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द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस नामक पुस्तक के लेखक कौन है , the indian war of independence in hindi
जाने द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस नामक पुस्तक के लेखक कौन है , the indian war of independence in hindi ?
उत्तर : यह पुस्तक भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जी द्वारा लिखी गयी थी |
प्रश्न: भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में वी.डी. सावरकर का योगदान बताइए।
उत्तर: विनायक दामोदर सावरकर भारतीय इतिहास में महाराष्ट्र के प्रमुख क्रांतिकारियो में से थे। वे भारतीय इतिहास के प्रथम कोटि के क्रांतिकारी थे। वे ‘वीर सावरकर‘ के नाम से लोकप्रिय थे। वीर सावरकर का जन्म भागुर गाँव (महाराष्ट्र) में 28 मई, 1883 को हुआ था। 1901 में मैट्रिक पास करने के बाद सावरकर ने पूना के फर्ग्युसन कॉलेज में दाखिला लिया। कॉलेज में वे लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में आए। छत्रपति शिवाजी, तिलक व रामकृष्ण परमहंस उनके प्रेरक थे। वी.डी. सावरकर ने 1899 में नासिक में श्मित्र मेलाश् नाम की एक संस्था आरम्भ की जिसे 1904 में ‘अभिनव भारत‘ समाज में परिवर्तित कर दिया। अभिनव भारत की शाखाएं महाराष्ट्र एवं मध्यप्रांत में सक्रिय थी। ‘अभिनव भारत‘ भारत को विदेशी राज्य के चंगुल से मुक्त कराने के लिए वचनबद्ध क्रांतिकारी संस्था थी। इस संस्था की गतिविधियों में बम बनाना, शस्त्र चलाने में प्रशिक्षण देना इत्यादि कार्यक्रम शामिल थे।
सावरकर लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा की फैलोशिप का लाभ उठाकर 1906 में बैरिस्ट्री करने लंदन गए। लंदन में श्यामजी कृष्ण द्वारा स्थापित ‘इंडिया हाउस‘ लंदन में रहने वाले भारतीयों के लिए आंदोलन का एक केन्द्र बन गया था। उन्होंने विदेश आने वाले योग्यता प्राप्त भारतीयों के लिए एक-एक हजार की 6 फैलोशिप भी आरम्भ की। वी.डी. सावरकर ने भी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित ‘इंडिया हाउस‘ में विभिन्न विषयों पर भाषण मालाएँ, विचार गोष्ठियाँ और महान पुरुषों की जयंतियाँ मनाने का एक क्रम आरम्भ किया। सावरकर ने 10 मई, 1907 को ‘इंडिया हाउस‘ में 1857 की क्रांति की अर्द्धशताब्दी मनाने का निश्चय किया। उन्होंने 1857 की क्रांति पर मराठी में एक पुस्तक प्रकाशित की और इसे आजादी की पहली लड़ाई बताया। सावरकर प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के गदर को ‘गदर‘ न कहकर ‘भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम‘ की संज्ञा दी। वी.डी. सावरकर ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे, जिनकी पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस‘ प्रकाशन 1909 से पूर्व ही ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी। यह पुस्तक गुप्त रूप से विभिन्न शीर्षक ‘पीक वीक पेपर्स‘ और ‘स्काट्स पेपर्स‘ के नाम से भारत पहुँची। भारत के क्रांतिकारियो ने इसे पवित्र ग्रंथ के रूप में पढ़ा। इस पुस्तक ने इंग्लैण्ड में सावरकर को युवा क्रांतिकारियो का हृदय सम्राट बना दिया।
सावरकर के कामों से इंग्लैण्ड की सरकार उनसे अप्रसन्न हो गई। जब उन्होंने बैरिस्ट्री की परीक्षा पास कर ली तो सरकार ने उन्हें प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया और शर्त रखी कि सावरकर यदि क्रांतिकारी कार्यों को करना छोड़ दे तो सरकार उन्हें प्रमाणपत्र दे सकती है। लेकिन सावरकर को यह शर्त स्वीकार्य नहीं थी।
उन्हें ‘इंडिया हाउस‘ जैसे क्रांतिकारी समूह से संबंध रखने के कारण 1910 में गिरफ्तार किया गया। जब उन्हें बंदी बनाकर 8 जुलाई 1910 को जलयान से भारत लाया जा रहा था तो वे समुद्र में कूद गए लेकिन पकड़े गए तथा उन्हें अण्डमान द्वीप की सेलुलर जेल में भेज दिया गया।
हिन्दुत्व का सिद्धान्त: सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व‘ में हिन्दू की परिभाषा दी है और कहा कि यह देश हिन्दुस्तान है जो हिन्दुओं का देश है। अतः हिन्दू वह है जो इस देश को अपनी मातृभूमि व पूण्यभूमि मानता है। जो ऐसा नहीं करते उन्हें इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं हैं। अतः आलोचक इस परिभाषा को साम्प्रदायिक कहते हैं। सावरकर ने कांग्रेस द्वारा प्रतिपादित प्रादेशिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना को अस्वीकार करके धर्म व संस्कृति पर आधारित ‘हिन्दू राष्ट्रवाद‘ को उसके विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। वीर सावरकर को 1937 में जेल से मुक्ति मिली। सावरकर ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ का भी विरोध किया और उसे ‘भारत छोडो सेना रखोश् आंदोलन नाम दिया। वे श्भारत विभाजनश् की स्वीकृति के कारण कांग्रेस के कट्टर विरोधी हो गए थे। उन पर महात्मा गांधी की हत्या का भी आरोप था। अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पोर्टब्लेयर हवाई अड्डे का नाम ‘वीर सावरकर हवाई अड्डे‘ रखा गया है।
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