JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: hindi grammer

दीर्घ संधि किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है , अर्थ | दीर्घ संधि के 100 उदाहरण Hindi में 50 , 10 , 20

दीर्घ संधि के 100 उदाहरण Hindi में 50 , 10 , 20 दीर्घ संधि किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है , अर्थ ?

संधि
ऽ संधि का शाब्दिक अर्थ है-‘मेल‘
ऽ परिभाषा-दो निकटवर्ती वर्गों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे संधि कहते हैं।
संधि के भेद

स्वर संधि ,  व्यंजन संधि ,  विसर्ग संधि
स्वर संधि
ऽ स्वर संधि- दो स्वरों के मेल से जो विकार होता हैं उसे ‘स्वर संधि‘ कहते हैं ।
स्वर संधि के भेद

दीर्घ ,  गुण ,  वृद्धि ,  यण् ,  अयादि संधि
दीर्घ संधि
ऽ ह्रस्व/दीर्घ ‘अ‘‘इ‘‘उ‘ के पश्चात क्रमशः ह्रस्व/दीर्घ ‘आ‘‘ई‘‘ऊ‘ स्वर आएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ ‘आ‘‘ई‘ ‘ऊ‘ हो जाते हैं, जैसे-
स्वर + आर्थी = स्वार्थी
देव + अर्चन = देवार्चन
दैत्य + अरि = दैत्यारि
राम + अवतार = रामावतार
देह + अंत = देहांत
वेद + अंत = वेदांत
शरण + अर्थी = शरणार्थी
सत्य + अर्थी = सत्यार्थी
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त
अधिक + अधिक = अधिकाधिक
पर + अधीन = पराधीन
परम + अणु = परमाणु
गुण संधि
यदि ‘अ‘ और ‘आ‘ के बाद ‘इ‘ या ‘ई‘ ‘उ‘ या ‘ऊ‘ और ‘ऋ‘ स्वर आए तो दोनों के मिलने से क्रमशः ‘ए‘ ‘ओ‘ और ‘अर‘ हो जाते हैं।
नियमों का संक्षेपीकरण
(समझने के लिए)
अ/आ + इ / ई और ऋ स्वर आये तो मिलने पर क्रमशः

(ए)

(ओ)

(अर्)
अर्थात्
अ + इ = ए आ + ई = ए
आ + इ = ए आ + ई = ए
अ + उ = ओ अ + ऊ = ओ
आ + उ = ओ आ + ऊ = ओ
अ/आ + ऋ = अर्

वृद्धि संधि
नियम- ‘अ‘ या ‘आ‘ के वाद ‘ए‘ या ‘ऐ‘ आए तो दोनों के मेल से ‘ऐ‘ हो जाता हैं तथा ‘अ‘ और ‘आ‘ के पश्चात ‘ओ‘ या औ‘ आए, तो दोनों के मेल से ‘औ‘ हो जाता हैं।
अ/आ + ए/ऐ = ऐ , अ/आ + ओ/औ = औ
(इसी को ग्राफ में देखें)
आ /आ + ए / ऐ
मिलकर

अ/आ + ओ/ औ
मिलकर


नियम की व्याख्या
अ + ए = ए अ + ओ = औ
अ + ऐ = ऐ अ + औ = औ
आ + ए = ऐ आ + ओ = औ
आ + ऐ = ए आ + औ = औ
यण संधि
नियम-यदि ‘इ‘, ‘ई‘, ‘उ‘, ‘ऊ‘ और ‘ऋ‘ के बाद भिन्न स्वर आए तो ‘इ‘ और
तो ‘इ‘ और ‘ई‘ का ‘य‘, ‘उ‘ और ‘ऊ‘ का ‘व‘ तथा ‘ऋ‘ का ‘र‘ हो जाता है।
सामान्य सूत्र लक्षण
इ/ई + असमान स्वर = य
उ/ऊ + असमान स्वर = व
ऋ + असमान स्वर = र

अयादि संधि
नियम-यदि ‘ए‘,‘ऐ‘ ‘ओ‘ ‘औ‘, स्वरों का मेल दूसरे स्वरों से हो तो ‘ए‘ का ‘अय्ा्‘ ऐ का आय्ा्‘ ओ का ‘अव‘ तथा ‘औ‘ ‘आव्‘ हो जाता है।
लक्षण-अय्ा्, आय, अव्, आव्
ए, ऐ, ओ, औ – असवर्णस्वर

मिलकर क्रमशः
आय

आय्

अव्

आव्
सामान्य सूत्र
ऐ / ऐ = अय, आय
ओ/औ = अव्, आव
व्यंजन संधि
परिभाषा-व्यंजन के बाद यदि किसी स्वर या व्यंजन के आने से उस व्यंजन में जो परिवर्तन होता है वह ‘व्यंजन संधि‘ कहलाता है।
नियम 1. वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन-
(क, च्, द्, त्, प्)
↓ मेल
(स्वर/अंतःस्थ)
↓ से होने पर
(ग, ज, ड्, द्, ब्) हो जाता है।
उदाहरण
दिक् + अंत = दिगंत दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन दिक् $ गज = दिग्गज दिक् $ अंबर = दिगंबर
वाक् + ईश = वागीश वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
दिक् + विजय = दिग्विजय ऋक् + वेद = ऋग्वेद
नियम 2. वर्ग के पहले वर्णका पाँचवे वर्ण में परिवर्तन-
(क, च्, द्, त्, प्)
↓ का मेल
(अनुनासिक वर्ण से होने पर)

(अनुनासिक ध्वनियों में बदल जाता है।)
नियम 3. छ संबंधी नियम-
हस्व स्वर / दीर्घ स्वर
↓ का मेल
(छ) से होने पर

(छ) से पहले

(च) जोड़ दिया जाता है।
उदाहरण
संधि + छेद = संधिच्छेद वि + छेद = विच्छेद
अनु + छेद = अनुच्छेद स्व + छंद = स्वच्छंद
परि + छेद = परिच्छेद वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीच्छाया आ + छादन = आच्छादन
छत्र + छाया = छत्रच्छाया
नियम 4. त संबंधी नियम (त)
↓ व्यंजन के बाद
(च्/छ्) (ज्/झ्) (ट्/ठ्) (ड्/ढ) (ल)
हो तो हो तो हो तो हो तो हो तो
↓ ↓ ↓ ↓ ↓
(च्) (ज्) (ट्) (ड्) (ल्)

(त)
↓ के बाद (श) आए तो
(त्) का (च्) में (श्) का (छ) में परिवर्तन हो जाता है।
(त्)
↓ के बाद (ह्) आए तो
(त्) का (द्) में (ह्) का (ध) में परिवर्तन हो जाता है।
नियम 5.(म्) के बाद जिस वर्ग का व्यंजन आता है, अनुस्वार उसी वर्ग का नासिक्य (ङ्, ञ्, ण्, न, म्) अथवा अनुस्वार बन जाता है।
(म्)
↓ के बाद
(जिस वर्ग का व्यंजन आता है।)

(उसी वर्ग का नासिक्य (ङ्‘ ´्, ण, न्, म्)
अथवा
(अनुस्वार हो जाता है।)
ऽ ध्यान देने वाली बात यह हैं कि शब्द के अंत मे अनुस्वार सदैव (म्) का रूप होता है।
ऽ अतः सम् को हम (सं) की तरह लिख सकते हैं।
नियम 6. ‘न्‘ का ‘ण्‘- यदि (ऋ, र, ष) के बाद (न) व्यंजन आता हैं तो उस का (ण) हो जाता है। भले ही बीच में क-वर्ग, प-वर्ग, अनुस्वार, य, व, ह, आदि में से कोई भी एक वर्ण क्यों न आ जाए’:
उदाहरण
परि + मान = परिमाण तृष् + ना = तृष्णा
कृष् + न = कृष्ण भूष + अन = भूषण
पारे + नाम = परिणाम ऋ + न = ऋण
शोष् + अन = शोषण भर + न = भरण
विष् + नु = विष्णु किम् + तु = किंतु
प्र + मान = प्रमाण हर + न = हरण
नियम 7. ‘स्‘ का ‘ष्‘ यदि ‘स‘ व्यंजन से पहले (अ/आ से भिन्न) कोई भी स्वर आता हैं तो ‘स‘ का ‘ष‘ हो’’ जाता है।
उदाहरण- वि + सम = विषम।
नियम 7. (स) का (घ) में परिवर्तन
अभि + सेक = अभिषेक सु + सुप्ति = सुषुप्ति
नि + सेध = निषेध वि + सम = विषम
अनु + संगी = अनुषंगी सु + समा = सुषमा (ण)
विसर्ग संधि
विसर्ग के बाद किसी स्वर अथवा व्यंजन के आने से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, वह ‘विसर्ग संधि‘ कहलाता है।
विसर्ग संधि की निम्नलिखित स्थितियाँ दिखाई देती हैं-
1. विसर्ग को श, ष, स् –
यदि विसर्ग के बाद ‘च/छ‘ व्यंजन हों तो विसर्ग का ‘श‘,ट/ठ व्यंजन हों तो ‘ष्‘ तथा तध्थ व्यंजन हों तो ‘स‘ हो जाता है।
उदाहरण-
निः + चल = निश्चल निः + छल = निश्छल
निः + चय = निश्चय निः + ठुर = निष्ठुर
निः + तार = निस्तार निः + चिन्त = निश्चिन्त
दुः + तर = दुस्तर निः + तेज = निस्तेज
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र नमः + ते = नमस्ते
दुः + चक्र = दुश्चक्र धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
’’ अपवादः अनु + सरण = अनुसरण, वि + स्मरण = विस्मरण, अनु + स्वार = अस्वार
2. विसर्ग में कोई परिवर्तन न होना –
(प) यदि विसर्ग के बाद ‘श/ष/स‘ में से कोई व्यंजन आए तो विसर्ग यथावत बना रहता है अथवा विसर्ग आने के व्यंजन का रूप ले लेता है। जैसे-
दुः +  शासन = दुःशासन (दुश्शासन)
दुः + सह = दुस्सह
निः + संकोच = निस्संकोच
निः + संदेह = निःसंदेह (निस्संदेह)
निः + संतान = निस्संतान
दुः + साहस = दुस्साहस
निः + संग = निसंग
(पप) विसर्ग के बाद यदि ‘क/ख‘ अथवा ‘प/फ‘ व्यंजन आएँ तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे-
रजः + कण = रजःकण अन्तः + करण = अन्तःकरण
पयः + पान = पयःपान प्रातः + काल = प्रातःकाल
ऽ लेकिन यदि विसर्ग के पहले ‘इ/उ‘ स्वर हों तो विसर्ग का ‘ष्‘ हो जाता है। जैसे-
निः + कपट निष्कपट निः + पाप = निष्पाप
दुः + कर = दुष्कर निः + फल = निष्फल
चतुः + पाद = चतुष्पाद दुः + कर्म = दुष्कर्म
निः + कलंक = निष्कलंक
3. विसर्ग को ‘र्‘
यदि विसर्ग से पहले ‘अ/आ‘ से भिन्न कोई स्वर आए और विसर्ग के बाद किसी स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चैथा, वर्ण या य,र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र‘ में परिवर्तन हो जाता है। जैसे-
दुः + उपयोग = दुरुपयोग दुः + गुण = दुर्गुण
निः + मल = निर्मल निः + आहार = निराहार
निः + उपमा = निरुपमा निः + उत्साह = निरुत्साह
निः + विघ्न = निर्विघ्न दुः + लभ = दुर्लभ
निः + भय = निर्भय निः + गुण = निर्गुण
दुः + आचार = दुराचार निः + यात = निर्यात
निः + जन = निर्जन निः + आमिष = निरामिष
निः + आशा = निराशा निः + अर्थक = निरर्थक
दुः + बल = दुर्बल वहि + मुख = बहिर्मुख
दुः + आशा = दुराशा पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
निः + बल = निर्बल दुः + वासना = दुर्वासना
निः + धन = निर्धन दुः + जन = दुर्जन
4. ‘अ‘, ‘अः‘ के स्थान पर ‘ओ‘ –
यदि विसर्ग के पहले ‘अ‘ स्वर और आगे ‘अ‘ अथवा कोई सघोष व्यंजन (किसी वर्ग का तीसरा, चैथा, पाँचवा वर्ण)य, र, ल, व,ह में से कोई वर्ण हो तो ‘अ‘ और विसर्ग(अः) के बदले ‘ओ‘ हो जाता है।’ जैसे-
मनः + योग = मनोयोग तमः + गुण = तमोगुण
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध मनः + विकार = मनोविकार
मनः + रथ = मनोरथ मनः + बल = मनोबल
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल अधः + गति = अधोगति
अधः + पतन = अधोपतन यशः + दा = यशोदा
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान मनः + विनोद = मनोविनोद
तपः +वन = तपोवन तेजः + राशि = तेजोराशि
मनः + हर = मनोहर तपः + बल = तपोबल
रजः + गुण = रजोगुण पयः + द = पयोद
मनः + रंजन = मनोरंजन अधः + भाग = अधोभाग
मनः + कामना = मनोकामना अधः + गति = अधोगति
5. विसर्ग का लोप और पूर्व स्वर दी-
(1) यदि विसर्ग के आगे ‘र‘ व्यंजन हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और उसके पहले का ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाता है जैसे-
निः + रोग = नीरोग निः + रज = नीरज
निः + रस = नीरस निः + रव = नीरव
(2) यदि विसर्ग के पहले ‘अ‘ या ‘आ‘ स्वर हों और बाद में कोई भिन्न स्वर आये तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
अतः + एव = अतएव
(3) कुछ शब्दों में विसर्ग का ‘स्‘ हो जाता है। जैसे-
नमः + कार = नमस्कार भाः + कर = भास्कर
पुरः + कार = पुरस्कार

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

3 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

3 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now