JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: इतिहास

गुरु नानक का जन्म कब और कहाँ हुआ guru nanak dev was born in which place in hindi where and when

guru nanak dev was born in which place in hindi where and when गुरु नानक का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

प्रश्न: गुरुनानक
उत्तर: इनका जन्म कार्तिक पूर्णिमा, संवत् १५२७ अथवा 15 अप्रैल 1469 ई. में तलवंडी (आधुनिक ननकाना) पंजाब में एक खत्री परिवार में हुआ था। 1538 ई. में करतारपुर में इनका निधन हो गया। एकेश्वरवाद तथा मानव मात्र की एकता गुरु नानक के मौलिक सिद्धान्त थे। नानक ने जाति-पात, बाह्य आडम्बर तथा ब्राह्मणों और मुल्लाओं की श्रेष्ठता का विरोध किया। मार्ग दर्शन के लिए वे गुरु की अनिवार्यता को पहली शर्त मानते थे। कबीर की भाँति मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा तथा धार्मिक आडम्बरों के कट्टर विरोधी थे किन्तु कर्म एवं पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे। गुरुनानक ने निराकार (आकार रहित) ईश्वर की कल्पना की और इस निराकार ईश्वर को इन्होंने अकाल पुरुष (अनन्त एवं अनादि ईश्वर) की संज्ञा दी। वे काव्य रचना करते थे और रबाब व सारंगी के साथ गाया करते थे। कहा जाता है कि नानक ने सारे भारत और दक्षिण में श्रीलंका तथा पश्चिम में मक्का और मदीना का भ्रमण किया। इन्होंने प्रेरणादायी कविताओं एवं गीतों की रचना की जिन्हें एक पुस्तक रूप में संकलित किया गया जो बाद में आदि ग्रन्थ के नाम से प्रकाशित हुआ। अकबर की धार्मिक और राजनीतिक नीतियों में कबीर एवं नानक दो महान संतों के उपदेशों को
लक्षित किया गया है।
प्रश्न: दादू
उत्तर: कबीर तथा नानक के साथ निर्गुण भक्ति की परम्परा में दादू का महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म अहमदाबाद मे एक जुलाहा के यहाँ हुआ था इनकी मृत्यु 1603 ई. में राजस्थान के नराना या नारायण गाँव में हुई थी। जहाँ अब इनके अनुयायियों (दादू-पंथियों का मुख्य केन्द्र है। इनके जीवन का महान स्वप्न सभी धर्मों के विपथगामियों को प्रमा बन्धुत्व के एक सूत्र में आबद्ध करना था और इस महान आदर्श को कार्य रूप में परिणत करने के लिए ब्रह्म सम्प्रदाय या परब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना की। इन्होंने पस्तीन पर विशेष जोर दिया। दादू धर्मग्रन्थों की सत्ता में नहीं बल्कि आत्म जान के महत्व में विश्वास करते था दान पुस्तकीय ज्ञान का तिरस्कार न कर लिखित रूप में सन्त वाणियों की रक्षा भक्ति को समाज-सेवा एवं मानवतावादी दृष्टि से संबद्ध किया। ष्ईश्वर के सम्मख सभी स्त्री-पुरुष भाई-बहनों की भांति है। दादू की शिक्षा थी ष्विनयशील बनो तथा अहम से मुक्त रहो।ष् दादू गृहस्थ थे तथा इनका विश्वास था कि गृहस्थ का सहज जीवन आध्यात्मिक अनुभूति के लिए अधिक उपयुक्त है। दादू के अनुरोध पर इनके शिष्यों ने विभिन्न सम्प्रदायों की भक्ति परक रचनाओं को संकलित किया। दादू ने एक असाम्प्रदायिक मार्ग (निपख सम्प्रदाय) का उपदेश दिया। दादू के अनेक शिष्यों में सुन्दरदास, रज्जब तथा सूरदास प्रमुख थें। रज्जब का कहना है ष् जितने मनुष्य है उतने ही अधिक सम्प्रदाय हैष्। रज्जब ने कहा कि ष् यह संसार वेद है यह सृष्टि कुरान है।ष्
प्रश्न: चैतन्य
उत्तर: चैतन्य को बंगाल में आधुनिक वैष्णववाद, (गौडीय वैष्णव धर्म ) का संस्थापक माना जाता है। भक्त कवियों में चत मात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने
मूर्तिपूजा का विरोध नहीं किया। उनके दार्शनिक सिद्धांत वेदान्त अद्वैतवाद था। इन्होने श्गोसंाई सम्प्रदायश् की स्थापना की। उड़ीसा नरेश प्रताप रुद्र गजपति उनके शिष्य थे। उनके संरक्षण में चैतन्य स्थायी रूप से पुरी म रहे और वहीं इनका देहावसान हुआ। चैतन्य ने ईश्वर को कुष्ण या हरि नाम दिया। इन्होंने राधा और कृष्ण की उपासना की तथा वृन्दावन में राधा-कृष्ण को आध्यात्मिक रूप प्रदान किया। इन्होंने मध्यगौडीय सम्प्रदाय या अचिन्त्य भेदोभेद सम्प्रदाय की स्थापना की। इनके अनुयायी इन्हें कृष्ण या विष्णु का अवतार मानते हैं तथा इन्हें गौरांग महाप्रभु के नाम से पूजते हैं। चैतन्य ने भक्ति में कृष्ण, नृत्य व संगीत तथा कीर्तन भक्ति को मुख्य स्थान दिया।
प्रश्न: बल्लभाचार्य
उत्तर: बल्लभाचार्य वैष्णव धर्म के कृष्ण मार्गी शाखा के दूसरे महान सन्त थे। ये तेलग बह्मण परिवार के थे। काशी में अपनी शिक्षा पूर्ण करने के
पश्चात् बल्लभाचार्य अपने गृहनगर विजयनगर चले गये और कृष्ण देवराय के समय में इन्होंने वैष्णव सम्प्रदाय की स्थापना की। ये श्रीनाथ
जी के नाम से भगवान कृष्ण की पूजा करते थे। कबीर और नानक की तरह इन्होंने विवाहित जीवन को आध्यात्मिक उन्नति के लिए बाधक नहीं माना। इन्होंने शुद्धाद्वैत मत दिया। इन्होंने अनेक धार्मिक ग्रंथ लिखे जिनमें सुबोधिनी टीका और अणुभाष्य प्रमुख हैं। इनके पुत्र विट्ठल नाथ ने कृष्ण भक्ति को अधिक लोकप्रिय बनाया। अकबर ने उन्हें जागीरे प्रदान की। बल्लभाचार्य पुष्टिमार्ग और भक्तिमार्ग के विश्वास करते
थे।
प्रश्न: मीराबाई
उत्तरः मीराबाई सोलहवी शताब्दी के भारत की एक महान महिला सन्त थी। ये केकड़ी (मेड़ता, नागौर) के राजा रत्नसिंह राठौर की इकलौती सन्तान थी। इनका विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। मीरा भगवान कृष्ण की भक्त थी तथा राजस्थानी और ब्रजभाषा में गीतों की रचना की। मीरा ने अपने काव्य में कृष्ण को प्रेमी, सहचर और अपना पति मानकर चित्रित किया है।
प्रश्न: सूरदास
उत्तर: इनका जन्म रुनकता (आगरा) नामक ग्राम में हुआ था। ये अकबर एवं जहाँगीर के समकालीन थे। सूरदास भगवास कृष्ण और राधा के भक्त
थे। इन्होंने ब्रजभाषा में तीन ग्रंथों सूरसारावली, सूरसागर एवं साहित्य लहरी की रचना की। इन ग्रंथों में सूरसागर सबसे प्रसिद्ध है। इसकी रचना जहाँगीर के समय में हुई। सूरदास जी अष्टछाप के कवि थे। सरदास जी सगुण भक्ति (कृष्ण भक्ति) के उपासक थे। वे बल्लभाचार्य के समकालीन थे जिनसे इन्होंने बल्लभ समप्रदाय की दीक्षा ग्रहण की।
प्रश्न: तुलसीदास
उत्तर: तुलसीदास जी मुगल शासक अकबर के समकालीन थे। इनका जन्म 1523 ई. में बाँदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। वे राम भक्त थे। 1574-75 ई. में इन्होंने रामचरित मानस की रचना की। इसके अतिरिक्त इन्होंने कई अन्य ग्रंथों की रचना की। जैसे-गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका, बरवै रामायण आदि। रामचरित मानस में सर्वोच्च कोटि की धार्मिक भक्ति का विवरण है। इसकी रचना अवधी भाषा में हुई है।
प्रश्न: महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन
उत्तर: महाराष्ट में भक्ति पंथ पण्ढरपर के मुख्य देवता बिठोवा या बिट्ठल के मंदिर के चारों ओर केन्द्रित था. बिटाला बिठोवा को कृष्ण का अवतार
माना जाता था। इसलिए यह आदोलन पण्ढरपुर आंदोलन के रूप में प्रसिद्ध है। महाराष्ट के भक्ति आंदोलन मुख्यरूप से दो सम्प्रदायों में विभक्त था रहस्यवादियों का प्रथम सम्प्रदाय बारकरी अर्थात पण्ढपुर के बिठल भगवान के सौम्य भक्तों के रूप में तथा दूसरा सम्प्रदाय धरकरी सम्प्रदाय या भगवान दास के भाव सम्प्रदाय (धरकरी) के अनुयायी स्वयं को रामदास अविहित करते हैं। बिठोवा पंथ के तीन महान गुरू ज्ञानदेव, नामदेव तथा तुकाराम थें। निवृतिनाथ तथा ज्ञानेश्वर महाराष्ट में रहस्यवादी सम्प्रदाय के संस्थापक थे। यह सम्प्रदाय आगे चल विकसित हुआ तथा नामदेव, एकनाथ और तुकाराम के हाथों इसने विभिन्न रूप धारण किये।
प्रश्न: ज्ञानेश्वर या ज्ञानदेव
उत्तर: महाराष्ट्र के प्रारम्भिक वैष्णव भक्त सन्त ज्ञानेश्वर का अभ्युदय 13वीं शताब्दी में हुआ था। इन्होंने मराठी भाषा में भगवतगीता पर भावर्थदीपिका (ज्ञानेश्वरी) टीका (समीक्षा) लिखी जिसकी गणना संसार की सर्वोत्तम रहस्यवादी रचना में की जाती है। इन्होंने मराठी भाषा में अपने विचार और आदर्शों को व्यक्त किया। इनकी अन्य रचनाएं हैं अमृतानुभव तथा चंगदेव प्रशस्ति।
प्रश्न: नामदेव
उत्तर: नामदेव का जन्म एक दर्जी के परिवार में हुआ था। अपने प्रारम्भिक जीवन में ये डाकू थे। पण्ढरपुर के बिठोबा (विष्णु के अनन्य भक्त थे। बारकरी सम्प्रदाय के रूप में प्रसिद्ध विचारधारा की गौरवशाली परम्परा की स्थापना में इनकी मुख्य भूमिका रही। इनके कुछ गीतात्मक पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित हैं। इन्होंने कुछ भक्ति परक मराठी गीतों की रचना की। जो श्अभंगोंश् के रूप में प्रसिद्ध है। इन्होंने जाति प्रथाश् का खण्डन किया। नामदेव ने कहा ष्एक पत्थर की पूजा होती है, तो दूसरे को पैरों तले रौंदा जाता है। यदि एक भगवान है, तो दूसरा भी भगवान है।ष्
प्रश्न: रामदास
उत्तर: इनका जन्म 1608 ई. में हुआ था। इन्होंने बारह वर्षों तक पूरे भारत का भ्रमण किया तथा अन्ततः कृष्णा नदी के तट पर चफाल के पास बस गये जहाँ इन्होंने एक मंदिर की स्थापना की। ये शिवाजी के आध्यात्मिक गुरु थे। इन्होंने अपनी अति महत्वपूर्ण रचना दासबोध में आध्यात्मिक जीवन के समन्वयवादी सिद्धांत के साथ विविध विज्ञानों एवं कलाओं के अपने विस्तृत ज्ञान को संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया है।
प्रश्न: शंकरदेव
उत्तर: ये मध्यकालीन समय में असम के महानतम धार्मिक सुधारक थे। इनका सन्देश विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के प्रति पूर्ण भक्ति पर केन्द्रित था। एकेश्वरवाद इनकी शिक्षाओं का सार है। इनके द्वारा स्थापित श्एकशरण सम्प्रदायश् प्रसिद्ध है। इन्होंने सर्वोच्च देवता की महिला सहयोगियों (जैसे – लक्ष्मी, राधा, सीता आदि) को. मान्यता प्रदान नहीं की। शंकरदेव के सम्प्रदाय में भागवत पुराण या श्रीमद् भागवत को गुरुद्वारों में ग्रन्थ साहिब की भाँति इस सम्प्रदाय के मंदिरों की वेदी पर श्रद्धापूर्वक प्रतिष्ठित किया। शंकर मूर्तिपूजा एवं कर्मकाण्ड दोनों के विरोधी थे। ये अकेले कृष्ण मार्गी वैष्णव सन्त थे जो मूर्ति के रूप में कृष्ण की पूजा के विरोधी थे। इनके धर्म को सामान्यतया महापुरुषीय धर्म के रूप में माना जाता है।
प्रश्न: भक्ति आंदोलन में राजस्थान के भक्त कवियों के योगदान की समीक्षा कीजिए।
उत्तर: राजस्थान के भक्त कवियों में दादू, रैदास और मीरा उल्लेखनीय है। दादू की साधना में निर्गुण भक्ति और समाज सुधार की उत्कंठा कबीर के समकक्ष है। रैदास की वाणी एकात्मकता की पर्याय है एवं रैदास की शिष्या मीरा के भक्ति काव्य में सगुण प्रेममाधुरी में कृष्ण आराधना प्रतिबिम्बित है। राजस्थान के भक्त कवियों ने भक्ति मार्ग को लोक पारम्परिक बना दिया।
प्रश्न: वीरशैववादध्लिंगायत
उत्तर: i. शैवधारा से सम्बद्ध मत जिसका उद्भव कर्नाटक क्षेत्र में (12वीं शताब्दी में) हुआ।
ii. परम्परा में इसकी स्थापना 5 महान धार्मिक शिक्षकों से सम्बद्ध किया जाता है जोकि पृथ्वी पर शिव के अवतार के रूप में देखे जाते हैं।
iii. इसके संस्थापक बासव थे जोकि कल्चुरी शासक बीजल का मंत्री था।
iv. यह एक सामाजिक सुधार आंदोलन के रूप में था।
v. इसमें ब्राह्मणों का विरोध, जाति का विरोध, महिलाओं के लिए समान अधिकार, विधवा पुनर्विवाह इत्यादि मुद्दा पर बल दिया गया।
vi. इसका दर्शन शक्ति विशिष्टाद्वैत कहलाता है जिसके अन्तर्गत परशिव ही एकमात्र सत्य है जोकि शक्ति से विशिष्ट है।
vii. वीरशैवावाद सत्स्थल सिद्धान्त से सम्बद्ध था व इसके अंतर्गत स्थल ही सभी ऊर्जाओं का स्त्रोत है। सभी का उन स्थल से होता है
और वे स्थल में ही विलीन हो जाते हैं।
viii. इसमें शिवलिंग को विशेष महत्व दिया गया और पवित्र धागे का परित्याग कर शिवलिंग धारण करते थे। ।
ix. वीरशैववाद के ग्रंथ श्वचनश् कहलाते हैं जोकि वीरशैव शिक्षकों के द्वारा पद्य रूप में कन्नड़ में लिखा गया।
x. इस धारा से जुड़े हुए महत्वपूर्ण सन्त-पण्डित राध, अक्रमा देवी. मल्लिकार्जुन, अल्लमा प्रभु थे।
इस धारा ने कर्नाटक व आन्ध्रप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में प्रभाव को स्थापित किया। ब्राह्मण रूढ़िवादिता का सम एक भूमिका निभायी।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

18 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

4 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now