हिंदी माध्यम नोट्स
गांधार कला की विशेषताएं क्या है ? gandhar art in hindi was influenced by combination of
gandhar art in hindi was influenced by combination of गांधार कला की विशेषताएं क्या है ?
शुंग-सातवाहन-कुषाण काल (Shunga Satvahna Kushana Period)
शुंग-सातवाहन काल में बौद्ध, जैन और ब्राह्मण तीनों धर्मों से संबंधित स्थापत्य कलाकृतियों की रचना हुई। मौर्यकाल में भवनों के निर्माण में काष्ठ, कच्ची ईंटों एवं मिट्टी का प्रयोग हुआ है लेकिन शुंग-सातवाहन काल में इस परंपरा में बदलाव आया और उनकी जगह पत्थर प्रयक्त होने लगे। मौर्यकाल में हमें शैल उत्कीर्णन के कुछ उदाहरण तो प्राप्त होते हैं लेकिन यह काम विशद रूप में शुंग-सातवाहन काल में हुआ। मौर्यकालीन प्रस्तर स्तंभ कला का प्रयोग इस काल में भी जारी रहा जैसा कि हम हेलियोडोरस के स्तंभ में देखते हैं लेकिन उनमें मौर्यकालीन प्राणवान अंकन नहीं है। दूसरा अहम बदलाव यह हुआ कि मौर्यकालीन कला मुख्यतः राजकीय है लेकिन शंुग-सातवाहनों में कला का विषय राजकीय से हटकर लोककलाओं या आम जीवन के ज्यादा नजदीक हो गया। एक नजरिए से इस काल की कला मौर्यकाल की कला का विस्तार भी है। जिन स्तूपों का निर्माण मौर्य युग में होना प्रारंभ हुआ था अब उनके अलंकरण का काम इस युग में होना शुरु हुआ। जैसे सांची, भरहुत और बोध गया के स्तूपों के तोरणों आदि में गहन अलंकरण इस काल की देन है। कार्ले, भाजा, अजंता आदि जगहों पर कला के नए स्वरूप पल्लवित हुये। इस युग के शिल्पकारों ने पहले दौर में मनुष्य, फूल, पत्ती और पशु-आकृतियों का अधिक प्रयोग किया और इस युग के उत्तरार्द्ध में मूर्तिकला पर ज्यादा साल में महात्मा बुद्ध की मूर्तियों या हिन्दू मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ। यह परंपरा इस काल में भी जारी रही और निर्माण के बजाए उनसे जुडे़ धार्मिक प्रतीकों जैसे चक्र, पीपल का पेड़, बुद्ध के जन्म एवं जीवन से जुड़ी अन्य नीतिक कथाओं का अंकन हुआ। सकीने बुद्ध धर्म को संरक्षण दिया लेकिन शुंग वंशीय शासकों ने इन नीतियों में परिवर्तन करके ब्राह्मण धर्म को प्रश्रय। वंश की तुलना में बौद्ध धर्म का संरक्षण बेहद कम होने का प्रभाव कला पर भी पड़ा। हालाँकि. सांची आदि जगहों के अलंकरण इसी युग में हुआ लेकिन ऐसे कार्यों में मौर्यकालीन उत्साह नहीं दिखता। अशोक के काल में बना सांची का ईटों का था बाद में शुंग राजाओं ने उसके चारों ओर पत्थर की वेदिका बनवा दी और सातवाहन राजाओं ने इसके तोरणद्वार स्वादियों इन अलंकरणों को विषयवस्तु बुद्ध के जीवन और उनके पूर्व जन्मों सम्बंधी गाथाएं, मायादेवी का स्वप्न, जेतवन दान, जातक कथाएं, पारिवारिक दृश्य, अनेक प्रकार के पशु, नृत्य आदि के दृश्य हैं। इनके अलावा गजलक्ष्मी, मोटे पैरों वाले बौनों, यक्ष यक्षिणी की मूर्तियाँ, इंद्रसभा की अप्सराएँ, देवता एवं नाग संबंधी कलाकृतियां मिली हैं।
सांची के समकालीन कला को उत्कृष्टता का महत्त्वपूर्ण उदाहरण ओडिशा के जैन धर्म संरक्षक राजा खारवेल के युग में जैन श्रमणों के लिए भुवनेश्वर के निकट बनाई गयौं उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएँ हैं। उदयगिरि की पहाड़ी में 18 गुफाएँ और खंडगिरि में 15 गुफाएँ बनाई गयीं। हालाँकि जानकारों में इनकी संख्याओं को लेकर मतभिन्नता बनी है। दूसरे मतानुसार इनकी संख्या क्रमशः 19 और 16 हैं। इनमें कई गुफाएँ प्राकृतिक हैं और कुछ पत्थरों को काट कर बनाई गयी हैं। यहाँ उकेरे गये शिलालेखों में इन गुफाओं को ‘लेना‘ कहा गया है। ईसा पूर्व दुसरी शताब्दी में बनी उदयगिरि की गुफाएँ लगभग 135 फुट और खंडगिरि की गुफाएँ 118 फुट ऊंची हैं। ये गुफाएँ ओडीशा क्षेत्र में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं। इनमें से अधिकतर गफाएँ लंबाई में छोटी हैं और इनका प्रयोग केवल सोने के लिए होता था। अलग-अलग गुफाओं पर उनके राजकीय संरक्षकों के नाम उत्कीर्ण हैं। उदयगिरि गुफाओं में रानीगुम्फा या रानी नर गुफा ध्वनि संतुलन को विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है और समझा जाता है कि इसका प्रयोग मंत्रोच्चार के लिए और नाट्य प्रदर्शनों के लिए किया जाता है। यहाँ पर रथ पर सवार सूर्य देवता को भी मूर्ति है। दीवारों पर चित्र-बेलें और प्रवेश स्थल पर दो संतरियों की मूर्तियों सहित इसमें कुछ सुंदर वास्तुकला के दृश्य हैं। अन्य गुफाओं के नाम बाजाघर, छोटा हाथी गुम्फा, जय-विजय गुप्फा, पनासा गुम्फा, ठकुरानी गुम्फा, गणेश गुम्फा. मंचापुरी, स्वर्गपुरी. पातालपुरी गुम्फा आदि हैं। हाथीगुम्फा में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण राजा खारवेल का शिलालेख मिला है। इसी प्रकार खंडगिरि की गुफाओं के नाम तातोवा, अनंत. तेनतुली, ध्यान, तयमुनि, बाराभुजा, त्रिशूल, अम्बिका और ललतेंदुकसरी गुम्फा आदि हैं।
इसी तरह पश्चिमी भारत में स्थापत्य कला का बहुत विकास हुआ। यहाँ के काठियावाड़ इलाके में मिली बौद्ध गुफाएँ सबसे प्राचीन हैं। इसके बाद खंभात की खाड़ी के पार के इलाके में कला-सौष्ठव से युक्त गुफाओं का निर्माण हुआ। ये गुफाएँ हीनयान और बाद में महायान संप्रदाय के श्रमणों के अधिकार में आई। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण पूर्ण के लोनावला इलाके में सह्याद्रि की पहाडियों में काले (या काला) एवं भज.(या भाजा) औरंगाबाद जिले (महाराष्ट्र) में अजंता (या अजिंठा) आदि क्षेत्रों में गफाएँ हैं। ईसा की पहली सदी के आसपास यह क्षेत्र दक्षिण और उत्तर भारत के बीच की कड़ी के रूप में माना गया। इसी क्षेत्र से व्यापारिक मार्ग गुजरते थे। भारत के सबसे बड़े चैत्यों या पूजागृहों में शामिल कार्ले का चैत्य करीब 45 मीटर लंबा, 15 मीटर चैड़ा और 14 मीटर ऊँचा है। इसके मुख्य कमरे में स्त्री पुरुष सहित शेर एवं हाथी का अलंकरण मिलता है। कार्ले के परिसर में कुछ अन्य चैत्य ओर विहार (आवासीय क्षेत्र) भी मिले हैं। इसके निकट ही बनी भज की गफाओं में निर्मित चैत्य एवं विहार एवं इसके आसपास बने अन्य चैत्य और जल संग्रहण का तरीका पोडिस (चवकीपे वत ूंजमत बपेजमतदे) भी उत्कृष्ट स्थापत्य का नमूना हैं। इसी तरह वहाँ पर कोंडन, बेडसे और जुन्नार में विहार एवं चैत्य हैं। जन्नार को गुफाओं में मूर्तियाँ नहीं हैं केवल कुछ गुफाओं में श्रीलक्ष्मी, कमल, गरुड़ आदि आकृतियों का अलंकरण दिखता है। पूणे के निकटवर्ती जिले औरंगाबाद में अजंता और पीतलखोरा की गुफाएँ मिली हैं। अजंता में कुल 29 गुफाएँ हैं जिनमें चार चैत्य और 25 विहार हैं। इनमें गुफा संख्या दस सबसे प्राचीन है। अजंता से दक्षिण-पश्चिम में 50 मील दूर सातमाला की पहाड़ियों में पीतलखोरा की गुफाएँ मिली हैं। इस चैत्य में लकड़ी का भी प्रयोग किया गया था।
कुषाण काल में मूर्ति कला के दो प्रमुख स्कूल या पद्धतियां विकसित हुईं। इन्हें गंधार कला (या गांधार कला) और मथुरा कला कहा गया। इनका विवरण इस प्रकार है-
गंधार कला (Gandhar Art)
पहली सदी से लेकर तीसरी सदी तक का इतिहास उथल पुथल भरा रहा है। राजनीति के क्षेत्र में आये परिवर्तनों ने कला क्षेत्र पर भी प्रभाव डाला। विदेशी शासकों के भारत में आगमन और यहाँ बस जाने के कारण दो बातें हुईं। एक तो यह कि अनेक यवन जातियाँ भारतीय धर्मों में दीक्षित होने लगीं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस का विदिशा में लगा वह स्तंभ है जिसमें वह खुद को ‘भागवत‘े कहता है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि भारतीय संस्कृति और कला का भारत से बाहर प्रचार होने लगा। उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में ग्रोकों का शासन स्थापित होने के बाद यवन देशों से संपर्क की आवृति बढ़ गई। इन घटनाओं की पृष्ठभमि में अफगानिस्तान और पश्चिमी पंजाब के बीच के बसे गंधार या आज के पेशावर से लेकर जलालाबाद तक के क्षेत्र में विकसित हुई कला की शैली को ‘गंधार शैली‘ कहा गया। यानी यह शैली ऐसी है जिसमें हिन्दुस्तान और ग्रीक कला दोनों के प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं। इस युग में विकसित वास्तु की दृष्टि से तक्षशिला का महत्त्वपूर्ण स्तूप ‘धर्मराजिका‘ या चीरस्तूप है। दूसरा महत्त्वपूर्ण स्तूप ‘मणिक्याला का स्तूप‘ है। वास्तुकला की दृष्टि से तक्षशिला के सिरकप और सिरमुख क्षेत्र महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। सिरकप में दो सिर वाले गरुड़पंक्षी देवालय को हिन्द-यूनानी स्थापत्य के प्राचीनतम नमूनों में एक माना जाता है। इसी तरह तक्षशिला में मिला ‘जांडियाल का मंदिर‘ तख्त-ए-वाही का बौद्ध स्तूप भी स्थापत्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान के पेशावर क्षेत्र में शाहजी को ढेरी से भी हिन्द-यूनानी स्थापत्य प्रभावों से युक्त बौद्ध स्तूप के अवशेष मिले हैं।
स्थापत्य के अलावा इस शैली में बनी मूर्तियाँ हिन्दूकुश की पहाड़ियों से लेकर मथुरा तक पर्याप्त संख्या में मिली हैं। कुषाण काल में इस शैली में बनी मूर्तियाँ संख्या और गुणवत्ता की दृष्टि से ज्यादा उत्कृष्ट हैं। इस शैली का प्रमुख विषय महात्मा बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियाँ हैं। कई विद्वान महात्मा बुद्ध की पहली मूर्ति के निर्माण का श्रेय गंधार कला को ही देते हैं। इनके अनुसार बुद्ध की पहली मूर्ति इसी शैली में बनी और इसी का अनुसरण मथुरा एवं अन्य कलाओं में किया गया। कुछ विद्वान इससे असहमत हैं। गंधार शैली में बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और बौद्ध धर्म से जुड़ी कथाओं के विषय आदि से ही इस कला को विस्तार मिला।
इस कला की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मूर्तियों में महात्मा बुद्ध और बौद्ध धर्म संबंधी विषयों से प्रेरणा दिखाई पड़ती है। इस कला में तत्कालीन जैन और ब्राह्मण धर्म से संबंधित मूर्तियों संबंधी प्रमाण नहीं हैं।
2. मूर्तियों में ग्रीक शिल्प केवल बाहरी प्रभाव में परिलक्षित होता है जबकि मूर्ति के आंतरिक और बाह्य भावों में भारतीय पक्षों को अधिकता है। यानी मूर्तियों की मुद्राएं तो बौद्ध हैं लेकिन उनका चित्रण ग्रीक से प्रेरणा पाता है। जैसे बुद्ध कमलासन में बैठे हैं लेकिन उनके हाव भाव ग्रीक देवताओं जैसे है।
3. इस शैली के मूर्तिकारों ने ‘भूरे एवं धूसर‘ पत्थरों का प्रयोग किया है। हालांकि कुछ उदाहरण चुना और बालू के मिश्रण से तैयार मूर्तियों के भी मिलते है।
4. इस शैली में ऊँचे घुटने तक के जूते. चुन्नटों वाले वस्त्र, महीन सलवटों वाले वस्त्र की सज्जा का प्रयोग किया गया है।
5. गंधार कला में अलंकरण की प्रवृत्ति ज्यादा मिलती है। इस कला में महात्मा बुद्ध का स्वरूप आध्यात्मिक न होकर राजसी ज्यादा प्रतीत होता है। अन्य प्रकार की मूर्तियों में इसी राजसी वैभव के दर्शन होते हैं।
6. महात्मा बुद्ध की मूर्तियों में मूंछे भी उकेरी गयी हैं। यह एक विशिष्ट लक्षण है जो किसी अन्य भारतीय मूर्तिकला में मिलना दुर्लभ है। इसी तरह उनके होठ मोटे बनाए गये हैं।
7. बालों को जटाओं के बजाए घुघराला स्वरूप दिया गया है। केश सज्जा का विधान भी विशिष्ट है।
8. गंधार की मूर्तियों में ‘प्रभामंडलं‘ बनाया गया। भारतीय मूर्तिशिल्प में यह नया कदम आगे चलकर बहुत प्रभावशाली सिद्ध हुआ और इसने चित्रकारी को कला में लोगों को चित्रांकन में प्रभामंडल बनाने की प्रेरणा दी।
9. ग्रीक कला में देवताओं की मूर्तियाँ शारीरिक सौष्ठवे से युक्त बताई गयीं। इसका प्रभाव गंधार कला पर भी दिखता है। महात्मा बुद्ध कृशकाय नहीं बनाये गये अपितु उनकी कद काठी मजबूत रखी गयी। शरीर और मुखमंडल को संतुलित बनाने के कारण चेहरे पर आध्यात्मिक भाव नहीं आयें हैं।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…