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क्रांतिकारी विचारों के जनक के रूप में किसे जाना जाता है Father of Revolutionary thoughts in India in hindi
Father of Revolutionary thoughts in India in hindi क्रांतिकारी विचारों के जनक के रूप में किसे जाना जाता है ?
उत्तर : विपिन चन्द्र पाल ‘फॉदर ऑफ रिवोल्यूशनरी थॉट इन इण्डिया‘ (Father of Revolutionary thoughts in India) नाम से प्रसिद्ध थे।
प्रश्न: विपिन चंद्र पाल की भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान बताइए।
उत्तर: महात्मा गांधी से पहले भारत के प्रधान नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे। उनके नाम के साथ दो नाम और जुड़े थे और यह तिकड़ी ‘लाल, बाल व पाल‘ के नाम से मशहूर थी। बाल से तात्पर्य बालगंगाधर तिलक, लाल से लाला लाजपत राय व पाल से तात्पर्य विपिन चन्द्र पाल था।
विपिन चन्द्र पाल का जन्म 1858 ई में हुआ था। उनके पिता अच्छे वकील थे। विपिनचन्द्र मेट्रिक तक सिल्हट में ही पढ़े व उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता आए। वहाँ ब्रह्म समाजी नेता श्री केशवचन्द्र सेन के व्याख्यान सुन कर वे सनातन धर्म छोड़कर ब्रह्म समाजी बन गए। वे एक प्रसिद्ध वक्ता भी थे उन्होंने इंग्लैण्ड में रह कर ‘स्वराज्य‘ नामक एक पत्रिका निकाली। जब वे भारत लौटे तो उन्होंने ‘न्यू इंडिया‘ नाम से एक अंग्रेजी साप्तहिक चलाया।
प्रतिष्ठित नेता और भारत में क्रांतिकारी विचारधारा के जनक विपिन चन्द्र पाल 1886 ई. में कांग्रेस के सदस्य बने। विपिन चन्द्र पाल ‘फॉदर ऑफ रिवोल्यूशनरी थॉट इन इण्डिया‘ (Father of Revolutionary thoughts in India) नाम से प्रसिद्ध थे। विपिनचंद पाल के प्रमुख नेता शिवनाथ शास्त्री से निकट के संबंध थे वे शिवनाथ के इन विचारों से प्रभावित थे कि राजनैतिक स्वतंत्रता सामाजिक स्वतंत्रता के बिना अंसभव है और स्वशासन प्राप्त करने के लिए सामाजिक ऊँच-नीच और धार्मिक बुराईयाँ समाप्त होनी चाहिए। वे भारत में विदेशी पूँजी के निवेश के विरूद्ध थे जिसका उपयोग चाय, कॉफी और नील की खेती तथा खनिज उद्योग में होता था। वे इसे न केवल आर्थिक अपितु राजनैतिक खतरा भी मानते थे। सक्रिय राजनीति में उनका योगदान अल्पकाल के लिए ही रहा। 10 मई, 1932 को उनका देहसान हो गया।
‘परदिर्शक‘ (साप्ताहिक) के प्रकाशक और ‘बंगाली‘ और ‘द ट्रिब्यून‘ के सहायक संपादक थे। पाल ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर भारतीय स्वराज के महान व्याख्याता थे। बंगभंग और स्वदेशी आंदोलन के जमाने में विपिनचन्द्र पाल बड़े जोरो से काम करते रहे। बंग भंग आंदोलन को एक प्रभावी आंदोलन बनाने में उनके योगदान के लिए उन्हें स्मरण किया जाता है। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी। वे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अच्छे विद्धान थे।
धातु मूर्ति शिल्प किसे कहते हैं ?
भारतीय मूर्ति शिल्प केवल पत्थर तक ही सीमित नहीं है। कांसा भी इसका एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। शक-कुषाण काल की कुछ छोटी कांस्य मूर्तियां मिली हैं। गुप्त काल में कांस्य और ताम्र मूर्तिकला का उत्कर्ष देखने को मिलता है। इस युग की सर्वाधिक प्रभावशाली मूर्ति ‘सुल्तानगंज बुद्ध’ की मूर्ति है। यह लाव.यमयी प्रतिभा पारदर्शी परिधान में सज्जित है। पाल कालीन कांस्य प्रतिमाएं बहुत बड़ी संख्या में मिलती हैं और निश्चय ही उनका निर्यात नेपाल और तिब्बत को हुआ था जहां वे स्थानीय धातु शिल्प शैलियों के लिए आदि रूप बनीं।
भारतीय कांस्य मूर्ति कला की दक्षिणा शैली दसवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच पुष्पित पल्लवित हुई। यह शैली इतनी सुरुचि सम्पन्न और मौलिक उद्भावनाओं से परिपूर्ण थी कि इसे धातु शिल्प का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप माना गया। ऐसा प्रतीत होता है कि इस कला का उद्भव पल्लव काल (7वीं-8वीं शताब्दी ईस्वी) में हुआ था लेकिन इसका चरमोत्कर्ष चोल काल में देखने में आता है। भारतीय कला की एक महान रचना नटराज शिव हैं। इसमें देवत्व के गतिशील नृत्य के माध्यम से सृष्टि के उद्भव और संहार की प्रक्रियाओं को दर्शाया गया है। इस ब्रह्माण्ड और इसके उद्गम में निहित गति और स्थिरता की महान अतोंद्रोय समस्या को नटराज शिव की नृत्यलीन प्रतिमा में बहुत ही अच्छे ढंग से प्रदर्शित किया गया है। नटराज शिव की अनेक धातु प्रतिमाएं मिली हैं लेकिन इनमें सर्वश्रेष्ठ है तिरुवेलंगुडु (चित्तूर जिला लगभग 1100 ईस्वी) से प्राप्त प्रतिमाए जो चेन्नई संग्रहालय में सुरक्षित है।
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