JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

ध्रुपद गायकी क्या है , ध्रुपद के कितने भाग होते हैं विभाग भेद किसे कहते है ध्रुपद और ख्याल के बीच का अंतर

ध्रुपद और ख्याल के बीच का अंतर ध्रुपद गायकी क्या है , ध्रुपद के कितने भाग होते हैं विभाग भेद किसे कहते है ?

भारतीय संगीत का वर्गीकरण
भारतीय उप-महाद्वीप में प्रचलित संगीत के कई प्रकार हैं। ये विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं कुछ का झुकाव शास्त्रीय संगीत की ओर है तथा कुछ का प्रयोग वैश्विक संगीत के साथ भी किया जाता है। हाल में, पॉप, जैज, आदि जैसे संगीत के नए रूपों के साथ शास्त्रीय विरासत का फ्यूजन करने की ओर रुझान बढ़ रहा है और यह जनता का ध्यान भी आकर्षित कर रहा है। भारतीय संगीत का वर्गीकरण इस प्रकार हैः

शास्त्रीय संगीत
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो अलग-अलग शैलियों का विकास हुआ हैः
ऽ हिंदुस्तानी संगीतः इसका भारत के उत्तरी भागों में अभ्यास किया जाता है।
ऽ कर्नाटक संगीतः इसका भारत के दक्षिणी भागों में अभ्यास किया जाता है

हिन्दुस्तानी संगीत
हालांकि दोनों प्रकार के संगीत की ऐतिहासिक जड़ें भरत के नाट्यशास्त्र में पाई जाती हैं, परंतु इनमें 14वीं सदी में विलगाव हो गया। संगीत की हिंदुस्तानी शाखा संगीत संरचना और उसमें तात्कालिकता की संभावनाओं पर अधिक केंद्रित होती है। हिंदुस्तानी शाखा में शुद्ध स्वर सप्तक या ‘प्राकृतिक स्वरों के सप्तक‘ के पैमाने को अपनाया गया।
‘ध्रुपद‘, ‘धमर‘, ‘होरी‘, ‘ख्याल‘, ‘टप्पा‘, ‘चतुरंग‘, ‘रससागर‘, ‘तराना‘, ‘सरगम‘ और ‘ठुमरी‘ जैसी हिंदुस्तानी संगीत में गायन की दस मुख्य शैलियां हैं। कुछ प्रमुख शैलियां इस प्रकार हैं:

ध्रुपद
यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे पुराने और भव्य रूपों में से एक है। यह कहा जाता है कि धु्रपद अपनी जड़ो के लिए प्रबंध और धु्रवपाद जैसे पुराने रूपों का ऋणी है। यह नाम ‘ध्रुव‘ और ‘पद‘, से निकला है जो कविता के छंद रूप तथा उसे गाने की शैली दोनों को प्रदर्शित करता है।

अकबर ने स्वामी हरिदास और तानसेन जैसे संगीताचार्यों को नियोजित और संरक्षण दिया था। तानसेन को मुगल दरबार के नौ रत्नों में से एक माना जाता था। यह भी अनुमान लगाया जाता है कि बैजू बावरा अकबर के दरबार में गाया करते थे। हमें ग्वालियर में स्थित राजा मान सिंह तोमर के दरबार में धु्रपद में प्रवीणता प्राप्त करने वाले गायकों का साक्ष्य मिलता है। यह मध्यकाल में गायन की प्रमुख विधा बन गयी, परंतु 18वीं शताब्दी में यह ह्रास की स्थिति में पहुँच गयी।
ध्रुपद एक काव्यात्मक रूप है, जिसमे राग को सटीक तथा विस्तृत शैली में प्रस्तुत किया गया है। ध्रुपद में संस्कृत अक्षरों का उपयोग किया जाता है और इसका उद्गम मंदिरों से हुआ है। ध्रुपद रचनाओं में सामान्यतः 4 से 5 पद होते हैं और जोड़े में गाए जाते हैं। सामान्यतः दो पुरुष गायक ध्रुपद शैली का प्रदर्शन करते हैं। तानपुरा और पखावज सामान्यतः इनकी संगत करते हैं। वाणी या बाणी के आधार पर, धु्रपद गायन को आगे और चार रूपों में विभाजित किया जा सकता हैः
ऽ डागरी घरानाः इस शैली में आलाप पर बहुत बल दिया जाता है। डागर परिवार डागर वाणी में गाता है। कई पीढ़ियों से, उनके परिवार के लोगों ने जोड़ों में प्रशिक्षित और प्रदर्शन किया है। डागर मुसलमान हैं, लेकिन सामान्यतः हिंदू देवी-देवताओं के पाठों को गाते हैं। उदाहरण के लिए, जयपुर के गुन्देचा भाई।
ऽ दरभंगा घरानाः इस घराने में ध्रुपद खंडार वाणी और गौहर वाणी में गाये जाते है। वे रागालाप पर बल देते हैं और साथ ही तात्कालिक अलाप पर गीतों की रचना करते हैं। उन्होंने विभिन्न प्रकार की लयकारी का समावेश करके इसमें सुधार किया है। इस शैली का प्रतिनिधि मलिक परिवार हैं। वर्तमान में, गायन करने वाले सदस्यों में राम चतुर मलिक, प्रेम कुमार मलिक और सियाराम तिवारी सम्मिलित है।
ऽ बेतिया घरानाः यह घराना केवल परिवार के भीतर प्रशिक्षित लोगों को ज्ञात कुछ अनोखी तकनीकों वाली नौहर और खंडार वाणी ‘शैलियों का प्रदर्शन करता हैं। इस प्रणाली का प्रतिपादन प्रसिद्ध मिश्र परिवार किया है। नियमित रूप से प्रदर्शन करने वाले सदस्य इंद्र किशोर मिश्रा हैं। इसके अतिरिक्त, बेतिया और न शैलियों में प्रचलित ध्रुपद का रूप हवेली शैली के रूप में जाना जाता है।
ऽ तलवंडी घरानाः यहाँ खण्डर वाणी गायी जाती है। चूंकि यह परिवार पाकिस्तान में स्थित है इसलिा भारतीय संगीत व्यवस्था के भीतर रखना कठिन हो गया है।
घराना प्रणाली

ऽ घराना वंश या प्रशिक्षुता और विशेष संगीत शैली के अनुपालन द्वारा संगीतकारों या नर्तकध्नर्तकियों को जोड़ने वाली सामाजिक संगठन की प्रणाली है।
ऽ घराना शब्द उर्दू/हिंदी शब्द ‘घर‘ से आता है जिसका अर्थ ‘परिवार‘ या ‘घर‘ होता है। यह सामान्यतः उस स्थान को दर्शाता है जहां से वह संगीतात्मक विचारधारा उत्पन्न हुई है।
ऽ घराने व्यापक संगीत शास्त्रीय विचारधारा को इंगित करते है और एक शैली से दूसरी शैली में अंतर रखते है।
ऽ यह सीधे संगीत की सोच, शिक्षण, प्रदर्शन और प्रशंसा को प्रभावित करते है।
ऽ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गायन के लिए विदित घरानों में से कुछ हैंः आगरा, ग्वालियर, इंदौर, जयपुर, किराना, और पटियाला।

खयाल (ख्याल)
‘खयाल‘ (ख्याल) शब्द फारसी से लिया गया है
और इस का अर्थ ‘विचार या कल्पना‘ होता है। इस शैली के उद्भव का श्रेय अमीर खुसरो को दिया जाता है। यह रूप कलाकारों के बीच काफी लोकप्रिय है क्योंकि यह तात्कालिकता के लिए अधिक-से-अधिक अवसर प्रदान करता है। खयाल (ख्याल) दो से लेकर आठ पंक्तियों वाले लघु गीतों के रंग पटल पर आधारित है। सामान्यतः, खयाल (ख्याल) रचना को ‘बंदिश‘ के रूप में भी जाना जाता है।
15वीं सदी में सुल्तान मोहम्मद शर्की खयाल (ख्याल) के सबसे बड़े संरक्षक थे। खयाल (ख्याल) की सबसे अनूठी विशेषताओं में से एक यह है कि ख्याल रचना में तान का उपयोग होता है। इसी कारणवश ध्रुपद की तुलना मे खयाल संगीत में आलाप को कम स्थान दिया जाता है। सामान्यता खयाल में दो गीतों का उपयोग होता हैः
ऽ बड़ा खयालः धीमी गति में गाया जाने वाला
ऽ छोटा खयालः तेज गति में गाया जाने वाला
पाठ और राग में निरंतरता बनाए रखते हुए अधिकांश स्थितियों में, प्रत्येक गायक, अलग-अलग ढंग से बंदिश प्रस्तुत करते हैं। ये प्रेम के विषय में गाते हैं चाहे वह दिव्य जीवों से संबंधित ही क्यों न हों। यह ईश्वर या किसी विशेष राजा की प्रशंसा भी हो सकती है। असाधारण खयाल रचनाएं भगवान कृष्ण की स्तुति में की जाती हैं। खयाल संगीत के अंतर्गत प्रमुख घराने हैंः
ऽ ग्वालियर घरानाः यह सबसे पुराने और सबसे विस्तृत खयाल घरानों में से एक है। यह बहुत कठोर नियमों का पालन करता है क्योंकि यहाँ रागमाधुर्य और लय पर समान बल दिया जाता है। हालांकि इसका गायन बहुत जटिल है, फिर भी यह सरल रागों के प्रदर्शन करने को वरीयता देता है। इस घराने के सबसे अधिक लोकप्रिय प्रतिपादनकर्ता नाथू खान और विष्णु पलुस्कर हैं।
ऽ किराना घरानाः इस घराने का नामकरण राजस्थान में ‘किराना‘ गांव के नाम पर है। नायक गोपाल ने इसकी स्थापना की थी लेकिन 20वीं सदी के प्रारंभ में इसे लोकप्रिय बनाने का वास्तविक श्रेय अब्दुल करीम खान और अब्दुल वाहिद खान को जाता है।

किराना घराना धीमी गति वाले रागों पर अपनी प्रवीणता के लिए सुविदित है। ये रचना की मधुरता और गीत में पात के उच्चारण की स्पष्टता पर बहुत अधिक बल देते हैं। ये पारंपरिक रागों या सरगम के उपयोग को वरीयता देते हैं। इस शैली में महान गायकों की लंबी कतार है लेकिन इनमें से सबसे प्रसिद्ध पंडित भीमसेन जोशी और गंगू बाई हंगल है।
ऽ आगरा घरानाः इतिहासकारों का तर्क है कि खुदा बख्श ने 19 वीं सदी में इस घराने की स्थापना की थी, परंतु संगीतविदों का तर्क है कि इसके संस्थापक हाजी सुजान खान थे। फैयाज खान ने नवीन और गीतात्मक स्पर्श देकर इस घराने को पुनर्जीवित किया। तब से इसका नाम रंगीला घराना पड़ गया। वर्तमान में, इस शैली के प्रमुख प्रतिपादनकर्ता सी.आर. व्यास और विजय किचलु हैं।
ऽ पटियाला घरानाः बड़े फतेह अली खान और अली बख्श खान ने 19वीं सदी में इस घराने का शुभारंभ किया था।
इसे पंजाब में पटियाला के महाराजा द्वारा प्रारंभिक प्रायोजन (ैचवदेवतेीपच) प्राप्त हुआ। शीघ्र ही उन्होंने गजल, ठुमरी और खयाल के लिए प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली। वे बृहत्तर लय के उपयोग पर बल देते थे। चूंकि उनकी रचनाओं में भावनाओं पर बल होता था अतः उनका रुझान अपने संगीत में अलंकरण या अलंकारों के उपयोग पर होता था। वे जटिल तानों पर बल देते थे।
इस घराने के सबसे प्रसिद्ध संगीतकार बड़े गुलाम अली खान साहब थे। वे भारत के बड़े हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उन्होंने कुलीन श्रोताओं तक सीमित रहने वाले संगीत के बीच की खाई को पाटा। वे राग दरबारी के गायन के लिए सुविदित थे। यह घराना तराना शैली के अद्वितीय तान, गमक और गायकी का उपयोग करता है।
ऽ भिंडी बाजार घरानाः छज्जू खान, नजीर खान और खादिम हुसैन ने 19 वीं सदी में इसकी स्थापना का थी। उन्होंने लंबी अवधि तक अपनी सांस नियंत्रित करने में प्रशिक्षित गायकों के रूप में लोकप्रियता और प्रसिद्धि प्राप्त की। इस तकनीक का उपयोग करते हुए ये कलाकार एक ही सांस में लंबे-लंबे अंतरे गा सकते हैं। इसके अतिरिक्त ये इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि ये कुछ कर्नाटक रागों का उपयोग भी करते है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now