव ऐसोसिएशन की स्थापना हुई।
ऽ 1866 ई. में दादा भाई नौरोजी ने लन्दन में ‘ईस्ट इंडिया ऐसोसिएशन‘ की स्थापना की। दादा भाई नौरोजी को ‘ग्रान्ड ओल्ड मेन ऑफ इंडिया‘ और ‘मि. नैरो मेजोरिटी‘ के नाम से भी जाना जाता है।
ऽ 1857 ई. में इंडियन लीग की स्थापना शिशिर कुमार घोष ने बंगाल में की।
ऽ 1876 ई. में ‘इंडियन एसोसिएशन‘ की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने आनन्द मोहन बोस के सहयोग से कलकत्ता में की। यह कांग्रेस से पूर्व अखिल भारतीय स्तर की संस्था की। इसने सिविल सेवा परीक्षा में सुधार की माँग की तथा इल्बर्ट बिल जैसे विवादों को लेकर आन्दोलन चलाया।
ऽ 1867 ई. में पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना महादेव गोविन्द रानाडे व जी.वी. जोशी ने पूना में की।
ऽ 1883 ई. में इल्बर्ट बिल आंदोलन के परिणामस्वरूप इंडियन ऐसोसिएशन ने कलकत्ता में ‘ऑल इण्डिया नेशनल कॉन्फ्रेंस‘ नामक एक अखिल भारतीय संगठन का आयोजन किया। इसकी स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने की तथा प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता आनन्दमोहन बोस ने की। नेशनल कॉन्फ्रेस का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन कलकत्ता में 1885 ई. में आयोजित हुआ। इसी समय बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन चल रहा था। अतः सुरेन्द्रनाथ बनर्जी कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में शामिल नहीं हो पाये। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की नेशनल कांफ्रेस का 1886 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया।
ऽ 1884 ई. में ‘मद्रास महाजन सभा‘ की स्थापना ए.वी. राघव चेरियार, जी. सुब्रह्मण्यम अय्यर, गंजूलू लक्ष्मी नारसु तथा पी. आनन्द चारलू ने मद्रास में की। इसका उद्देश्य स्थानीय संगठनों व संस्थाओं के कार्यों का मूल्यांकन करना था।
ऽ 1885 ई. में ‘बम्बई प्रेसीडेन्सी ऐसोसिएशन‘ की स्थापना फिरोज शाह मेहता, बदरूद्दीन तैय्यबजी तथा के.टी. शाह तैलंग ने की।
ऽ 1883 में कलकत्ता में इण्डियन एसोसिएशन ने नेशनल कॉन्फ्रेंस नामक एक अन्य अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन आयोजित किया।
ऽ नेशनल कॉन्फ्रेस का दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलन कलकत्ता में उसी समय आयोजित किया गया जब बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन चल रहा था। इसीलिए कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी शामिल नहीं थे।
ऽ कांग्रेस से पूर्व स्थापित संगठन बड़े जमींदारों. या अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों के संगठन थे। इनका उद्देश्य अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाना नहीं था। लेकिन इन्होंने देश में राजनीतिक चेतना जगाने का कार्य किया। फिर भी कांग्रेस की इन पूर्वगामी संस्थाओं ने देश के विभिन्न भागों में राजनीतिक चेतना जगाने का अनोखा कार्य किया। 1885 में जिस ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस‘ की स्थापन हुई उसका पथ प्रशस्त करने में इन संस्थाओं का विशेष योगदान था।
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