हिंदी माध्यम नोट्स
कांग्रेस के बंबई अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी ? मुंबई अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे नाम बताओ
जाने कांग्रेस के बंबई अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की थी ? मुंबई अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे नाम बताओ ?
प्रश्न: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर: बिहार में (जीरादेई ग्राम) जन्मे कांग्रेसी नेता राजेन्द्र प्रसाद (1884-1963 ई.) ने 1934 में कांग्रेस के बंबई अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1946 में संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष बने। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने एवं लगातार दो कार्यकाल इस पद पर रहे थे। उच्च कोटि के विद्वान भी थे, ‘इंडिया डिवाइडेड‘ इनकी प्रसिद्ध रचना है।
प्रश्न: सर्वपल्ली राधाकृष्णन
उत्तर: सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888-1967 ई.) तमिलनाडु के ब्राह्मण एवं धर्म एवं दर्शन के महान विद्वान थे। लंदन, मैनचेस्टर तथा आक्सफोर्ड समेत चार-पांच विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। ये रूस में भारत के राजदूत एवं दो बार भारत के उपराष्ट्रपति रहे। 1962-67 तक ये भारत के राष्ट्रपति रहे।
प्रश्न: डॉ. जाकिर हुसैन
उत्तर: डॉ. जाकिर हुसैन (1897-1969 ई.) ने शिक्षा की वर्धा योजना तैयार की थी। जामिया मिलिया इस्लामिया एवं अलीगढ़ विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। ये बिहार के राज्यपाल (1957-62) एवं भारत के उपराष्ट्रपति (1962-67) रहे। 1967 में ये भारत में तीसरे राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति पद पर ही इनकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न: सी.राजगोपालाचारी
उत्तर: सी.राजगोपालाचारी (1878-1972 ई.) चतुर नेता और स्पष्ट विचारक थे। वे मद्रास के मुख्यमंत्री (1937-39), 1947 के केंद्र सरकार के मंत्री तथा 1948-50 तक भारत के प्रथम भारतीय एवं अंतिम गवर्नर जनरल बने। उन्होंने दशमलव प्रणाली के सिक्कों का चलन और दक्षिण में हिन्दी लागू करने का विरोध किया। इन्होंने स्वतंत्र पार्टी के नाम से एक नयी पार्टी का गठन किया।
प्रश्न: स्वतंत्रता पूर्व काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति भारत के उद्योगपतियों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर: राष्ट्रीय आंदोलन की वाहक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रति भारत के पूंजीपतियों ने आंदोलन समर्थक की भूमिका का निर्वाह किया। उनका यह दृढ़ मत था कि भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हुए हैं। स्वतंत्रता के पहले पूंजीपतियों की यह मान्यता थी कि मौजूदा राजनीतिक हालात में सरकार (ब्रिटिश शासन) को अपने पक्ष में मोड़ना असभव है। अतः विकल्प के रूप में ऐसे लोगों के हाथ मजबूत किए जाएं, जो देश की आजादी के लिए लड़ रहे हो।
स्वतंत्रता के पूर्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अनेक पूंजीपति भी जुड़े हुए थे। इनमें से कईयों ने तो कांग्रेस के भीतर अपनी अच्छी-खासी पहचान भी बना ली थी और वे आंदोलन के साथ पूरी तरह जुड़े हुए थे। कई बार वे जेल भी गए और उन तमाम यातनाओं को सहा जो बाकी आंदोलनकारी सह रहे थे। इस संदर्भ में जमनालाल बजाज, सैमुअल ऐरों, लाला शंकर लाल इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। कुछ ऐसे भी पूंजीपति थे जो कांग्रेस में शामिल नहीं थे, पर बाहर रहकर व्यक्तिगत तौर पर कांग्रेस को वित्तीय व अन्य मदद दिया करते थे। ऐसे लोगों में घनश्याम दास बिड़ला, अंबालाल साराभाई और बालचंद हीराचंद के नाम उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा तमाम छोटे-मोटे व्यवसायी भी राष्ट्रीय आंदोलन के समय कांग्रेस को अपना समर्थन दे रहे थे, उसकी मदद कर रहे थे। दूसरी ओर ऐसे भी पूंजीपति थे जो या तो तटस्थ थे या कांग्रेस और राष्ट्रीय आंदोलन का विरोध कर रहे थे।
जहां तक साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष के लिए रास्ता अख्तियार करने का सवाल है, तो इस मुद्दे पर पूंजीपतियों का मत थोडा हट कर था। इस बारे में उनकी अपनी धारणाएं थीं। पूंजीपति वर्ग संवैधानिक संघर्ष और बातचीत के रास्ते को पूरी तरह न छोड़ने का पक्षधर था। कांग्रेस की लड़ाकू ताकत व जुझारू चरित्र से पूंजीपति वर्ग आशंकित जरूर था पर इसके चलते इस वर्ग ने कभी भी (विशेषकर 1920 के बाद) औपनिवेशिक सत्ता का समर्थन नहीं किया, न इसने कभी खुले रूप से कांग्रेस की आलोचना की और न ही कांग्रेस से रिश्ता तोड़ा।
प्रश्नः राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान भारतीय पूंजीपति वर्ग
उत्तर: 1. पूंजीपति वर्ग का राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति दृष्टिकोण।
2. राष्ट्रीय आन्दोलन में पूंजीपति वर्ग का सहयोग व प्रभाव।
दृष्टिकोण
1. भारतीय पूंजीपति वर्ग का उद्भव उपनिवेशवाद के विरोध में हुआ।
2. भारतीय पूंजीपति वर्ग ने औपनिवेशिक शासन व्यवस्था के अन्तर्गत स्वयं के एक विशिष्ट स्थान का निर्माण किया।
3. भारतीय पूंजीपति वर्ग का उद्भव ब्रिटिश साम्राज्यवादी व औपनिवेशिक शासन के अधीनस्थ स्थिति का द्योतक नहीं था।
4. भारतीय पूंजी का विकास एक स्वतंत्र पूंजी के रूप में हुआ।
5. इसकी स्थिति विदेशी पूंजी के अधीनस्थ स्थिति नहीं थी।
1920 के दशक व उसके पश्चात् भूमिका
1. 1914 के वर्ष व उसके पश्चात् भारतीय पूंजीपति वर्ग व भारतीय पूंजी की एक स्पष्ट स्थिति दृष्टिगोचर होती है।
2. 1920 के दशक व उसके पश्चात् इनकी स्थिति और भी अधिक सशक्त दृष्टिगोचर हुई।
3. 1920 के दशक व उसके पश्चात् भारतीय पूंजीपति वर्ग का प्रवेश उन क्षेत्रों में भी दृष्टिगोचर होता है, जो ब्रिटिश एकाधिकार वाले क्षेत्र थे।
4. संगठित बैंकिंग व्यवस्था के कुल जमाओं में एक बड़ा भाग भारतीय पूंजी का था।
राष्ट्रीय आंदोलन एवं वर्गीय हितों के प्रति दृष्टिकोण
1. भारतीय पूंजीपति वर्ग के उद्भव का स्वरूप राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।
2. उपरोक्त सन्दर्भ में सामान्यतया राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक था।
भाग:- 2
ऽ 1920 के दशक व उसके पश्चात् भारतीय पूंजीपति वर्ग में वर्गीय चेतना दृष्टिगोचर होती है।
ऽ इसके अन्तर्गत वे अपने वर्गीय हितों के प्रति सजग व जागरूक हो गये।
ऽ इसके अन्तर्गत वे अपने वर्गीय हितों को सुरक्षित रखने के दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित करते हैं।
ऽ उपरोक्त सन्दर्भ में राष्ट्रीय संघर्ष के प्रति उनके दृष्टिकोण में भिन्नताएं व परिवर्तन के तत्व भी दृष्टिगोचर होते हैं।
साम्राज्यवाद विरोधी दृष्टिकोण
ऽ सामान्यतया पूंजीपति वर्ग ने ब्रिटिश साम्राज्यवादी विरोधी दृष्टिकोण को दर्शाया।
ऽ उपरोक्त सन्दर्भ में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति उनका विरोधी दृष्टिकोण स्पष्ट था।
ऽ समस्या मुख्यतः इस मुद्दे से जुड़ी रही कि साम्राज्यवाद के विरोध में किस मार्ग को स्वीकार किया जाये।
भाग:- 4
1. पूंजीपति कांग्रेस की दक्षिणपंथी धारा में विश्वास करते थे।
2. भारतीय पूंजीपति वर्ग राष्ट्रीय संघर्ष के मार्ग के चयन में सतर्क था क्योंकि इसके अन्तर्गत वर्गीय हितों को सुरक्षित रखा जाना था।
3. राष्ट्रीय संघर्ष में यह भी सुनिश्चित किया जाना था कि यह संघर्ष उनके अस्तित्व व हितों के विरुद्ध चुनौतियों को जन्म न दे।
प्रकृति
1. भारतीय पूंजीपति वर्ग ने संवैधानिक प्रकार के राजनीकि संघर्ष में रूचि दिखलायी।
2. राजनीतिक संघर्ष में उदारवादिता के तत्वों की सराहना की।
3. राजनीतिक संघर्ष के अन्तर्गत दक्षिणपंथी विचारधारा व साधनों में आस्था दिखलायी।
भाग:- 6
1. बृहद स्तर पर राष्ट्रीय जनांदोलन जिसकी अभिव्यक्ति असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में हुई के प्रति उन्होंने उदासीनता की दृष्टि को भी प्रस्तुत किया।
2. बृहद स्तर पर जनान्दोलन की निरन्तरता से सामाजिक क्रान्ति के उभरने की सम्भावनाएं निहित थी।
3. सामाजिक क्रांति का उदय एवं विकास उनके व्यावसायिक हितों के लिए प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला हो सकता था।
भाग:-7
1. यद्यपि उन्होंने संवैधानिक प्रकार की राजनीति की सराहना की लेकिन संघर्ष के अन्य प्रकारों को भी पूर्णरूपेण नहीं नकारा।
2. इस सन्दर्भ में सकारात्मक दृष्टिकोण दर्शाया कि ब्रिटिश सरकार पर राष्ट्रीय दबाव को सशक्त बनाने में व राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने मे सविनय अवज्ञा जैसे राजनीतिक हथियारों का प्रयोग भी अनिवार्य हो सकता है।
वामपंथियों के प्रति दृष्टिकोण
1. वामपन्थियों की पूंजीवाद विरोधी विचारधारा में खतरा महसूस करते थे
2. वामपन्थी प्रकार के संघर्ष के प्रति उनका दृष्टिकोण सराहनीय नहीं था।
3. वामपन्थी धाराओं के विकास से राष्ट्रीय आन्दोलन के उग्रवादी स्वरूप के विकास के प्रति वे चिन्तित भी थे।
4. विभिन्न स्तर पर उन्होंने वामपन्थी प्रकार के संघर्ष को रोकने के प्रयास भी किये।
कांग्रेस के प्रति दृष्टिकोण
1. इण्डियन नेशनल कांग्रेस के प्रति सामान्यतया उनका दृष्टिकोण सकारात्मक व सहयोग का रहा।
2. इण्डियन नेशनल कांग्रेस को उन्होंने प्रतिनिधि राष्ट्रीय मंच के रूप में स्वीकार किया व सामान्यतया उसकी नीतियों व कार्यक्रमों में आस्था दिखलायी।
3. सामान्यतया महत्वपूर्ण पूंजीपतियों का यह मानना था कि कांग्रेस भारतीय समाज के सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व कर रही है। इस सन्दर्भ में पूंजीपति वर्ग के विशिष्ट हितों का प्रतिनिधित्व भी कांग्रेस की कर रही है (ऐसा मानना था)
4. उनका ऐसा भी मानना था कि पूंजीपतियों के विशिष्ट हितों के लिए पूंजीपतियों के किसी स्वतंत्र मंच की स्थापना की आवश्यकता नहीं। जब ऐसे विचार उभरे तो महत्वपूर्ण पूंजीपतियों ने इसका विरोध भी किया।
5. उनका मानना था कि कांग्रेस संस्था व इसके कार्य (पूंजीपतियों के) उनके हितों को बल प्रदान करने के अन्तर्गत पर्याप्त व प्रभावी थे।
उनका मानना था कि राष्ट्रीय आन्दोलन विभिन्न राष्ट्रीय उद्देश्यों की प्राप्ति का माध्यम है और यह विभिन्न राष्ट्रीय हितों को बल प्रदान कर रहा है व पूंजीपतियों का हित इन हितों से पृथक नहीं है। पूंजीपतियों का हित भी इन्हीं उद्देश्यों में निहित है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…