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कहां पर मानव गड्ढे खोदकर निवास करता था , where humans used to live by digging pits in india in hindi
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बुर्जहोम (34°10‘ उत्तर, 73°54‘ पूर्व)
बुर्जहोम, श्रीनगर से 20 किमी. दूर उत्तर-पश्चिम की ओर कश्मीर घाटी में स्थित है। यह स्थल कश्मीर का इतिहास 2000 ईसा पूर्व तक पीछे ले जाता है। इस स्थल की प्राप्ति से, कुछ पश्चिमी इतिहासकारों का यह मत गलत सिद्ध हो जाता है कि आर्य, कश्मीर घाटी से आए थे तथा भारत में आर्यों के आगमन से पूर्व कश्मीर की कोई सांस्कृतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।
पुरातात्विक उत्खननों से यह स्पष्ट होता है कि यहां नवपाषाणकालीन बस्ती थी तथा इसकी कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं थीं, जो इसे भारत की तत्कालीन अन्य सभ्यताओं से एक अलग पहचान प्रदान करती है। यहां लोग गर्त या गड्ढों में निवास करते थे जो गोलाकार या अंडाकार होते थे। इनका गर्त निवास संभवतः ठंड से बचाव के लिए होता था। गुफ्फरकल के समान ही बुर्जहोम, कश्मीर घाटी में गर्त निवास का एक अच्छा उदाहरण है। बुर्जहोम के निवासी संभवतः कृषि कार्य से परिचित नहीं थे तथा उनके जीवनयापन का मुख्य आधार मत्स्यन एवं आखेट था। मछली पकड़ने के कांटों एवं पाषाण हथियारों की प्राप्ति से इस धारणा की पुष्टि होती है। इन लोगों की एक अन्य प्रमुख विशेषता पाषाण हथियारों के साथ ही बड़ी मात्रा में हड्डियों से बने हथियारों का उपयोग किया जाना भी है। यहां से तीर, सुइयां, दरातियां इत्यादि प्राप्त हुए हैं, जो हड्डियों के बने हुए हैं। यहां से मानव के साथ पालतू पशुओं के शवाधान का साक्ष्य मिलना भी एक उल्लेखनीय विशेषता है। एक स्थान पर मानव के साथ कुत्ते को दफनाने के प्रमाण मिले हैं। यह विशेषता मध्य एशियाई नवपाषाण संस्कृति से साम्यता रखती है। यद्यपि, इस बात से इस तरह का कोई निष्कर्ष निकालना तर्कसंगत नहीं होगा की ये लोग मध्य एशिया से यहां आए थे।
कालीकट (11.25° उत्तर, 75.77° पूर्व)
कालीकट केरल के मालाबार तट पर स्थित है। प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में यह एक प्रमुख बंदरगाह नगर था। कालीकट फारस की खाड़ी में पेगू एवं मलक्का तथा पश्चिम में लालसागर के बीच सामुद्रिक व्यापारिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
प्रसिद्ध पुर्तगाली व्यापारी वास्को-डि-गामा 27 मई 1498 को कालीकट के तट पर पहुंचा। भारत तथा यूरोप के मध्य व्यापारिक मार्ग खोलने के लिए उसने एक बार पुनः वर्ष 1502 में भारत की यात्रा की। वास्को-डि-गामा ने अपनी प्रथम यात्रा में व्यापार के निमित्त जितना धन निवेश किया था, उसे उससे 52 गुने से भी अधिक लाभ प्राप्त हुआ। जब पुर्तगाली नाविक कालीकट आए, उस समय कालीकट हिन्दू शासक जमोरिन के अधीन था। 1502 में पुर्तगालियों ने अपनी प्रथम व्यापारिक फैक्ट्री कालीकट में ही स्थापित की। कोचीन तथा अंततः गोवा में अपना मुख्यालय स्थानांतरित करने से पूर्व तक कालीकट ही पुर्तगालियों की व्यापारिक गतिविधियों का मुख्यालय रहा। काली मिर्च कालीकट से निर्यात की सबसे प्रमुख वस्तु थी। कालीकट सूती वस्त्र उत्पादन का भी महत्वपूर्ण केंद्र था।
17वीं एवं 18वीं शताब्दी के दौरान कालीकट पर नियंत्रण को लेकर अंग्रेज एवं पुर्तगालियों के मध्य कई बार संघर्ष हुआ। 1790 में अंग्रेजों ने कालीकट पर अधिकार कर लिया तथा उसके पश्चात यह 1947 तक अंग्रेजों के अधीन ही बना रहा। वर्तमान समय में कालीकट केरल का एक छोटा बंदरगाह एवं प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र
खंभात (22.3° उत्तर, 72.62° पूर्व)
खंभात, खंभात की खाड़ी में सौराष्ट्र तट पर स्थित है। प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में पश्चिमी क्षेत्र का यह महत्वपूर्ण बंदरगाह था। विभिन्न समयों में यह भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता रहा। जैन साहित्यिक कृतियों में इसे ‘स्तंभतीर्थ‘ कहा गया है, जबकि अरबी भूगोलवेत्ता इसे ‘खंभात‘ या ‘खंबायत‘ या ‘कन्बाया‘ नाम से पुकारते थे।
अरबी भूगोलवेत्ता सुलेमान (851 ई.) अपने विवरणों में खंभात का उल्लेख करता है। इसी प्रकार भारत यात्रा पर आने वाला एक अन्य अरबी भूगोलवेत्ता अल-मसूदी इसे चमड़ा उद्योग का एक प्रमुख केंद्र तथा प्रमुख बंदरगाह नगर बताता है। अल-मसूदी के अनुसार, खंभात में निर्मित चमड़े के जूते एवं अन्य उत्पाद अरबी देशों में अत्यधिक लोकप्रिय थे। खंभात में कई मुस्लिम व्यापारी भी रहते थे। इन्हें यहां पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा ये निर्बाध ढंग से अपनी व्यापारिक गतिविधियां संचालित करते थे।
वेनिस का यात्री मार्काेपोलो हमें यह सूचना देता है कि 13वीं शताब्दी में जो जहाज खंभात आते थे, उनमें बड़ी मात्रा में सोना, चांदी एवं घोड़े लाए जाते थे।
अलाउद्दीन खिलजी का प्रसिद्ध सेनापति मलिक काफूर, जिसने अलाउद्दीन के दक्षिण भारतीय अभियानों का नेतृत्व किया था, खंभात का ही था तथा उसे यहां नुसरत शाह ने 1 हजार दीनार में खरीदा था।
पहले मुगल फिर बाद में मराठों ने खंभात पर शासन किया। 1802 में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बसीन की संधि में खंभात अंग्रेजों को सौंप दिया।
कन्नूर/कन्नौर (11.86° उत्तर, 75.35° पूर्व)
कन्नौर, जिसे वर्तमान में कन्नूर कहा जाता है, केरल में स्थित है। भारतीय इतिहास के मध्यकाल में यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र रहा था। जमोरिन शासकों, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में मालाबार पर शासन किया था, के अधीन यह स्थल एक महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गया था। इस बंदरगाह का अन्य बन्दरगाहों जैसे मद्रास, कोलम्बो, तुतीकोरिन, ऐलेप्पी, मंगलौर, मुम्बई तथा कराची से सक्रिय व्यापारिक संबंध थे। 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में, पुर्तगालियों ने कन्नूर में सेंट ऐंजेलो दुर्ग की स्थापना की। इसके लगभग दो शताब्दियों के पश्चात्, 1790 में, यह प्रदेश ब्रिटिश उपनिवेशकों के अधीन आ गया जिन्होंने 19वीं शताब्दी में यहां एक छावनी बनाई।
बुरहानपुर (21.3° उत्तर, 76.23° पूर्व)
मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में ताती नदी के उत्तरी तट पर स्थित बुरहानपुर का नाम शेख बुरहानुद्दीन के नाम पर पड़ा। नासिर खान फारुकी, जो कि खानदेश के फारुकी वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था, ने 1399 में बुरहानपुर की स्थापना की। यहां पहले बसाना खेड़ा अथवा वसाना नाम का पुराना शहर था। 1601 में मुगल सम्राट ने इसे जीता और इससे पहले अहमदनगर, मालवा तथा गुजरात के शासकों ने इसे कई बार रौंदा।
विशाल द्वारों वाले बुरहानपुर ने मुगलकाल में दक्कन मुख्यालय का काम किया जब तक कि 1636 में औरंगजेब ने राजधानी को औरंगाबाद स्थानांतरित न कर लिया। मेजर जनरल आर्थर वेलेस्ले, जो कि बाद में वेलिंगटन का प्रथम ड्यूक भी बना था, ने 1803 में बुरहानपुर पर कब्जा कर यहां मराठा-मुगल संघर्ष को समाप्त किया। 1805 में पुनः इसे सिंधियाओं ने हथिया लिया एवं 1861 में ब्रिटिश साम्राज्य को सौंप दिया गया। 1600 के बाद बुरहानपुर मुगल साम्राज्य का दूसरा प्रमुख शहर बन गया।
बुरहानपुर में ऐतिहासिक महत्व के स्थलों में एक तहस-नहस हो चुका गढ़ तथा बादशाही किला (1400 ई.), बीबी मस्जिद जिसका निर्माण 1585 में हुआ, तथा जामा मस्जिद जिसका निर्माण 1588 ई. में हुआ, शामिल हैं। आइने अकबरी में भी बुरहानपुर का उल्लेख हुआ है। इस शहर की यात्रा सर थामस रो (1614), विलियम फिंच (1608-11) तथा फ्रांसीसी यात्री, टेवेरनियर (1641) ने की। यहां बैरम खान के पोते शाह नवाज खान का मकबरा आदि जैसे प्रमुख मुगल स्मारक हैं।
बुरहानपुर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने उत्कृष्ट वस्त्र, स्वर्ण के तार की चित्रकारी, अन्य संबंधित कला व उद्योगों, अपनी बैंकिंग व व्यापार संबंधित गतिविधियों के कारण प्रसिद्ध है। यहां मलमल, स्वर्ण तथा चांदी, जरी वस्त्र तथा लाख का विस्तृत व्यापार विकसित हुआ। हालांकि 18वीं शताब्दी के दौरान व्यापार में कमी आई। वर्तमान में यह कपास उत्पादकों के लिए एक बाजार के रूप में विकसित हो गया है तथा यहां काफी कपड़ा मिल, पावरलूम, हथकरघा से संबंधित उद्योग हैं।
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