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जीनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र खींचकर इसके भंजन विभव (जीनर विभव) का मान ज्ञात करना ।
प्रयोग संख्या
Experiment No –
उद्देश्य (object) –
जीनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र खींचकर इसके भंजन विभव (जीनर विभव) का मान ज्ञात करना ।
उपकरण (Apparatus) –
एक जीनर डायोड (जिसका भंजन विभव लगभग 6ट हो), एक 10 वोल्ट का संचायक सेल, दो वोल्टमीटर (परास 10 वोल्ट), एक मिलीअमीटर (परास 0-100 मिली एम्पियर), एक 20 ओम का प्रतिरोध, एक धारा नियंत्रक, कुणा तथा संयोजक तार आदि।
परिपथ चित्र (Circuit Diagram) –
सिद्धान्त (Theory) – जीनर डायोड एक विशेष रूप से निर्मित P-N संधि डायोड ही है जिसमें अपद्रव्य की मात्रा अधिक रखी जाती है जिससे अवक्षय परत पतली होती है तथा इसका भंजन विभव कम (= 6 वोल्ट) तथा तीक्ष्ण होता है। भंजन विभव का मान निर्माण के
समय ही अपमिश्रण की मात्रा द्वारा निर्धारित किया जाता है। अधिक भंजन विभव वाले जीनर डायोड में अपमिश्रण की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
जीनर डायोड का उत्क्रम भंजन विभव, जीनर विभव ZV कहलाता है तथा र्ट के पश्चात् जीनर डायोड में प्रवाहित धारा, जीनर धारा IZ कहलाती है।
यदि निवेशी प्रतिरोध Ri तथा जीनर डायोड की उत्क्रम अवस्था के श्रेणीक्रम संयोजन पर निवेशी वोल्टता Vi आरोपित करने पर निवेशी धारा Ii है तथा जीनर धारा IZ है तो बाह्य लोड प्रतिरोध RL में प्रवाहित धारा
IL = Ii – IZ …..(1)
तथा लोड प्रतिरोध के सिरों पर निर्गत वोल्टता
VO = Rl~ IL …..(2)
या VO = Vi – Ri Ii …..(3)
प्रारंभ में जब निवेशी वोल्टता Vi में वृद्धि होती है तब Ii के मान में अल्प वृद्धि होती है (डायोड उत्क्रम अवस्था में संयोजित होने के कारण) अतः समीकरण (3) से स्पष्ट है कि टव् के मान में भी वृद्धि होती है परंतु भंजन विभव पर टप के मान के वृद्धि करने पर धारा Ii के मान में अधिक वृद्धि होती है परिणामतः राशि Vi – Ri Ii नियत रहती है अर्थात् निर्गत वोल्टता VO नियत रहती है। यह नियत निर्गत विभव VO ही, जीनर विभव ZV के समान होता है।
प्रयोग विधि (Method)-
1. सर्वप्रथम हम चित्रानुसार परिपथ संयोजन करते हैं। परिपथ संयोजन कसे हुए होने चाहिए तथा संयोजन के समय कुंजी की डॉट बाहर निकली होनी चाहिए।
2. अब हम वोल्टमीटरों तथा मिली अमीटर के अत्पतमांक नोट कर लेते हैं तथा देख लेते हैं कि इनमें शून्यांकी त्रुटि तो नहीं है यदि है तो इसे अपने अध्यापक गण की सहायता से दूर कर लेते हैं।
3. अब विभव विभाजक को शून्य स्थिति पर व्यवस्थित कर कुंजी की डॉट लगा देते हैं तथा विभव विभाजक के विसी को धीरे-धीरे खिसकाकर निवेशी वोल्टता Vi का मान बढ़ाते हैं। प्रारंभ में धारा Ii शून्य रहती हैं तथा दोनों वोल्टमीटरों का पाठ्यांक समान रहता है अर्थात् VO = Vi
4. अब विभव विभाजक द्वारा Vi को थोड़ा और बढ़ाने पर निवेशी धारा Ii प्रवाहित होने लगती है जिससे VO < Vi
होती है। जैसे ही निवेशी धारा प्रवाहित होना प्रारंभ होती है, Vi, Ii तथा VO के मान नोट कर लेते हैं।
5. इसके पश्चात V, के मान में 0.5-0.5 वोल्ट से वृद्धि करते हुए प्रत्येक बार Vi, I , तथा VO के मान प्रेक्षण सारणी में नोट कर लेते हैं यह प्रक्रिया तब तक दोहराते हैं जब तक कि Vi , के मान की वृद्धि के साथ VO , के मान की वृद्धि रूक नहीं जाती तथा VO का मान नियत नहीं हो जाता।
6. इसके पश्चात Vi , के मान को और बढ़ाते हुए (10 वोल्ट तक) Vi , I , के परिवर्ती मान तथा VO का नियत मान प्रेक्षण सारणी में नोट कर लेते है।
प्रेक्षण (observations) –
(i) वोल्टमीटर V1 (निवेशी) का अल्पतमांक = ………….. वोल्ट
(ii) वोल्टमीटर V2 (निर्गत) का अल्पतमांक = …………… वोल्ट
(iii) मिली अमीटर का अल्पतमांक = …………… मिली एम्पियर
(iv) सारणी-
क्र.
स. वोल्टमीटर VI का पाठ्यांक मिली अमीटर का पाठ्यांक वोल्टमीटर V2 का पाठ्यांक
खानों
की
संख्या
n1 निवेशी वोल्टता
VI = n1
× अल्पतमांक
(वोल्ट)
खानों
की
संख्या
n2 अग्र धारा
II = n2
× अल्पतमांक
(मिली एम्पियर)
खानों
की
संख्या
n3 निर्गत वोल्टता
V0 = n3
× अल्पतमांक
(वोल्ट)
1.
2.
.
.
.
20.
गणना (Calculation) –
1. निवेशी, वोल्टता Vi को ऋणात्मक X-अक्ष पर तथा निवेशी धारा Ii ऋणात्मक Y -अक्ष पर होकर उचित पैमाना मानते हुऐ इनके मध्य ग्राफ खींचते हैं। तथा निवेशी वोल्टता Vi को X-अक्ष पर एवं निर्गत वोल्टता VO को Y अक्ष पर लेकर उचित पैमाना मानते हुए उनके मध्य भी ग्राफ खींचते है। ये ग्राफ निम्नानुसार प्राप्त होते हैं
2. अब हम दोनों ग्राफों से जीनर विभव ZV का मान ज्ञात कर लेते हैं अर्थात अभिलाक्षणिक पात्र मान जिस पर निवेशी धारा का मान अचानक तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाता है तथा Vi – Vo ग्राफ में Vo जाता है तथा का नियत मान।
3. ये दोनों मान समान प्राप्त होते हैं। यही मान जीनर डायोड का भंजन विभव है।
परिणाम (Result)
दिए गए जीनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र ग्राफ पर अंकित हैं तथा इसके लिए भंजन विभव ZV का मान…………….वोल्ट प्राप्त होता है।
सावधानियाँ (Precautions) –
सभी संयोजन करते हुए होने चाहिए ।
संयोजन करने से पूर्व संयोजक तारों के सिरों को रेगमाल से साफ कर लेना चाहिए।
डायोड में धारा, प्रेक्षण लेते समय ही प्रवाहित होनी चाहिए।
डायोड में उत्क्रम धारा, डायोड की सुरक्षा सीमा से अधिक प्रवाहित नहीं करनी चाहिए।
जीनर विभव के पास निवेशी विभव को बहुत धीरे-धीरे परिवर्तित करना चाहिए।
मौखिक प्रश्न व उत्तर (Viva Voce)
प्रश्न 1. जेनर डायोड क्या है?
उत्तर- यह एक विशेष प्रकार का च्-छ सन्धि डायोड है जिसे एक निश्चित पश्च वोल्टेज परास में प्रचालित किया जाता है।
प्रश्न 2. जेनर डायोड, साधारण PN सन्धि डायोड से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर- जेनर डायोड में च् व छ प्रकार के अर्द्धचालकों में साधारण डायोड की अपेक्षा अपमिश्रण अधिक होता है तथा यह अपमिश्रण जेनर डायोड की कार्यकारी वोल्टेज परास पर निर्भर करता है। कार्यकारी वोल्टेज परास जितनी कम होती है, अपमिश्रण उतना
ही अधिक होता है।
प्रश्न 3. आपका पश्च अभिनति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- पश्च अभिनति का अर्थ है-च् भाग को ऋणात्मक विभव पर तथा छ भाग को धनात्मक विभव पर रखना।
प्रश्न 4. पश्च अभिनति में डायोड से धारा किन आवेश वाहकों के कारण बहती है-बहुसंख्यक अथवा अल्पसंख्यक?
उत्तर- पश्च अभिनति में डायोड से धारा बहुसंख्यक आवेश वाहकों के कारण नहीं बहती है, बल्कि केवल अल्पसंख्यक आवेश वाहकों
के कारण बहती है।
प्रश्न 5. अल्पसंख्यक आवेश वाहक क्या है?
उत्तर- च् भाग में इलेक्ट्रॉन तथा छ भाग में होल। ये आवेश वाहक परमाणुओं के सहबन्धन टूटने से उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 6. पश्च भंजन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर- एक निश्चित पश्च अभिनति पर जब पश्च धारा एकदम बढ़ जाती है, पश्च भंजन या जेनर भंजन कहलाता है। इस वोल्टेज पर लगभग सभी परमाणुओं के सहसंयोजी आबन्ध टूट जाते है।
प्रश्न 7. पश्च भंजन का कारण क्या है?
उत्तर- अल्पसंख्यक आवेश वाहकों की उच्च गतिज ऊर्जा या संधि पर उपस्थित उच्च विद्युत क्षेत्र के प्रबल बल के कारण सहसंयोजी आबन्धों का टूटना एवं इलेक्ट्रॉन-होल युग्मों का उत्पादन होना।
प्रश्न 8. जेनर वोल्टेज से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- जेनर डायोड पर आरोपित वह पश्च विभव जिस पर जेनर भंजन होता है (अर्थात् डायोड धारा एकदम बढ़ती है) जेनर वोल्टेज कहलाता है।
प्रश्न 9. क्या पश्च भंजन के उपरान्त जेनर डायोड को वापस अपनी मूल अवस्था में प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर- हाँ। जेनर डायोड पर पश्च वोल्टेज का मान जेनर वोल्टेज से घटाने पर पुनः सहसंयोजी-आबन्ध जुड़ने लगते हैं तथा जेनर डायोड अपनी मूल अवस्था में वापस आ जाता है।
प्रश्न 10. पश्च भंजन विभव का मान किन घटकों पर निर्भर करता है?
उत्तर- पश्च भंजन विभव का मान प्रयक्त अर्द्धचालक पदार्थ एवं उसमें मिलायी गयी अपमिश्रण की मात्रा पर निर्भर करता है। अधिक अपमिश्रण मिलाने पर पश्च भंजन विभव कम होता है।
प्रश्न 11. समान मात्रा में अपमिश्रण के लिए जर्मेनियम एवं सिलिकॉन से बने डायोड़ो के जीनर विभव में क्या अन्तरं होगा?
उत्तर- जर्मेनियम के डायोड का जीनर विभव, सिलिकॉन के डायोड की अपेक्षा कम होगा।
प्रश्न 12. जेनर धारा किसे कहते हैं?
उत्तर- भंजन के उपरान्त पश्च धारा को जेनर धारा कहते हैं।
प्रश्न 13.जेनर डायोड का मुख्य उपयोग क्या है?
उत्तर- वोल्टेज नियामक (Voltage regulator) की भाँति।
प्रश्न 14. जेनर डायोड, वोल्टेज नियामक की भाँति कैसे कार्य करता है?
उत्तर- भंजन होने पर जेनर डायोड के सिरों पर निर्गत वोल्टेज सदैव जेनर वोल्टेज के बराबर नियत बना रहता है चाहे इस पर आरोपित निवेशी विभव कितना ही क्यों न बढ़ा दिया जाये। इस प्रकार जेनर डायोड प्रत्येक उच्च निवेशी वोल्टेज पर जेनर वोल्टेज के बराबर ही निर्गत वोल्टेज प्रदान करता है।
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