हिंदी माध्यम नोट्स
उन्मुक्त द्वार की नीति का वर्णन करें , खुले द्वार की नीति किसके द्वारा बनाई गई , चीन के द्वारा कब स्वीकार की गई
जानिये उन्मुक्त द्वार की नीति का वर्णन करें , खुले द्वार की नीति किसके द्वारा बनाई गई , चीन के द्वारा कब स्वीकार की गई ?
प्रश्न: उन्मुक्त द्वार की नीति
उत्तर: अमेरिका ने ही जापान के द्वार पश्चिम के लिए खोले थे और उसी ने चीन के द्वार पश्चिम के लिए खोले। 1898 ई. के बाद अमेरिका ने चीन में श्उन्मुक्त द्वार नीतिश् का अवलम्बन किया। जॉन हे संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेशी सचिव ने अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए एक नवीन नीति का प्रतिपादन किया जो श्उन्मुक्त द्वार नीतिश् के नाम से जानी जाती है। सभी देशों को चीन से व्यापार करने की सुविधाएं दी जाएं, किसी भी देश को दूसरे देश की तलना में विशेषाधिकार पटान न किए जाये। चंगी-कर की दरें सब देशों के लिए समान हों और उनकी वसूली का अधिकार केवल चीन को दिया जाये। वस्ततः अमेरिका की चीन में श्उन्मुक्त द्वार नीतिश् व्यावसायिक स्वार्थ की भावना पर आधारित थी। वह चीन का क्षेत्रीय अखण्डता तथा सार्वभौमिकता में रुचि न रख कर केवल सुविधाओं और विशेषाधिकारों को कायम रखना चाहता था। रूस के अतिरिक्त अन्य सब पश्चिमी देशों ने अमेरिका की नीति का अनुमोदन किया।
प्रश्न: जर्मनी का अफ्रीका में साम्राज्यवाद अन्य देशों से भिन्न कैसे था ?
उत्तर: जर्मनी साम्राज्यवाद की दौड़ में देर से सम्मिलित हुआ। क्योंकि ये बाद में बना, दूसरे बिस्मार्क ने प्रारम्भ में साम्राज्यवाद की नीति का विरोध किया तथा उसके पास मजबूत नौसेना भी नहीं थी। आर्थिक आवश्यकताओं के कारण एक जर्मन खोजकर्ता वॉन डेर डेकन (Von Der Deckon) ने पूर्वी अफ्रीका के तटों की खोज की। 1882 में जर्मन कोलोनियल यूनियन (German Colonial Union) नामक कंपनी का गठन किया। अगले दो वर्षों में (1883-84) जर्मनी ने टोगोलैंड, कैमरून व टंगानिका वर्तमान तंजानिया तथा पं. जर्मन अफ्रीका पर अधिकार कर लिया। इसे शांतिपूर्व अधिकार (Peaceful Partration) कहा गया क्योंकि इसे किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा।
प्रश्न: बेल्जियम का कांगो पर आधिपत्य कैसे हुआ।
उत्तर: बेल्जियम के शासक लियोपोल्ड (स्मंचवसक) ने 1876 में अफ्रीका के मध्य भाग की खोज करने के लिए खोजवेत्ताओं का एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग गठित किया। इसमें फ्रांस, बेल्जियन, इंग्लैण्ड, जर्मनी, अमेरिका आदि सम्मिलित थे। परंतु प्रारम्भ से ही बेल्जियम मध्य अफ्रीका के कांगों क्षेत्र में सक्रिय रहा। 1884 में बेल्जियम के कांगों पर अधिकार आधिपत्य को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दे दी गई। इस प्रकार बेल्जियम का कांगो पर अधिकार हो गया।
प्रश्न: मोरेक्को संकट क्या था और इसे कैसे सुलझाया गया ?
उत्तर: 1880 के मेड्रिड सम्मेलन (यूरोपीय देशों) में निर्णय लिया गया कि मोरक्को में सभी देशों को व्यापार करने की स्वतंत्रता है। मोरक्को के शासक अब्दुल अजीज की फिजुलखर्ची से आर्थिक व्यवस्था बिगड़ने लगी जिससे जन असन्तोष उन खदा हुआ। फ्रांस का मोरक्कों के पूर्व में स्थित ट्यूनिस पर और दक्षिण में गेम्बिया पर अधिकार था। प्रारंभ में सभी यूरोपीय गों ने इस अधिकार पर सहमति दे दी। 1904 में फ्रांस ने अपना एक दल सुधार प्रस्ताव के साथ मोरक्कों भेजा जिसका जर्मनी ने कडा विरोध किया। 1905 में जर्मन् सम्राट ने टेंजियर की यात्रा की और कहा कि मोरक्को में जर्मनी व जापान के हित हैं। इसलिए जर्मनी ने 1906 में एज्लेसिरास में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया जिसमें 12 देशों ने भाग लिया। इसमें मोरक्को की स्वतंत्रता की पुष्टि की।
प्रश्न: अरब राष्ट्रवाद उदय के कारणों को संक्षिप्त में बताते हुए अरब राष्ट्रवाद का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर: अरब राष्ट्रवाद का उदय 19वीं-20वीं शताब्दी में हुआ। इसके उदय के प्रमुख कारणों में – यंग टर्क एवं पैन-इस्लाम आंदोलन, अरबों की उपेक्षा, अरबों का अपने क्षेत्र को इस्लाम का मुख्य क्षेत्र मानना, ब्रिटेन व फ्रांस द्वारा अरब राष्टवाद को प्रोत्साहन, अरब में दार्शनिक एवं वैचारिक आधार पर बौद्धिक वर्ग का उदय आदि अनेक कारणों से सकल अरब राष्ट्रवाद का उदय हुआ। संयुक्त अरब के स्थान पर विविध नए स्वतंत्र राज्य जैसे मिस्र, सीरिया, लेबनान आदि राज्यों का उदय हुआ। द्वितीय महायुद्ध के अंतिम चरण में मार्च, 1945 में अरबों में एकता बनाए रखने के लिए मिस्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, साऊदी अरब, यमन, लेबनान आदि राज्यों को मिलाकर अरब लीग स्थापित की। लीग का उद्देश्य सभी सदस्यों में एकता स्थापित करना एवं विवादों का शांतिपूर्ण हल निकालना रहा। लेकिन अभी तक सफल नहीं रही।
प्रश्न: साम्राज्यवाद प्रसार के परिणाम क्या निकले?
उत्तर:
1. उपनिवेशों में निरकुंश शासन की स्थापना।
2. उपनिवेशों के आर्थिक शोषण से उनका जीवन अत्यन्त दुभर हो गया।
3. साम्राज्यवादी देशों में मनमुटाव एवं द्वैष भावना का विकास जिससे अन्तर्राष्टीय संघर्ष की स्थिति बनी।
4. उपनिवेशों में औद्योगिक विकास के प्रयास लेकिन पूरा जोर कच्चे माल के उत्पादन पर रहा। जिससे संसाधनों का अतिशय दोहन हुआ।
5. अविकसित देशों का साम्राज्यवादियों का शिकार होना, जिससे यूरोपीय संस्कृति का प्रसार हुआ।
प्रश्न: साम्राज्यवाद का अफ्रीका पर प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1. यूरोपीय प्रभाव से सामाजिक विखण्डन शुरू हुआ।
2. मजदूरी प्रथा की शुरूआत (मुद्रा का प्रचलन) जिससे नकद अर्थव्यवस्था का प्रचलन बढ़ा।
3. अफ्रीका में औद्योगिक विकास की शुरुआत हुई।
4. अफ्रीका में सांस्कृतिक विकास शुरू।
5. अफ्रीका का आर्थिक शोषण।
6. अफ्रीका में जनसंख्या वृद्धि।
7. धर्म प्रचारकों का कठोर व्यवहार एवं धर्मप्रचार से ईसाईकरण को बल मिला।
8. शिक्षित लोगों का पश्चिमी लोकतंत्र से प्रभावित होना एवं स्वतंत्रता के लिए आंदोलन करना।
9. असमानता का व्यवहार जिससे रंगभेद की नीति को प्रोत्साहन मिला।
10. उग्र राष्ट्रवाद का प्रभाव।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अरब संघ पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर: मिस्र के राष्ट्रपति नासिर उत्तरी अफ्रीका एवं पश्चिमी एशिया के सभी अरबी भाषा-भाषी राज्यों को मिलाकर एक ष्अरब संघश् का निर्माण करना चाहता था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए नासिर ने फरवरी, 1958 में सीरिया व मिन को मिलाकर ष्संयुक्त अरब गणराज्यष् की स्थापना की। शीघ्र ही जॉर्डन व ईराक ने मिलकर श्अरब संघश् बनाया। जुलाई, . 1958 में ईराकी क्रांति के फलस्वरूप अरब संघ टूट गया तथा 1961 में सीरिया श्संयुक्त अरब गणराज्यश् से हट गया।
श्अरब साझा बाजारश् -1964 में मिस्र ने सदस्य राज्यों के मध्य उत्पादित वस्तुओं व मुद्रा के स्वतंत्र आवागमन की व्यवस्था के उद्देश्य से इराक, कुवैत, जोर्डन और सीरिया के साथ मिलकर श्अरब साझा बाजारश् का निर्माण का विचार प्रस्तुत किया, लेकिन अस्तित्व में अब तक नहीं आया।
वर्तमान स्थिति अरब लीग रू अरब एकता को बनाए रखने एवं विवादों का शांतिपूर्ण हल निकालकर आपसी सहयोग बनाये रखने के लिए 7 अरब राज्यों मिस्र, ईरान, जॉर्डन, लेबनान, साऊदी अरब, सीरिया व यमन ने 22 मार्च, 1945 में काहिरा में अरब लीग की स्थापना की। जिसकी कालान्तर में 1962 तक सदस्य संख्या 15 हो गई। वर्तमान में इसके 22 सदस्य हैं। सीरिया को नवम्बर, 2011 में निलंबन कर दिया है। सदस्य राज्यों के बीच संबंधों को, उनके बीच सहयोग, आपसी समन्वय, अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा करना तथा आपसी मामलों एवं हितों की रक्षा करना। इसका मुख्य उद्देश्य निश्चित किया गया।
असफलता
1. अरब चरित्र का व्यक्तिवाद होना।
2. अरब राज्याध्यक्षों में परम्परागत शत्रुता
3. लीग के नेतृत्व पर एकमत न होना
4. आपसी फूट, कलह एवं गुटबंदी तथा
5. पाश्चात्य शक्तियों के हितों ने इसे असफल बना दिया।
चीन में साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…