JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

नुक्कड़ नाटक किसे कहते हैं , इतिहास क्या है , स्ट्रीट प्ले के उद्देश्य तथा विशेषताएं स्पष्ट कीजिए street play in hindi

street play in hindi नुक्कड़ नाटक के उद्देश्य तथा विशेषताएं स्पष्ट कीजिए नुक्कड़ नाटक किसे कहते हैं , इतिहास क्या है ?

नुक्कड़ नाटक (स्ट्रीट प्ले)
नुक्कड़ नाटक भारतीय परम्परा में संचार के एक माध्यम के तौर पर बेहद गहरे तक समाए हुए हैं। स्ट्रीट प्ले या थियेटर ने औपचारिक बंधनों को तोड़कर सीधे तौर पर जनता से जुड़े। इस नाटक रूप का प्रयोग सामाजिक एवं राजनीतिक संदेशों के प्रचार और सामाजिक मुद्दों के संदर्भ में लोगों के बीच जागरूकता फेलाने के लिए किया गया। इन नाटकों में कालाबाजारी एवं भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाया गया। नुक्कड़ नाटकों का प्रयोग चुनावों के दौरान राजनीतिक अस्त्र के रूप में भी किया गया। नुक्कड़ नाटकों में महिला संबंधी मामलों की थीम महत्वपूर्ण रही। 1980 में, मथुरा बलात्कार मामले को लेकर कई नुक्कड़ नाटक हुए ताकि कानूनों को अधिक कड़ा बनाया जाए। ओम स्वाहा नुक्कड़ नाटक में दहेज की मांग जैसी बुरी प्रथा को प्रस्तुत किया गया जिसका परिणाम शोषण एवं वधू की मृत्यु तक होती है।
हबीब तनवीर एवं उत्पल दत्त ने 1940 और 1950 में स्ट्रीट थियेटर का प्रयोग राजनीतिक उत्प्रेरक के तौर पर किया। स्ट्रीट थियेटर को 1970 में पुगर्जीवित किया गया और यह आंदोलन पूरे देश में फैला गया। देश में करीब 50 ऐसे समूह हैं, मुख्य रूप से शहरों एवं इनके उपनगरों में, जो स्ट्रीट थियेटर में क्रियाशील हैं।
भारतीय स्ट्रीट थियेटर एक कला रूप के तौर पर विकसित हुआ जिसने आम लोगों की भावनाओं को उजागर किया, इससे एक पूरी तरह से नवीन थिएटर रूप का जन्म हुआ। आम लोगों के दैनंदिन जीवन की समस्याओं एवं रूपों ने भारतीय स्ट्रीट थिएटर में आयाम प्राप्त किया जिसने इसे भारतीय नाट्य में एक विशेष वग्र के तौर पर खड़ा किया।
चार्जशीट (1949) कोलकाता में एक प्रारंभिक स्ट्रीट प्ले था। शुरुआती स्ट्रीट थियेटर मात्र संक्षेप में हुआ करते थे लेकिन 1967 में उत्पल दत्त का दिन बदलेर पाला बेहद विस्तृत था।
‘स्ट्रीट प्ले’ के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण नाम लिए जा सकते हैं। जैसे बादल सिरकर, प्रवीर गुहा, सफदर हाशमी,गुरचरण दास इत्यादि नाम हैं।
महिलाआंें का थियेटर
1970 में, सामाजिक रूप से संबद्ध थिएटर एवं महिलाओं के आंदोलनों का अभ्युदय हुआ। थियेटर के माध्यम से कई निषेध विषयों को स्वीकृति प्राप्त हुई। 1980 और 1990 में महिलाओं का विषय व्यापक तौर पर भारतीय थियेटर परिदृश्य में आया। यद्यपि 1970 में नारीवादी थियेटर भी एक सांस्कृतिक रूप में सामने आया।
1973 में सफदर हाशमी के जन नाट्य मंच या पीपुल्स थियेटर फ्रंट ने औरत (1979) नामक स्ट्रीट प्ले का मंच किया जिसमें वधू जलानाए पत्नी की पिटाई एवं दहेज जैसे विषयों को उठाया गया। महिला-केंद्रित मुद्दों पर थियेटर के ध्यान ने इंडियन पीपुल्स थियेटर मूवमेंट या आईपीटी, के विकास का माग्र प्रशस्त किया जो 1943 में सक्रिय हुआ था। पोडली सेनगुप्ता (अंग्रेजी), वर्षा अदलजा (गुजराती), मंजुला पद्मनाभन (अंग्रेजी), त्रिपुरारी शर्मा (अंग्रेजी एवं हिंदी), कुसुम कुमार (हिंदी), गीतांजलि श्री (हिंदी) इरपिंदर भाटिया (हिंदी), नीलम मानसिंह चैधरी (पंजाबी), बीनोदिनी (तेलुगू), बी. जयश्री (कन्नउद्ध,शनोली मित्रा (बंगाली), ऊषा गांगुली (हिंदी), शांता गांधी (गुजराती), सुषमा देशपांडे (मराठी), वीणापानी चावला (मराठी), एवं कुदसिया जाडी (उर्दू) कुछ मुख्य महिला नाटककार हैं।
प्रमुखा आधुनिक नाटकार
धर्मवीर भारतीः महाभारत युद्ध के बाद की परिस्थितियों को रेखांकित करता नाटक ‘अंधा युग’ नाट्यकर्मियों के लिए हमेशा ही चुनौती बना रहा। युद्ध की विभीषिका के बाद हुए विनाश और पीड़ा को दृष्टांकित करता धर्मवीर भारती का यह नाटक निर्देशन से लेकर अभिनय व अन्य पक्षों तक सफल रंगकर्मी की कसौटी है।
मोहन राकेशः 1960 के दशक में जीवन की कठिनाई भरी वास्तविकताओं से जूझती मानवीय संवेदनाओं की दुनिया में उतरकर नाटक लिखने वाले मोहन राकेश ने अपने संवेदनशील मस्तिष्क की उर्वरा शक्ति का भरपूर प्रयोग करते हुए कई नाटक लिखे और नाटककारों में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया। कालिदास के जीवन पर आधारित ‘आषाढ़ का एक दिन’ में जीवन की करुणा को बड़े ही सशक्त ढंग से उभारा गया है। ‘आधे-अधूरे’ में बिखरते हुए मध्यमवर्गीय परिवार का भय और हताशा, जिसमें घर की औरत परिवार को बांधने का प्रयास करती है, का मार्मिक वर्णन किया गया है। ‘लहरों के राजहंस’ नाटक भी भावनाओं पर आधारित एक मर्मस्पर्शी प्रस्तुति है।
विजय तेंदुलकरः भारतीय रंगमंच को उनके मराठी नाटक ‘शांताता कोर्ट चालू आहे’ से व्यापक लाभ हुआ। इसमें मध्यम वग्र की छुपी हुई क्रूरता को बखूबी उभारा गया है। नाटक के पूर्वाभ्यास के दौरान ही एक महिला चरित्र को अपशब्द और उग्रता झेलनी पड़ी थी। ‘सखाराम बाइंडर’ को हालांकि उसकी कथित अश्लीलता की वजह से प्रतिबंधित किया गया था, किंतु बाद में मंुबई उच्च न्यायालय ने इसके प्रदर्शन पर लगी रोक हटा दी। ‘गिधाले’ और ‘घासीराम कोतवाल’ भी इंसान में दबी हिंसा और यौनाचार की गहराई में जाकर पड़ताल करते हैं।
हबीब तनवीरः हबीब तनवीर ने मध्यप्रदेश की लोक परंपरा और आदिवासी नाट्यरूपों का प्रयोग कर भारतीय रंगमंच को नए आयाम दिए हैं। इस दिशा में किए गए अभिनव प्रयोगों को उनके नाटक ‘मिट्टी की गाड़ी’ में देखा जा सकता है। लोक एवं आदिवासी कलाकारों को लेकर उन्होंने एक नाट्यमंडली बनाई, जिसने छत्तीसगढ़ी में ‘चरनदास चोर’ का सफल मंचन किया। इसमें एक ऐसे चोर की कहानी है, जो अच्छे कामों के लिए अपना जीवन दे देता है।
गिरीश कर्नाडः कन्नड़ नाटकों के लेखक गिरीश कर्नाड ने अपने नाटक ‘ययाति’ और ‘तुगलक’ से अलग पहचान बनाई। संपूर्ण पुरुष की तलाश में भटकती औरत की मनोदशा का चित्रण ‘हयवदन’ में किया गया है। यह कथासरित्सागर के एक पौराणिक चरित्र पर आधारित है।
एक रोचक तथ्यः बब्बन खां का उर्दू प्रहसन ‘अदरक के पंजे’, छोटे परिवार का संदेश फैलाते एक व्यक्ति की कहानी; का पिछले 25 वर्षों में 7000 से भी अधिक बार मंचन हो चुका है। इस नाटक का अन्य सत्ताईस भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है।
थियेटर प्र्रोत्साहन के संस्थान
थियेटर को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए देश में कुछ खास संस्थाएं स्थापित की गईं।
राष्ट्रीय नाटक संस्थान (एनएसडी)ः नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा एक प्रशिक्षण संस्थान है जो नई दिल्ली में स्थित है। ई. अलकाजी के निर्देशन में इस संस्थान में आधुनिक भारतीय थिएटर के विकास में काफी योगदान दिया। संगीत नाटक अकादमी द्वारा 1959 में स्थापित यह संस्थान 1975 में पूरी तरह से स्वायत्त संस्थान बन गया तथा यह सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित है। 2005 में इसे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया लेकिन संस्थाने अनुरोध पर वर्ष 2011 में इस दर्जे को समाप्त कर दिया गया। यह रंगमंच में प्रशिक्षण प्रदान करता है और देश में थिएटर का प्रचार करता है। इसने अपने विद्यार्थियों के लिए लोक, परम्परागत एवं प्रादेशिक थिएटर रूपों में प्रशिक्षण शुरू किया।
एनएसडी की मंचन इकाईः राष्ट्रीय नाटक संस्थान की रेपर्टरी कंपनी एनएसडी की पेशेवर मंचन इकाई के तौर पर 1964 में स्थापित की गई। इसका उद्देश्य भारत में पेशेवर थिएटर को प्रोत्साहित करना है। इसके पहले अध्यक्ष ओम शिवपुरी थे। इस इकाई ने 70 नाटककारों के काम पर आधारित 120 से अधिक नाटिकाओं का मंचन किया। इसका प्रत्येक वर्ष महोत्सव होता है। यहां सभी नएएवं पुराने नाटकों का मंचन किया जाता है।
संस्कार रंग टोलीःएनएसडी ने 1989 में थिएटर-इन-एजुकेशन कंपनी (टीआईई) या संस्कार रंग टोली की स्थापना की। यह भारत का पहला शैक्षिक संसाधन केंद्र है और यह 8 से 16 वर्ष तक के बच्चों को प्रशिक्षण देता है। यह एक साथ स्कूल एवं वयस्क दर्शकों के लिए निरंतर नाटकों का मंचन करते हैं। इसके वार्षिक थिएटर महोत्सव जश्न-ए-बचपन एवं बाल संगम हैं।
क्षेत्रीय केंद्रःएनएसडी ने पूरे देश में क्षेत्रीय संसाधन केंद्र (त्त्बद्ध खोले हैं, जिनमें से पहला 1994 में बंगलुरू में स्थापित किया गया। यह एनएसडी का अपनी गतिविधियों के विकेंद्रीकरण की दिशा में एक कदम था।
भारतेन्दु एकेडमी आॅफ ड्रामेटिक आर्टः यह लखनऊ में थिएटर प्रशिक्षण संस्थान है। यह एक स्वायत्त संस्थान है जिसकी स्थापना उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन की गई है। बीएनए की स्थापना 2 जुलाईए 1975 को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक एकेडमी के तहत् जागी-मानी थिएटर व्यक्तित्व-राज बिसारिया के अथक् प्रयासों से हुई। भारत में थिएटर के प्रसार के अन्य संस्थानों में हैदराबाद विश्वविद्यालय का थिएटर कला विभाग, फ्लेम स्कूल आॅफ परफार्मिंग आर्ट्स तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय का सेंटर आॅफ थिएटर ए.ड फिल्म, शामिल हैं।
थियेटर महोत्सव
भारत में थियेटर कला को विकसित एवं लोकप्रिय बनाने के लिए कुछ निम्नलिखित थियेटर महोत्सव आयोजित किए जाते हैं।
पृथ्वी थियेटर महोत्सवः यह भारत में प्रथम थियेटर महोत्सव है। इसका आयोजन पृथ्वी थियेटर द्वारा किया जाता है। इस महोत्सव का प्रारंभ 1978 में पृथ्वी राज कपूर द्वारा किया गया। इसमें नाटक प्रस्तुत किए गए जिसमें वन एक्ट प्ले शामिल है। इनका निर्देशन पेशेवर एवं शौकिया निर्देशकों ने किया।
यद्यपि यह मूलतः हिंदी/उर्दू थियेटर महोत्सव है, अंग्रेजी में अच्छे चुनिंदा काम का भी मंचन किया गया।
भारत रंग महोत्सवः नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा, नई दिल्ली द्वारा आयोजित किया जाता है। 1999 में स्थापित, यह एक वार्षिक थियेटर महोत्सव है। यह एशिया का सबसे बड़ा थियेटर महोत्सव माना जाता है जो पूरी तरह से थियेटर को समर्पित है।
नंदंदलिकर नेश्ेशनल थियेटेटर फेस्ेस्टीवलःएक वार्षिक महोत्सव है जो कोलकाता में सबसे बड़ा थियेटर कार्निवल है। अधिकतर प्ले बंगाली में मंचित किए जाते हैं।
1958 में शुरू, कालीदास समारोह वार्षिक तौर पर उज्जैन में मनाया जाता है। इसमें नाटक एवं नृत्य के क्षेत्र में जागे-माने कलाकार खिंचे चले आते हैं। समारोह में कालीदास के मूल नाटक को संस्कृत में, हिंदी में एवं अन्य भाषाओं में मंचन किया जाता है।
थेसप्पो एक अखिल भारतीय वार्षिक युवा थियेटर महोत्सव है जिसका आयोजन कबासर थियेटर प्राॅडक्शन (क्यूटीपी) और थियेटर ग्रुप बाॅम्बे (टीजीबी) द्वारा किया जाता है। इसका आयोजन प्रत्येक वर्ष दिसंबर माह में पृथ्वी थियेटर एवं एनसीपी, में किया जाता है।
अन्य उल्लेखनीय महोत्सव हैं अक्का महोत्सव, मैसूर, एनआईएनएसएएम सांस्कृतिक महोत्सव, हेगोडू; सूर्या महोत्सव, तिरुवनंतपुरम; नेहरू सेंटर द्वारा आयोजित नेशनल थिएटर फेस्टिवल, मुम्बई; सुंदरी महोत्सव, मुम्बई; वेल्वी नेशनल थियेटर फेस्टिवल, मदुरई; और आदिशक्ति रामायण फेस्टिवल, पुदुचेरी।
थियेटेटर पुरुरस्कार/सम्मान
थियेटर के क्षेत्र में दिए जागे वाले कुछ प्रसिद्ध सम्मान निम्न प्रकार हैं।
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कारः संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी द्वारा दिया जाता है जो भारत में नृत्य, संगीत एवं नाटक संबंधी राष्ट्रीय अकादमी है। यह पुरस्कार संगीत, नृत्य, थियेटर, अन्य परम्परागत/लोक/ जगजातीय/नृत्य/संगीत थियेटर, कठपुतली एवं मंचन कलाओं में योगदान एवं छात्रवृत्तियों की श्रेणियों में दिए जाते हैं।
कालीदास सम्मानःएक सम्मागजनक एवं प्रतिष्ठित पुरस्कार है जिसे वार्षिक रूप से मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। यह सर्वप्रथम 1980 में प्रदान किया गया था। 1986-87 से यह पुरस्कार शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य, थियेटर एवं प्लास्टिक आर्ट में प्रत्येक वर्ष उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त करने के लिए प्रदान किया जाता है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now