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तुलनात्मक वंचन की अवधारणा क्या है ? मर्टन के अनुसार समाजशास्त्र में तुलनात्मक वंचन की परिभाषा
तुलनात्मक वंचन की अवधारणा
‘‘तुलनात्मक वंचन‘‘ पर मर्टन की समझ संदर्भ समूह और संदर्भ समूह के आचरण के विवेचन से जुड़ी हुई है। इसके बिना संदर्भ समूह के बारे में समझ अधूरी रहेगी। मर्टन ने 1949 में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय प्रेस से प्रकाशित द अमेरिकन सोल्जर के निष्कर्षों के विश्लेषण के दौरान तुलनात्मक वंचन का उल्लेख किया। इस कृति में यह विवेचन करने का प्रयास किया गया था कि अमरिकी सैनिक अपने बारे में क्या सोचते थे और अपने भूमिका निर्वाहन और व्यावसायिक उपलब्धियों आदि का मूल्यांकन कैसे करते थे।
अब द अमेरिकन सोल्जर के सरल किंतु सार्थक निष्कर्षों का विवेचन नीचे प्रस्तुत है।
सेना के अविवाहित सैनिकों से अपनी तुलना करते हुए विवाहित जवान यह महसूस करता था कि फौज में भर्ती होने से अविवाहित लोगों की अपेक्षा वह अधिक त्याग करता है और विवाहित असैनिकों से अपनी तुलना करते हुए वह यह सोच सकता था कि उससे उन बलिदानों की अपेक्षा की जा रही है, जिससे वे लोग पूरी तरह बचते रहे हैं।
मर्टन के अनुसार यही स्थिति तुलनात्मक वंचन कहलाती है। और इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है क्योंकि प्रसन्न्ता तथा वंचन स्वयं में परिपूर्ण नहीं होते। अतः इसकी मात्रा इस पर निर्भर करती है कि उसे आंकने के लिए कौन सा पैमाना अपनाया गया है। यह संदर्भ के स्वरूप पर निर्भर है। विवाहित सैनिक की चिंता यह नहीं है कि उसे क्या मिलता है और उस जैसे दूसरे विवाहित सैनिकों को क्या प्राप्त होता है। इसकी बजाए उसकी चिंता यह है कि वह किस चीज से वंचित हो रहा है। वह जानता है कि उसके अविवाहित साथी तुलनात्मक दृष्टि से स्वतंत्र हैं। उन पर पत्नी या बच्चों का दायित्व नहीं है। वे उन जिम्मेदारियों से मुक्त हैं जिनसे विवाहित लोग बच नहीं सकते। दूसरे शब्दों में विवाहित सैनिक उस प्रकार की स्वतंत्रता से वंचित हैं जिसका उनके अविवाहित साथी आनंद उठा रहे हैं। विवाहित सैनिक अन्य विवाहित असैनिक लोगों के साथ तुलना करने पर भी अपने आप को वंचित महसूस करता है। इसका कारण यह है कि विवाहित असैनिक व्यक्ति अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ रहकर अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है, किंतु विवाहित सैनिक इस सुख से वंचित है क्योंकि सैनिक होने के कारण सामान्य पारिवारिक जीवन का आनंद उठाने की उसकी स्थिति नहीं है। विवाहित सैनिक जिस प्रकार के संदर्भ समूह से अपनी तुलना करता है, उसी के अनुसार वह स्वयं को वंचित महसूस करता है। ऐसा ही एक और निष्कर्ष यह है, “विदेश में गया सैनिक देश में रह रहे सैनिकों से अपनी तुलना करने पर अपने पारिवारिक संबंधों तथा उन सुविधाओं को याद करके अधिक दुखी होता है जिनका वह अमरीका में आदी हो चुका था।‘‘ अमरीका के विख्यात विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले भारतीय विद्यार्थी का प्रसन्न होना स्वाभाविक है। उसे बेहतर शैक्षिक वातावरण, अधिक पुस्तके, बेहतर शोध सामग्री तथा विचार विमर्श के लिए अधिक अवसर उपलब्ध हैं। परन्तु यदि वह शैक्षिक दृष्टि से संतुष्ट रहने की बजाए किस अन्य कसौटी (घर तथा मां-बाप, भाई-बहन आदि की कामना, जिनके साथ वह अपने सुख दुख बांट सके) के आधार पर सोचने लगे तो उसकी “प्रसन्नता‘‘ लुप्त होने लगेगी। यदि वह अपने परिवार के साथ रहने वाले अपने भारतीय साथियों के साथ अपनी तुलना करे तो संभवतरू उसे वंचन महसूस होगा। इन सभी उदाहरणों को देखने से स्पष्ट है कि अपनी स्थिति की तुलना दूसरों की स्थिति से करते हुए पुरुष एवं महिलाओं में बेचैनी तथा परिवर्तन एवं आगे बढ़ने की इच्छा बनी रहती है (देखें चित्र 30.1)।
चित्र 30.1ः तुलनात्मक वंचन की अवधारणा
बोध प्रश्न 1
प) तुलनात्मक वंचन क्या है? एक उदाहरण देकर समझाइए। अपना उत्तर आठ पंक्तियों में लिखिए।
पप) गैर-सदस्यता संदर्भ समूह का एक उदारहण दीजिए। चार पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) यदि मनुष्य अपनी नियति की तुलना दूसरों से करते हैं, जो वे प्रायः करते हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि कभी-कभी वे अपेक्षाकृत वंचित महसूस करें क्योंकि उन्हें दूसरे लोग अपने से अधिक सुखी, अधिक शक्तिशाली और अधिक प्रतिष्ठित लग सकते हैं। इसका उदाहरण एक भारतीय वैज्ञानिक हो सकता है, जो अमरीका में बसे एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक की स्थिति से अपनी तुलना करने पर स्वयं को उन अनेक सुविधाओं से वंचित महसूस करने लगता है जो अनुसंधान में सहायक है।
पप) जब कोई प्राध्यापक अपनी प्रस्थिति, अधिकार या प्रतिष्ठा का मूल्यांकन करने के लिए अपनी तुलना आई.ए.एस. अधिकारियों के साथ करता है तो मर्टन के अनुसार वह गैर-सदस्यता समूह का संदर्भ समूह के रूप में चयन करता है।
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