हिंदी माध्यम नोट्स
थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने की , संस्थापक शुरुआत थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 में किसके द्वारा की गयी थी?
थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 में किसके द्वारा की गयी थी ? थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने की , संस्थापक शुरुआत theosophical society was established by whom in hindi ?
थियोसेसोेिफिकल सोसेसाइटी
थियोसोफी का शब्द दो यूनानी शब्दों से मिलकर बना थिओस और सोफिया, जिसका अर्थ है ईश्वर और ज्ञान।
थिओसोफिकल सोसाइटी उन पश्चिमी विद्वानों द्वारा आरंभ की गई थी, जो भारतीय संस्कृति व विचारों से बहुत प्रभावित थे। 1875 में मैडम एच.पी. ब्लावेट्स्की ने कर्नल एमण्एस. ओल्काट के साथ इस सोसाइटी की नींव अमरीका में रखी। 1882 में उन्होंने अपनी सोसाइटी का मुख्य कार्यालय मद्रास के समीप अडयार में स्थापित किया। इस समाज के अनुयायी आत्मिक हर्षोन्माद और अंतज्र्ञान द्वारा ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे। ये लोग पुगर्जन्म और कर्म में विश्वास रखते हैं और सांख्य और उपनिषदों के दर्शन से प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
1887 में कर्नल ओल्काट की मृत्यु के पश्चात् मिसेज एनी बेसेन्ट इसकी अध्यक्षा बनीं और इसे काफी लोकप्रिय बनाया। 1891 में वे भारत आईं। वह भारतीय विचार और संस्कृति से भलीभांति परिचित थीं और जैसा उनके भगवद्गीता के अनुवाद से प्रतीत होता है; वह वेदांत में विश्वास रखती थीं। शनैः-शनैः वह हिंदू हो गईं न केवल विचारों से अपितु वस्त्र, भोजन, मेलमिलाप और सामाजिक शिष्टाचार से भी। भारत में थियोसोफिकल सोसाइटी उनकी देख-रेख में हिंदू पुगर्जागरण का आंदोलन बन गई। 1898 में बनारस में सेंट्रल हिंदू काॅलेज की नींव रखी गयी, जो आगे चलकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय बना। इस सोसाइटी ने रूढ़िवादी परंपरा के अनुसार हिंदू धर्म की व्याख्या की और प्राचीन भावना ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम’ को साकार बनाने का प्रयत्न किया।
दक्षिण भारत में सामाजिक-धार्मिक सुध्ुधार आंदोलन
ब्रिटिश शासन काल के दौरान दक्षिण भारत में जन्म लेने वाले सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का उद्देश्य ‘प्रतिकूल रीति-रिवाजों’ का उन्मूलन करना और व्यापक तौर पर लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार करना था।
इन आंदोलनों में वेद समाज एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसकी स्थापना श्रीधरलू नायडू एवं केशवचंद्र सेन द्वारा 1864 में मद्रास सिटी में की गई। इसने ब्रह्म समाज के आस्तिकवादी विचारों को अपनाया। हिंदूवाद के विवाह एवं अन्य रीति-रिवाजों को इसने धार्मिक महत्व के दृष्टिगत दयनीय बताया। वेद समाज संप्रदायवाद मत के विरुद्ध था। इसने जातिगत अंतरों को समाप्त करने पर बल दिया, और बहु-विवाह एवं बाल विवाह का विरोध किया जबकि विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
स्वामी नारायण गुरु द्वारा प्रारंभ किए गए आंदोलन का उद्देश्य था जातियों का उन्मूलन करना और जातिगत भेदभाव को समाप्त करना। स्वामी नारायण गुरू ने इजवा, जिन्हें केरल समाज में अछूत समझा जाता था, के विरोध का सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन में रूप परिवर्तित किया। वह इजवा की सामाजिक दशा में सुधार करना चाहते थे जिन्हें समाज में वेशभूषा, रीति-रिवाज एवं धार्मिक कृत्यों में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता था। उनके सामाजिक परिवर्तन के संदेश को, उनके अनुयायियों एवं स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर, लोगों को अस्वीकार्य पुरातन प्रथाओं को त्यागने की बात कहकर पहुंचाया।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…