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नगर श्री लोक संस्कृति शोध संस्थान क्या है ? राजस्थान लोककला संस्कृति शोध संस्थान राज्य में कहाँ पर स्थित है?
जाने नगर श्री लोक संस्कृति शोध संस्थान क्या है ? राजस्थान लोककला संस्कृति शोध संस्थान राज्य में कहाँ पर स्थित है ?
प्रश्न: नगर श्री लोक संस्कृति शोध संस्थान
उत्तर: राजस्थान के इतिहास, कला और संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए सुबोध कुमार अग्रवाल ने 1964 में चुरू में श्नगर श्रीश् की स्थापना की। इस संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों, ताड़ पत्रीय प्रतियों, हस्तलिखित पुस्तकों, प्राचीन लेखों, बहियों, विभिन्न सभ्यता-संस्कृतियों की पुरातात्विक सामग्रियों को सुरक्षित रखा गया है। संस्था द्वारा 21 पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। वर्तमान में संस्थान श्श्राजस्थानी कथा कोशश्श् नामक पुस्तक का प्रकाशन कर रहा है जिसमें राजस्थानी कथाएं हैं।
प्रश्न: तमाशा
उत्तर: तमाशा जयपुरी ख्याल व ध्रुवपद धमार गायिकी का सम्मिलित रूप हैं। यह जयपुर की परम्परागत लोक नाट्य शैली है जो महाराष्ट्र की लोक नाट्य शैली तमाशा से प्रभावित है। जयपुर की तमाशा लोक नाट्य शैली में गायन, वादन और नृत्याभिनय का अपूर्व सामंजस्य है। इस शैलीका प्रदुर्भाव आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम (1594) के समक्ष मोहन कवि विरचित नाट्य श्धमाका मंजरीश् का आमेर में प्रदर्शन किया गया।
जयपुर महाराजा “प्रतापसिंह” ने तमाशा के प्रमुख कलाकार श्बंशीधर भट्टश् को (जो महाराष्ट्र के थे) अपने गुणीजनखाने में प्रश्रय देकर इस लोक नाट्य विधा को प्रोत्साहित किया। इस परिवार में उस्ताद परम्परा श्फूलजी भट्टश् द्वारा प्रारंभ की गई। तमाशे में सारंगी, तबला. नक्कारा और हारमोनियम ही प्रमुख वाद्य है। होली के दिन श्जोगी जोगनश् का तमाशा, होली के दूसरे दिन श्हीर रांझाश् चैत्र की अमावस्या को श्गोपीचन्दश् की प्रस्तुति व शीलाष्टमी के दिन श्जुठ्ठन मियांश् का तमाशा खेला जाता है। गोपीजी भट्ट, फूलजी भट्ट, मन्नूजी भट्ट तथा वासुदेव भट्ट तमाशा के अच्छे. कलाकार हैं। बंशीधर भट (दानी शिरोमणि) द्वारा रचित तमाशें में
पठान, कान-गूजरी, रसीली-तम्बोलन, हीर-रांझा, जोगी-जोगन, लैला-मंजन, छला-पनिहारिन, छुट्टन मियां आदि प्रमुख हैं। तमाशों में स्त्री पात्रों की भूमिका स्त्रियों द्वारा भी अभिनीत की जाती थी – इसमें काव्यात्मक संवाद खुले रंगमंच पर होता है, जिसे श्अखाड़ाश् कहते हैं।
प्रश्न: नौटंकी
उत्तर: भरतपर, धौलपर करौली. सवाई माधोपुर आदि उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में नौटंकी नामक लोक नाट्य का प्रचलन अधिक है। यह नौटंकी उत्तर प्रदेश की हाथरसी नौटंकी से प्रभावित है। राजस्थान में नौटंकी का प्रचलन डीग निवासी श्री भूरीलाल ने किया जो पर्व में हाथरस में नौटंकी करते थे। गिरिराज प्रसाद (कामां वाले) इस खेल के प्रसिद्ध खिलाडी हैं। नौटंकी के प्रसिद्ध खेलों में नल-दमयन्ती, लैला-मजनूं, नकाबपोश, रूप-बसंत, राजा भर्तृहरि, सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र आदि प्रमुख हैं। नौटंकी में नौ प्रकार के वाद्यों का प्रयोग किया जाता है।
ृ नौटकी पार्टियों द्वारा अमरसिंह. सत्यवान-सावित्री. हरिश्चन्द्र-तारामती, इन्द्रलहरण, आल्हा-ऊदल, कामदेव. भक्त पण का मचन किया जाता है। नौटंकी में लावणी, सादी, बहरत रील, लंगडी, दबोला, चैबोला, कव्वाली-गजल. दाट ठुमकी ख्याल गायकी के संवाद हैं।
प्रश्न: गंधर्व नाट्य ।
उत्तर: मारवाड़ के निवासी गंधर्व पेशेवर नृत्यकार होते हैं। इनके द्वारा श्अंजना सन्दरीश् और श्मैना सन्दरीश् नामक संगीत नाट्यों का प्रदर्शन किया जाता है। यह संगीत जैन धर्म पर आधारित होते हैं। यह संगीत नाट्य धार्मिक उद्देश्य के लिए होते है। जैन समाज का नृत्य नाट्य होने से इसके कलाकार सभ्य एवं शिक्षित होते हैं।
प्रश्न: राजस्थान के भोपे
उत्तर: राजस्थान के भोपे पेशेवर पजारी होते हैं जो मन्दिर के देवता या धाताओं के सामने नृत्यगान की लोकनाटय शैली का मंचन करते हैं जिनमें भैरूजी के भोपे भस्म व सिंदूर लगाकर त्रिशूल धारण कर मशक बजाते हुए गाते हैं तो गोगाजी के भोले श्डरूश् वाद्य यंत्र का प्रयोग करते हुए नाचते गाते वक्त अनेक सांपों को गले में लपेटता-उतारता रहता है। भीलों व गर्जरों के भोपे क्रमशः रावण हत्था एवं जंतर वाद्य यंत्रों के साथ पाबूजी व देवजी की फड़ का वाचन करते हैं। इसी प्रकार रामदेवजी, करणीमाता, जीणमाता आदि के भोपे चमत्कारपूर्ण दैविक शक्ति में आस्था रखकर नृत्यगान करते हैं।
प्रश्न: फड़
उत्तर: रेजी अथवा खादी के कपड़े पर लोक देवताओं की जीवनगाथा का चित्रण जिसे भोपा जाति के लोग लोक-नाट्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं। शाहपुरा के श्रीलाल जोशी ख्याति प्राप्त फड़ चितेरे हैं। फड़ वाचन मनौती के रूप में पूर्णश्रद्धा व आस्था के साथ भोपा करते हैं। राजस्थान में पाबूजी व देवजी की फड़ बड़ी प्रसिद्ध है। फड़वाचन. की लोकनाट्य शैली में गायन, वादन, मौखिक साहित्य, चित्रकला तथा लोकधर्म का अनुठा संगम जो यहाँ मिलता है वह भारत में अन्यत्र नहीं मिलता। गुर्जर देवता देवनारायणजी की फड़ पर भारतीय डाक विभाग ने टिकिट भी जारी किया है।
अन्य प्रसिद्ध लोक नाट्य की शैली
लोकनाट्य का नाम क्षेत्र वाद्ययंत्र विशेषता
गवरी मेवाड़ मादल,ढोल नगाड़ा ़रक्षाबंधन से सवा महीने तक, नृत्य नाट्य, भस्मासुर की कथावाचन, मुख्य पात्र झमट्या- खड्कड्या, भीली संस्कृति की प्रधानता….
चारबैत टोंक ढ़प पठानी मूल संगीत दंगल रूपी लोक नाट्य विद्या
नौटंकी भरतपुर नगाड़ा,शहनाई रबी फसल कटने के बाद लोकनाट्य, प्रसिद्ध नौटंकी नकाबपोश, रूप-बंसत, भर्तृहरि
तमाशा जयपुर तबला,सारंगी,नक्कारा गायन, वादन व नृत्याभिनय का अपूर्व सामंजस्य, जोगी-जोगन, हीर-रांझा, गोपीचन्द,राग-रागनियों की प्रधानता
स्वांग/बहुरूपिया रेगिस्तानी – किसी ऐतिहासिक, पौराणिक, लोकप्रसिद्ध चरित्र की नकल में मेकअप कर, मनोरंजन करते हैं परशुराम व जानकी लाल भाण्ड (मंकी मैन) प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न: भारतीय लोक कला मण्डल
उत्तर: प्रदर्शनोपयोगी लोक कलाओं एवं पुतलियों के शोध, सर्वेक्षण, प्रशिक्षण आदि कलाओं का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से श्पदमश्रीश् देवीलाल
सामर द्वारा 1952 में उदयपुर में भारतीय लोक कला मण्डल स्थापित किया गया। यह एक विशिष्टसांस्कृतिक संस्थान है जो अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक संस्कृति संग्रहालय है। यह वार्षिक कटपुतली समारोह, अखिल भारतीय लोक कला संगोष्टियों, कार्यशालाओं और लोकानुरंजन कार्यक्रमों का आयोजन करता है। यह देश – विदेश के सैलानियों एवं शोधार्थियों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है।
प्रश्न: पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र
उत्तर: राजस्थान के कलाकारों को अधिकाधिक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा 1986 में उदयपुर में इस केन्द्र की स्थापना की गई। इस केन्द्र के माध्यम से लुप्त हो रही लोक कलाओं के पुनरुत्थान का कार्य किया जा रहा है। वहीं हस्तशिल्पियों को भी संबल मिल रहा है। भारत सरकार ने ऐसे सात केन्द्र स्थापित किये हैं जिनमें उत्तरी भारत में उदयपुर, इलाहाबाद और पटियाला तीन केन्द्र हैं। जहाँ आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों में उदयपुर केन्द्र द्वारा राजस्थान के कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शन के लिए अवसर प्रदान करवाया जाता है।
प्रश्न: रूपायन संस्थान
उत्तर: जोधपुर जिले में बोरून्दा गाँव में सन् 1960 में स्थापित संस्था श्रूपायनश् एक सांस्कृतिक व शैक्षणिक संस्था के रूप में कार्यरत है। यह संस्था सहकारी प्रयास का प्रतिफल है। राजस्थानी लोकगीतों, कथाओं एवं भाषाओं की परम्परागत धरोहर की खोजकर यह संस्था उन्हें क्रमबद्ध संकलन का रूप प्रदान कर रही है। इस संस्थान के पास स्वयं का निजी प्रेस, पुस्तकालय एवं रिकार्ड करने के उपकरण हैं। इसे राज्य एवं केन्द्रीय सरकार से विभिन्न मदों से अनुदान प्राप्त होता है।
प्रश्न: राजस्थान संगीत संस्थान
उत्तर: राज्य में संगीत शिक्षा की समृद्धि के लिये राजस्थान संगीत संस्थान की 1950 ई. में जयपुर में स्थापना की गई। इस संस्थान के प्रथम
निदेशक श्री ब्रह्मानंद गोस्वामी बनाये गये। लगभग तीस वर्ष तक राजस्थान के प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा निदेशालय से जुड़े रहने के बाद इस संस्थान को 1980 ई. में कॉलेज शिक्षा निदेशालय को सौंप दिया गया। इस संस्थान में समय-समय पर देश के विख्यात संगीतज्ञों एवं संगीत शिक्षाविदों के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। संस्थान के छात्रों ने राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में सफलता प्राप्त कर संस्थान को ख्याति दिलायी है।
प्रश्न: राजस्थान ललित कला अकादमी
उत्तर: राज्य में कला के प्रचार-प्रसार तथा कलाकारों के स्तर को ऊंचा उठाने तथा नये युवा रंगकर्मियों को प्रोत्साहित करने हेतु सन् 1957 में
राजस्थान ललित कला अकादमी की स्थापना रवीन्द्र मंच (जयपुर) में की गयी। कलात्मक गतिविधियों का रू संचालन, कला प्रदर्शनियों का आयोजन और लब्ध प्रतिष्ठित कलाकारों को सम्मान एवं फैलोशिप प्रदान करना अकादमी की प्रमुख प्रवृत्तियां हैं। इसके परिसर में आधुनिक कला संग्रहालय का संचालन भी किया जाता है। दृ
प्रश्न: जयपुर कत्थक केन्द्र
उत्तर: कत्थक नृत्य के जयपुर घराने की प्राचीन एवं शास्त्रीय शैली को पुनर्जीवित कर उसे समुन्नत करने के लिए 1978 ई. में राज्य सरकार द्वारा जयपुर कत्थक केंद्र की स्थापना की. गयी। जयपुर घराने के कत्थक नृत्य का पारंपरिक प्रशिक्षण देने और नृत्य शिक्षा के प्रति छात्र-छात्राओं
और जन साधारण में रुचि जाग्रत करना इस केंद्र के कार्य हैं।
प्रश्न: रवीन्द्र मंच
उत्तर: रवीन्द्र मंच की स्थापना 15 अगस्त, 1963 ई. को जयपुर में की गई। रवीन्द्र मंच बनने के बाद जयपुर में रंगमंचीय गतिविधियां उत्साहवर्धक ढंग से विकसित हुई हैं। रवीन्द्र मंच में मुख्य सभागार, ओपन एयर थियेटर, अपर हॉल एवं पूर्वाभ्यास कक्ष हैं जिनमें सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा
आये दिन कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
प्रश्न: जवाहर कला केन्द्र
उत्तर: पारंपरिक एवं विलप्त होती जा रही कलाओं की खोज, उनका संरक्षण एवं संवर्द्धन करने तथा कलाओं को जनाश्रयी बनाकर उनका समन्वित विकास करने के लिये जवाहर कला केंद्र की स्थापना 1993 ई. में की गयी। इसके भवन के वास्तविद श्चार्ल्स कोरियाश् थे। इस केंद्र में नौ सभागार खण्ड हैं जिसमें मुक्ताकाशी मंच के अलावा ढाई हजार वर्ग फुट का प्रदर्शनी क्षेत्र, थियेटर, पुस्तकालय, कैफेटेरिया तथा स्टूडियो है। केंद्र परिसर में एक शिल्पग्राम भी है जिसमें ग्रामीण शैली की झोंपड़ियां बनाई गई है। केंद्र में चाक्षुष कलाओं, संगीत एवं नृत्य थियेटर एवं प्रलेखन से संबंधित चार विभाग हैं।
प्रश्न: राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
उत्तर: राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के विकास हेतु जनवरी, 1983 ई. में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की स्थापना बीकानेर में की गयी। पत्रिका प्रकाशन, पोथी प्रकाशन, हेतु सहायता और आंचलिक समारोह इस अकादमी की मख्य गतिविधियां हैं। अकादमी द्वारा राजस्थान के उत्कृष्ट साहित्यकारों को प्रतिवर्ष पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं जिनमेंसर्यमल्ल मिश्रण पुरस्कार, गणेशीलाल उस्ताद पद्य पुरस्कार, मुरलीधर व्यास कथा सम्मान, शिवचरण भरतिया गद्य पुरस्कार, सांवर दइया पेली पोथी पुरस्कार, बाल साहित्य पुरस्कार आदि प्रमुख हैं। अकादमी की मासिक पत्रिका- श्जागती जोतश् है।
प्रश्न: राजस्थान साहित्य अकादमी
उत्तर: राजस्थानी साहित्य की उन्नति एवं प्रचार-प्रसार के लिए अकादमी की स्थापना 28 जनवरी, 1958 को उदयपुर में की गई। अकादमी द्वारा
मीरा पुरस्कार, सुधीन्द्र पुरस्कार, डॉ. रांगेय राघव पुरस्कार, कन्हैयालाल सहल पुरस्कार आदि साहित्य के क्षेत्र में प्रदान किए जाते हैं।
अकादमी द्वारा राजस्थानी भाषा क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार श्मीरा पुरस्कारश् है। प्रथम मीरा परस्कार वर्ष 1959-60 में डॉ. रामानन्द तिवारी को दिया गया। अकादमी की मासिक पत्रिका श्मधुमतिश् है। अकादमी द्वारा प्रकाशन, साहित्यिक समारोहों का आयोजन, युवा व नवोदित लेखों को प्रोत्साहन, राज्य की साहित्यिक संस्थाओं को मान्यता प्रदान करना, पुस्तक मेलों आदि का आयोजन किया जाता है।
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