खालसा भूमि : जब भारत पर मुगलों का शासन था उस समय खालसा भूमि ऐसी भूमि होती होती थी जिसकी आय पर सीधा बादशाह अथवा सुल्तान का हक़ होता था। उस समय बादशाह के शासन को केंद्र अथवा राज्य कहा जाता था अत: खालसा भूमि पर सीधे केन्द्र का नियंत्रण होता था। परिभाषा : ऐसी भूमि जिस पर राजा अथवा बादशाह का सीधा नियंत्रण होता था , इस भूमि में जो भी कुछ उत्पादित होता था उस पर पूर्ण रूप से बादशाह का अधिकार होता था और इस भूमि पर भी सम्पूर्ण रूप से बादशाह का हक होता था।
ऐसा क्यों किया जाता था ?
संभवतः ऐसी भूमि जिस पर अच्छी फसल उत्पादित होती थी उसे खालसा भूमि कहा जाता होगा ताकि उस पर उत्पन्न हर एक वस्तु पर बादशाह का हक हो। अथवा इसका दूसरा कारण ये भी हो सकता था जिस क्षेत्र का मालिक न होता होगा उसे खालसा भूमि कहा जाता होगा क्योंकि जो किसी विशेष व्यक्ति की निजी सम्पत्ति के अलावा राज्य में जो कुछ भी होता था उस पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से राजा का ही हक होता था। लेकिन इन दोनों कारणों में से कारण – 1 सही लगता है क्योंकि पहले जिस क्षेत्र में अच्छी पैदावार होती थी , राजा उससे उत्पन्न वस्तुओं को खुद लेना चाहता था जिससे उसकी आय में बढ़ोतरी हो और उसके खाने के लिए अच्छी अच्छी फसल और अन्य वस्तुओं का इंतजाम हो सके। इसलिए खालसा भूमि को बादशाह के लिए सुरक्षित अथवा संरक्षित रखा जाता था ताकि राजा की आय में कमी न आ सके। अन्य प्रकार की भूमि से राजा को अप्रत्यक्ष रूप से आय अथवा कर प्राप्त होता था अत: हम कह सकते है अन्य प्रकार की भूमि पर राजा का अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण होता था लेकिन खालसा भूमि पर राजा का प्रत्यक्ष नियंत्रण होता था इसलिए इस भूमि पर वह कर नहीं लेता था बल्कि इस भूमि पर उत्पन्न सम्पूर्ण उत्पादन राजा के अधीन अथवा राजा के राज्य कोष में जमा होता था। अन्य प्रकार की भूमि में जो मेहनत करके फसल उत्पादित करता था उसे थोडा बहुत टैक्स (कर) जमा करने के बाद शेष उस मजदुर का होता था। लेकिन खालसा भूमि पर उत्पन्न वस्तु पर सम्पूर्ण प्रत्यक्ष रूप से राजा का हक होता था। खालसा भूमि से उत्पन्न आय अर्थात उससे जो भी पैसे आदि मिलते थे उसे राज्य कोष में जमा करके राजा के राज्य कोष धन में वृद्धि की जाती थी जिसका उपयोग राजा स्वयं के खर्चे के लिए करता था अर्थात खालसा भूमि से उत्पन्न आय का इस्तेमाल राजा निजी खर्चे के रूप में करता था। यहाँ निजी खर्च से तात्पर्य शाही परिवार की जरूरतों को पूरा करना अर्थात उनके खाने पीने , कपड़ों आदि का खर्च , इसके अलावा दरबार में रहने वाले लोगों को आय देने , अंगरक्षकों को आय देने के लिए काम लिया जाता था। इसके अलावा युद्ध के लिए सेना तैयारी आदि के लिए धन की आवश्यकता होती थी उसकी पूर्ति भी इसी धन के द्वारा की जाती थी। ऐसा माना जाता है कि बादशाह के साम्रज्य के कुल क्षेत्र का लगभग 20% क्षेत्र को खालसा भूमि के लिए आरक्षित रखा जाता था अर्थात इस 20% क्षेत्र पर सीधे बादशाह का नियंत्रण होता था और इसमें उत्पन्न पदार्थो पर भी राजा का हक होता था , शेष भूमि किसी न किसी की निजी सम्पत्ति मानी जा सकती है। अन्य 80% भूमि पर सामंत तथा अन्य व्यक्तियों का अधिकार होता था , हालाँकि अप्रत्यक्ष रूप से ये भी राजा के अधीन ही थी अथवा नियंत्रण में थी लेकिन प्रत्यक्ष रूप से इन पर सामन्तों अथवा अन्य व्यक्तियों का हक होता था। लेकिन 1573 ईस्वीं में उस समय के बादशाह अकबर ने अपने राज्य कोष में धन की बढ़ोतरी के लिए यह निर्णय लिया कि खालसा भूमि को बढाया जाना चाहिए। इसके बाद अकबर के पुत्र जहाँगीर ने खालसा भूमि का आकार कम कर दिया। इसके बाद जहाँगीर के पुत्र शाहजहाँ ने पुनः खालसा भूमि के आकार में वृद्धि की ताकि राज्य की आय में बढ़ावा हो। औरंगजेब के शासनकाल के आते आते खालसा भूमि को जागीरों के रूप में टुकड़ों में बाँटा जाने लगा अर्थात धीरे धीरे खालसा भूमि को समाप्त कर इसे जागीरों में बाँट दिया गया।