हिंदी माध्यम नोट्स
नमक सत्याग्रह क्या था तथा कब हुआ , क्यों आरम्भ किया और इसके क्या परिणाम हुए आंदोलन के उद्देश्य
जानकारी लीजिये कि नमक सत्याग्रह क्या था तथा कब हुआ , क्यों आरम्भ किया और इसके क्या परिणाम हुए आंदोलन के उद्देश्य किस स्थान से प्रारंभ हुआ था और इस के सिलसिले में कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया ?
प्रश्न: 1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह क्यों आरम्भ किया और इसके क्या परिणाम हुए ?
उत्तर: चैरी-चैरा कांड के बाद असहयोग आन्दोलन के अचानक वापस लिए जाने के बाद भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में गतिहीनता और ठहराव आ गया। इस बीच साम्राज्यवाद विरोधी मनोदशा की अभिव्यक्ति साइमन विरोध, क्रांतिकारी आतंकवाद, कृषक विद्रोह आदि के रूप में हुई। 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित करने के साथ-साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की भी घोषणा कर दी। सत्याग्रह शुरू करने से पहले गांधीजी ने 11 सूत्री मांगों द्वारा इसे टालने का अंतिम प्रयास किया था।
गांधीजी ने 11 सूत्री मांगों को अस्वीकार किये जाने के बाद नमक सत्याग्रह प्रारंभ किया। 12 मार्च, 1930 को प्रसिद्ध दांडी यात्रा द्वारा गांधीजी ने आन्दोलन की शुरूआत की। अपने चुने हुए 78 अनुयायियों के साथ साबरमती से दांडी तक 375 कि.मी. की यात्रा की एंव नमक कानून को भंग किया। 6 अप्रैल को मुट्ठी भर नमक उठाकर गांधीजी ने नमक कानून का उल्लंघन किया तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरूआत की।
इस आन्दोलन की प्रमुख गतिविधियां थी – नमक कानून को भंग करना, स्कूल, कॉलेज एवं सरकारी दफ्तरों का बहिष्कार, विदेशी कपड़ों की होली जलाना, कर बंदी तथा शराब की दुकानों पर धरना आदि। सविनय अवज्ञा आन्दोलन बड़ी तेजी से सम्पूर्ण देश में फैल गया और इसके कार्यक्रमों को लागू किया जाने लगा। इस बीच 1930 में ब्रिटिश सरकार ने लंदन में भारतीय नेताओं और सरकारी प्रवक्ताओं का पहला गोलमेल सम्मेलन आयोजित किया। कांग्रेस के बहिष्कार के कारण यह सम्मेलन बेकार हो गया। अंततः लार्ड इर्विन और गांधीजी के बीच मार्च, 1931 में एक समझौता हुआ। सरकार अहिंसक रहने वाले राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर तैयार हो गयी। उपयोग के लिए नमक बनाने का अधिकार तथा धरना देने का अधिकार भी मान लिया गया। कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को रोक दिया तथा द्वितीय सम्मेलन में भाग लेने को तैयार हो गयी। अनेक कांग्रेसी नेता और खासकर युवक वामपंथी गांधी-इर्विन समझौते के विरोधी थे क्योंकि सरकार ने एक भी प्रमुख राष्ट्रवादी मांग नहीं मानी थी। इस समझौते की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इसने कांग्रेस की प्रतिष्ठा को सरकार की प्रतिष्ठा के बराबर ला दिया। अंततः सरकारी दमन सफल रहा, क्योंकि इसे सांप्रदायिकता और दूसरे प्रश्नों पर भारतीय नेताओं के बीच मतभेद होने में सहायता मिली। यह आन्दोलन धीरे-धीरे बिखर गया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के पश्चात् विकल्प के रूप में वामपंथ का उदय हुआ। नेहरू एवं सुभाष चन्द्र बोस ने इस नयी अभिव्यक्ति को वाणी प्रदान की एवं राष्ट्रवाद के साथ सामाजिक एवं आर्थिक कार्यक्रमों को जोड़ने पर बल दिया।
प्रश्न: कांग्रेस के भीतर वामपंथी समूह के निर्गमन ने उसके सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रमों को अतिवादी बना दिया था।
उत्तर: कांग्रेस के अन्दर वामपंथी प्रवृत्ति या समाजवादी धारा की अभिव्यक्ति जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, नरेन्द्र देव जैसे नेताओं के द्वारा हई। इन लोगों के विचार में भारतीय आर्थिक दुर्व्यवस्था के लिए यहां की दोषपर्ण उत्पादन प्रणाली जिम्मेदार थी। जिन लोगों के द्वारा उत्पादन नियंत्रित होता था, वे न्यूनतम मजदरी देकर अधिकतम मना पदा करना चाहते थे, जो धनी थे और धनी बनना चाहते थे। इसलिए वे गरीबों और मेहनतकश का जी भरकर शोषण कर रहे थे इस असमान और शोषण युक्त व्यवस्था का अंत किए बिना भारत में समतामूलक समाज का निर्माण असम्भव शा सालए इन समाजवादियों ने गरीबों और मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया।
यह सुधार तभी सम्भव था जब कांग्रेस के मंच से गरीबों एवं मजदूरों की व्यवस्था से संबंधित प्रश्नों को उठाया जाता और उसके कार्यक्रमों में बदलाव कर उसे इस ओर उन्मुख किया जाता। इसीलिए 1929 के कांग्रेस अधिवेश में इनके हितों के सरक्षण की बात की गई। इसके पश्चात 1931 के कराची कांग्रेस अधिवेश में समाजवादी कार्यक्रम को अपनाने की बात कही गई तथा समाज में मौलिक अधिकार एवं आर्थिक नीतियों के विषय में चर्चा एवं उद्योगों के राष्ट्रीयकरण एवं उत्पादन की प्रक्रिया में शोषण को समाप्त करने पर बल दिया गया।
1934 तक अखिल भारतीय समाजवादी आन्दोलन का कांग्रेस पर और अधिक प्रभाव पड़ा जब जयप्रकाश नारायण द्वारा इस दिशा में प्रयासों को तेज किया गया। अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, एम.आर.मसानी, एम.जी.गोरे, एम.एस.जोशी आदि ने कांग्रेस के नीतियों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से परिवर्तन पर बल दिया और उसे समतामूलक समाज की ओर अग्रसर करने हेतु दबाव बनाया गया।
1936 के फैजपुर अधिवेश. में कृषकों से संबंधित नीतियों को बखूबी मान्यता प्रदान की गई। इस अधिवेशन में कांग्रेस ने किसानों से सम्बद्ध ‘13 सूत्री कार्यक्रमों‘ की घोषणा की गई थी। इन वामपंथी नेताओं ने कांग्रेसजनों को इस बात के लिए राजी किया कि वे स्वतंत्र भारत में समाजवादी दृष्टि अपनाएँ तथा वर्तमान आर्थिक मुद्दों पर उनका रुख किसानों तथा मजदूरों के पक्ष में होना चाहिए। इसलिए कांग्रेस की नीतियाँ समाजवाद की ओर अग्रसर हुई तथा सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रमों को प्रमुखता से स्थान दिया गया।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…