JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: indianworld

डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया davis theory of landform development in hindi

davis theory of landform development in hindi डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धांत क्या है ? अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया ?

डेविस का भ्वाकृतिक सिद्धान्त
गिलवर्ट की भाँति डेविस महोदय भी अन्वेषक थे। इन्होने क्षेत्र पर्यवेक्षण के आधार पर शुष्क अपरदन चक्र, हिमानी अपरदन चक्र, सागरीय चक्र, कार्ट अपरदन चक्र, ढाल विकास आदि सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। डेविस महोदय ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। डेविस महोदय ने अपने सिद्धान्त का प्रणयन स्थलरूपों के विकास की समस्याओं के समाधान हेतु किया था। समय के साथ स्थलरूपों का विकास विशिष्ट प्रक्रमों के कार्यरत होने पर क्रमिकरूप में होता है। डेविस महोदय ने स्थलरूपों के विकास के विश्लेषण हेतु भोगोलिक-चक के सिद्धान्त का प्रणयन किया। इन्होंने कल्पना की किसी भी स्थलखण्ड का उत्थान सागर से त्वरित होता है। इस पानी विभिन्न प्रक्रम कार्यरत होते हैं तथा दीर्घकाल तक वह स्थलखण्ड तरुणा, प्रौढ़ा एवं जीर्णा अब गुजर कर सम्प्राय मैदान के रूप में परिवर्तित हो जाता है। अर्थात् स्थलरूपों में समय के साथ क्रमिक परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन एक निश्चित दिशा में निश्चित लक्ष्य की ओर उन्मुख होता है। सिद्धान्त 6 मान्यताओं पर आधारित है –
(क) किसी भी स्थलखण्ड पर यदि बाह्य एवं आन्तरिक कारक क्रियाशील रहते हैं, तो कालान्तर एक विशिष्ट स्थलरूप का स्वरूप विकसित होता है।
(ख) पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन का अनुसरण करता हुआ, स्थलखण्ड क्रमिक अवस्थाओं में गुजर कर एक विशिष्ट स्थलरूप में परिवर्तित हो जाता है।
(ग) नदियाँ निम्नवर्ती अपरदन करने में तब तक संलग्न रहती हैं, जब तक ये क्रमबद्ध अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेती हैं। जब ये इस अवस्था को प्राप्त कर लेती हैं, तव इनका पार्श्ववर्ती अपरदन प्रारम्भ हो जाता है।
(घ) पहाड़ी ढाल की क्रमबद्धता निम्न भाग (आधार) से प्रारम्भ होकर शीर्ष भाग की ओर होती है, जिसका नियंत्रण शैल संरचना पर निर्भर करता है।
(ड) जलवायु में परिवर्तन नहीं होता है।
(च) उत्थान की दर एवं अवधि के विषय में 2 तथ्यों को माना है – (1) स्थलखण्ड का उत्थान अत्यल्प समय में त्वरित गति से होता है एवं दीर्घकाल तक स्थिर रहता है, तथा (2) स्थलखण्ड का अपरदन दीर्घकाल तक मन्द गति से होता है।
डेविस महोदय ने स्थलखण्ड में समय के साथ परिवर्तन की व्याख्या प्रस्तुत की। इनके अनुसार कोई भी स्थलखण्ड 3 अवस्थाओं में गुजरता है। ये अवस्थाएँ – तरुण, प्रौढ़ एवं जीर्ण हैं। स्थलखण्ड का त्वरित गति से अत्यल्प अवधि में उत्थान होने के बाद अपरदन के प्रक्रम कार्यरत होते हैं। तरुणावस्था में नदियाँ निम्नवर्ती अपरदन करती हैं, जिससे इनमें सर्वाधिक उच्चावच इसी अवस्था में विद्यमान रहता है। जल विभाजक पर इस अवस्था में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। समय के साथ जल-विभाजकों का विनाश प्रारम्भ हो जाता है तथा नदियाँ पार्श्ववर्ती अपरदन करना प्रारम्भ कर देती हैं। उच्चावच का निरन्तर ह्रास होता है। वृद्धावस्था के अन्तिम चरण में उच्चावच समाप्त हो जाता है तथा स्थलखण्ड एक सम्प्राय मैदान के रूप में परिवर्तित हो जाता है। डेविस महोदय ने स्थलरूपों के विकास में संरचना, प्रक्रम तथा अवस्था तीनों का विश्लेषण किया है। इनके अनुसार – संरचना, प्रक्रम तथा अवस्थाओं का प्रतिफल स्थलरूप होता है।
डेविस द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को 60 वर्षों तक समर्थन मिलता रहा। विगत कुछ वर्षों से भू-आकृति विज्ञानवेत्ता इस सिद्धान्त की कटु आलोचना प्रस्तुत कर रहें हैं, परन्तु वर्तमान में बड़े पैमाने पर अनेक सिद्वानों ने इसे अनुमोदित किया है तथा भविष्य में इसकी सम्भावना बनी रहेगी। जडसन (1975) ने डेविस के कृत्यों को भू-आकृति विज्ञान की एक अमूल्य निधि स्वीकार किया है। इनके अनुसार – ‘His grasp of time, space and change; his commond of detail; and his ability to order his imformation and frame his argument remind us again that we are in the presence of a agiant” वर्तमान में मात्रात्मक विधि का प्रयोग करके डेविस के सिद्धान्त की सत्यता का आकलन किया जाता है, जिसका परिणाम सत्यता के काफी निकट होता है। भू-आकृति विज्ञान में स्थलरूपों की व्याख्या के लिए डेविस के सिद्धान्त का अनुसरण अनिवार्यरूप से मानना होगा। लघु या अन्तन्य लघु आकार के क्षेत्रों का चयन करें
1. Judson, S, 1975: Theories of Landform Development, edited by W. N. Melhon and R. C.Flemal, George Allen Unwin ;Publisher), London.
तथा स्थलरूपों के विकास की व्याख्या करें, परन्तु इनके सत्यापन के लिए डेविस के सिद्धान्त का अवलम्बन अवश्य लिया जाएगा। डेविस के सिद्धान्त के निम्न पक्ष ऐसे हैं, जिनके द्वारा इनको व्यापक ख्याति मिली-
(क) डेविस ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन सरल एवं सामान्य आधार पर प्रस्तुत किया है। सतत बाहिनी सरिता, समान संरचना बाला प्रदेश, अल्पकाल में त्वरित उत्थान, दीर्घकाल तक स्थलखण्ड में स्थिरता, अपरिवर्तित जलबाय. क्रमिक अवस्थाओं में स्थलरूपो के उच्चावच का ह्रास आदि तथ्य इतने सरल एवं सामान्य हैं कि इनकी ग्राह्यता बढ़ जाती है।
(ख) डेबिस ने सिद्धान्त को सरल एवं रोचक शैली में रखने का प्रयास किया है, जिस कारण इनका सिद्धान्त लोगों को आकर्षित करने में सक्षम है।
(ग) डेविस महोदय ने सिद्धान्तों के प्रतिपादन के पूर्व बृहत् स्तर पर क्षेत्र पर्यवेक्षण किया, तत्पश्चात् अनेक उदाहरणों के साथ अपरदन-चक्र के सिद्धान्तों का प्रणयन किया। यही कारण है कि इनका सिद्धान्त सत्यता के निकट एवं ग्राम है।
(घ) डेविस ने अपने पूर्व प्रतिपादित भू-विज्ञान के अनेक सिद्धान्तों – नदी आधार तल की संकल्पना, नदी क्रमबद्धता की संकल्पना, नदी घाटियों का जननिक वर्गीकरण आदि का समावेश अपने सिद्धान्त के अन्तर्गत किया। परिणामतः भू-वैज्ञानिकों सहर्ष इनके सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की।
(ड.) स्थलरूपों के विकास में अतीत की घटनाओं एवं प्रक्रम क्रिया-विधि तथा वर्तमान की घटनाओं एवं प्रक्रम-क्रियाविधि में सामान्जस्य स्थापित करने का प्रयास किया, जिससे इस सिद्धान्त में भविष्यवाणी करने की सामर्थ्य हो गयी।
डेविस के समय में यह सिद्धान्त इतना व्यावहारिक था कि अनेक सिद्धान्त जो प्रतिपादित किये गये, तिरोहित हो गये। किंग, पेंक,गिलबर्ट, हैक आदि विद्वानों की संकल्पनाओं को वह स्थान न मिल पाया, जो मिलना चाहिए था। सिद्धान्त लोकप्रिय, सरल एवं मान्यता प्राप्त होने के बावजूद भी अनेक कमियों से युक्त है –
(क) स्थलरूपों का विकास तरुणा, प्रौढ़ा एवं जीर्णावस्था में होता है। आलोचकों ने डेविस के इन अवस्थाओं के पूर्ण होने में संदिग्धता व्यक्त की है। वास्तव में, डेविस महोदय ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन ‘आधारतल की संकल्पना‘ के आधार पर किया है। इनके अनुसार किसी स्थलखण्ड पर नदियाँ अपरदन करना प्रारम्भ करती हैं तो प्रारम्भ में निम्नवर्ती कटाव करती हैं। कुछ समय बाद निम्नवर्ती अपरदन स्थगित हो जाता है तथा पार्श्ववर्ती अपरदन प्रारम्भ हो जाता है। अन्त में, उच्चावच का ह्रास हो जाता है तथा स्थलखण्ड आकृति विहीन मैदान के रूप में परिवर्तित हो जाता है। डेविस महोदय ने प्रारम्भ में अपरदन से प्राप्त मलवा की मात्रा से ऊर्जा की मात्रा अधिक मानी है। जिस कारण मलवा का परिवहन तथा निम्नवर्ती कटाव होता है। धीरे-धीरे मलवा की मात्रा बढ़ जाती है तथा ऊर्जा इसके बराबर हो जाती है। यह स्थिति नदी की साम्यावस्था की स्थिति होती है। आलोचकों ने इस विचारधारा पर असहमति व्यक्त की है।
(ख) डेविस ने अपने सिद्धान्त में स्पष्ट किया है कि दीर्घकाल तक यदि स्थलखण्ड स्थिर रहता है. तब अपरदन के द्वारा उच्चावच में निरन्तर ह्वास होगा। स्थलखण्ड अन्त में आकृति विहीन मैदान के रूप में परिवर्तित हो जायेगा। आलोचकों ने उच्चावच के ह्वास में तो सहमति व्यक्त की है, परन्तु सम्प्राय मैदान के विषय में असहमति व्यक्त की है।
(ग) डेविस के अपरदन-चक्र में स्थलखण्ड का प्रारम्भ में उत्थान होगा तथा उत्थान के पश्चात् अपरदन की क्रिया सक्रिय होगी। साथ-ही-साथ स्थलखण्ड दीर्घकाल तक स्थिर रहेगा। आलोचकों का मत है कि स्थलखण्ड के उत्थान के समय ही अपरदन प्रारम्भ हो जायेगा। स्थलखण्ड दीर्घकाल तक स्थिर रहेगा. यह सम्भव नहीं है। डेविस महोदय इस कमी का अनुभव किये तथा इसको अपने सिद्धान्त में दूर करने का प्रयास किये।
(घ) डेविस ने ढाल-विकास के सिद्धान्त में स्पष्ट किया है कि नदी प्रारम्भ में न है तथा पार्श्व ढाल खड़ा एवं तीव्र रहता है। कुछ समय बाद निम्नवर्ती अपरदन बन पार्श्ववर्ती अपरदन प्रारम्भ हो जाता है। ढाल का कोण निरन्तर कम होता रहता है। इस महोदय सामान्य ढंग से सिद्धान्त को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। भूगर्भिक जटिलता प्रयास नहीं किया है।
(ङ) डेविस ने अपरदन-चक्र के मध्य लघु उत्थानों की मान्यता आधार-तल में ऋणात्मक पर आधार पर दिया है। इनके अनुसार चक्र के मध्य में यदि उत्थान होता है तो नदी पुनः निम्नवी का करना प्रारम्भ कर देती है। निक-प्वाइन्ट शीर्ष की ओर खिसकता जाता है तथा अन्त में समाप्त हो जाता है। डेविस महोदय पुनर्स्थान में केवल निम्नवर्ती कटाव की बात कही है तथा पार्श्ववर्ती अपरदन की चर्चा नहीं की है।
अन्ततः डेविस का अपरदन-चक्र अनेक कमियों के बावजूद स्थलरूपों की समस्याओं का हल करने में कुछ हद तक सफल रहा। वास्तव में, डेविस के सिद्धान्त में भ्रान्तियाँ इसलिए उत्पन्न हो गयी हैं कि स्थलरूपों के विकास की समस्या को सरल ढंग से हल करने का प्रयास किया है। यदि भूगर्भ का अधिक विवेचन किया होता तो किसी एक क्षेत्र विशेष का सिद्धान्त हो जाता तथा इसको सार्वभौमिकता नहीं मिल पाती। इस सिद्धान्त में अपरदन के मध्य पड़ने वाले व्यवधानों का समावेश करके किसी भी क्षेत्र में लागू किया जा सकता है। जब तक भू-आकृति विज्ञान में स्थलरूपों के विकास सम्बन्धी सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने वाला सशक्त एवं सार्वभौमिक सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया जाता, तब तक इनके सिद्धान्त को अपरिहार्य करना असम्भव होगा।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

6 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now