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उत्कृष्ट गैसें किसे कहते हैं ? उत्कृष्ट गैस निष्क्रिय होती है क्यों उत्कृष्ट गैसों को किस समूह में रखा गया है
उत्कृष्ट गैस निष्क्रिय होती है क्यों उत्कृष्ट गैसों को किस समूह में रखा गया है उत्कृष्ट गैसें किसे कहते हैं ?
उत्कृष्ट गैसें -आवर्त सारणी के शून्य वर्ग में 6 तत्व हैं हीलियम, निऑन, आर्गन, क्रिप्टॉन, जीनॉन तथा रेडॉन । ये सभी गैसीय हैं और बहुत अक्रिय हैं, अतः इन्हें ही अक्रिय या निष्क्रिय या उत्कृष्ट गैसें कहते हैं। इन गैसों की प्राप्ति दुर्लभ (वायु में 1% से भी कम) होने के कारण इन्हें दुर्लभ गैसें भी कहते हैं। उत्कृष्ट गैसों के निष्क्रिय होने का कारण यह है कि हीलियम को छोड़कर शेष सभी गैसों की बाह्यतम कक्ष में 8 इलेक्ट्रॉन पाए जाते है जिसके कारण इनका स्थायित्व अत्यधिक होता है और ये अन्य तत्वों के साथ क्रिया नहीं करते है |
नैफ्था- पेट्रोलियम, शेल ऑयल या कोलतार से प्राप्त कम अणु भार वाले हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण।
नैफ्थेलीन-पॉलीन्यूक्लियर हाइड्रोकार्बन, जिसकी गोलियाँ कीटों को दूर करने में उपयोगी हैं।
प्राकृतिक गैस-पेट्रोलियम के साथ प्राकृतिक गैस भी उपस्थित होती है, जो पेट्रोलियम के पृष्ठ पर दाब डालती है। इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
अलौह धातुएँ- आयरन तथा स्टील के अतिरिक्त अन्य सभी धातुएँ।
नाभिकीय विखण्डन-परमाणु नाभिक का अत्यधिक ऊर्जा उत्सर्जन के साथ दो या दो अधिक खण्डों में विखण्डन।
न्यूक्लियर पॉवर-नाभिकीय रिएक्टरों की सहायता से उत्पादित विद्युत् को न्यूक्लियर पॉवर कहते हैं।
नाभिकीय रिएक्टर-यह एक भट्टी है, जिसमें विखण्डनीय पदार्थ का नियन्त्रित नाभिकीय विखण्डन कराया जाता है।
न्यूक्लिक अम्ल- DNA तथा RNA जो न्यूक्लियोटाइड तथा न्यूक्लियोसाइड से मिलकर बने होते हैं।
अधिधारण-किसी धातु द्वारा गैस या ठोसों की धारण क्षमता को व्यक्त करने अथवा किसी अवक्षेप द्वारा विद्युत्-अपघट्य के अवशोषण को व्यक्त करने की विधि।
ऑक्टेन संख्या- परीक्षण की मानक परिस्थितियों में किसी ईंधन के मिश्रण की अपस्फोटन मात्रा को व्यक्त करने वाली संख्या।
अयस्क-उन खनिजों को, जिनसे धातु निष्कर्षित करना आर्थिक रूप से लाभदायक होता है, अयस्क कहलाते हैं।
कार्बनिक रसायन-रसायन की उपशाखा, जिसके अन्तर्गत कार्बन के यौगिकों का अध्ययन किया जाता है।
ऑर्थोहाइड्रोजन- हाइड्रोजन अणु दो रूपों में पाया जाता है, जिसका कारण उसके दोनों परमाणुओं के नाभिकों के प्रचक्रण की दिशा में अन्तर है। यदि नाभिकों का चक्रण एक दिशा में हो तो उसे ऑर्थोहाइड्रोजन कहते हैं।
परासरण- विलायक के अणुओं का अर्धपारगम्य झिल्ली में होकर शुद्ध विलायक से विलयन की ओर या तनु विलयन से सान्द्र विलयन की ओर स्वतः प्रवाह, परासरण कहलाता है।
ऑक्सैलिक अम्ल-अत्यधिक विषैला अम्ल, जो ऑक्सैलिक समूह की वनस्पतियों जैसेकृरूबाई, सोरल, आदि में पाया जाता है। इसका उपयोग छपाई, रंगाई एवं स्याही के निर्माण में होता है।
ऑक्सीकरण-परमाणुओं, आयनों या अणुओं द्वारा एक या अधिक इलेक्ट्रॉन त्याग करने की प्रक्रिया ऑक्सीकरण कहलाती है।
ओजोन- ऑक्सीजन का अपररूप, जो ऑक्सीजन पर सूर्य की अल्ट्रावायलेट विकिरणों के प्रभाव से बनता है। अल्ट्रावालयेट प्रकाश की विकिरणों के प्रभाव से भू-पृष्ठ पर जीवों की रक्षा करने में ओजोन स्तर का विशेष महत्व है। क्लोरोफ्लुओरो कार्बन ओजोन स्तर का क्षय कर देते हैं।
फीनॉल-ऐरोमैटिक यौगिक, ब्6भ्5व्भ् जिसका उपयोग कीटाणुनाशक एवं पूतिरोधी के रूप में होता है।
प्रकाश-रासायनिक धूम्र/कुहरा-यह वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों तथा हाइड्रोकार्बनों पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। यह सामान्यतः घनी आबादी वाले उन शहरों में होता है, जहाँ पेट्रोल व डीजल वाले वाहन बहुत अधिक मात्रा में चलते हैं और नाइट्रिक ऑक्साइड निकालते हैं। इससे आँखों में जलन होती है और आँसू आ जाते हैं। यह कुहरा श्वसन तन्त्र को भी हानि पहुंचाता है। इस कुहरे की भूरी धुंध NO2के भूरे रंग के कारण होती है। NO से रासायनिक अभिक्रिया द्वारा छव्2 बन जाती है।
दाब रसायन-रसायन की वह शाखा जिसके अन्तर्गत रासायनिक अभिक्रियाओं तथा प्रक्रम पर उच्च दाब के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
कच्चा लोहा-वात्या भट्टी से प्राप्त अशुद्ध आयरन को कच्चा लोहा कहते हैं। इसमें 2-4.5% तक कार्बन होता है।
बहुलकीकरण-वह प्रक्रम, जिसमें बड़ी संख्या में सरल अणु एक दसरे से संयोग करके उच्च भार का वृहत् अणु बनाते हैं, बहुलकीकरण कहलाता है।
बहुलक-बहुलकीकरण के फलस्वरूप बने उच्च अणु भार के यौगिक बहुलक कहलाते हैं।
पोटैशियम परमैंगनेट-बैंगनी क्रिस्टलीय ठोस ज्ञडदव् जिसका उपयोग जल के शोधन एवं पूतिरोधी के रूप में होता है।
चूर्ण धातुकी-धातुकर्म की एक विधि, जिसमें धातुओं का चूर्ण बनाकर सम्पीडन द्वारा उससे उचित आकार की वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
प्रूफ स्पिरिट-एथिल ऐल्कोहॉल का जलीय विलयन, जिसमें भार के अनुसार 49-28% एथिल ऐल्कोहॉल होता है।
प्रोटीन-उच्च अणु भार के नाइट्रोजन युक्त जटिल कार्बनिक यौगिक, जो सभी जीवित कोशिकाओं में पाये जाते हैं। एन्जाइम तथा हॉर्मोन भी प्रोटीन से बने होते हैं।
ताप-अपघटन- वायु की अनुपस्थिति में उच्च ताप पर गरम करने से । कार्बनिक यौगिकों का तापीय अपघटन उनका ताप-अपघटन कहलाता है।
क्विक सिल्वर-पारे का दूसरा नाम।
जंग लगना-आयरन को नम वायु में रखने पर उसके पृष्ठ पर धीरे-धीरे भूरे रंग की हाइड्रेटेड फेरिक ऑक्साइड, थ्म2व्3३गभ्2व् की परत का जमना जंग लगना कहलाता है।
समुद्र जल-लवणीय स्वाद क द्रव जिसमें 96.4% जल, 2.8% नमक, 0.4% मैग्नीशियम आयोडाइड तथा 0.2% मैग्नीशियम होता है।
सिलिका-कठोर अविलेय श्वेत उच्च गलनांक का ठोस, जो मुख्यतः SiO2 से बना होता है।
सिलिकन-अधातु, जिसका उपयोग कम्प्यूटर की इलेक्ट्रॉनिक चिप्स बनाने में होता है।
सोडियम वाष्प लैम्प-एक गैस विसर्जन, लैम्प, जिसमे सोडियम वाष्प् का प्रयोग किया जाता है।
मृदु जल-जल, जो साबुन के साथ अधिक मात्रा में झाग उत्पन्न करे।
विलेयता-किसी पदार्थ की वह मात्रा, जो निश्चित ताप पर, 100 ग्राम विलायक को संतृप्त करने के लिए आवश्यक होती है, पदार्थ की विलेयता कहलाती है।
साबुनीकरण- वसा को सोडियम हाइड्रॉक्साइड की उपस्थिति में गर्म कर विघटित करने की क्रिया। साबुन में नमक मिलाने से उसकी घुलनशीलता कम हो जाती है।
अगलनीय-पदार्थ जो कठिनाई से द्रवित हों।
अकार्बनिक रसायन-इसके अन्तर्गत सभी तत्वों और उनके यौगिकों का अध्ययन किया जाता है (कार्बनिक यौगिकों को छोड़कर)।
कीटनाशी-यौगिक जो कीटों को नष्ट करें, जैसे-क्क्ज्, ठभ्ब् आदि।
आयोडीन-ठोस हैलोजेन, जो रखने पर ऊर्ध्वपातित हो जाती है तथा जिसका उपयोग पूतिरोधी के रूप में होता है।
समावयव-जिन यौगिकों के अणुसूत्र समान होते हैं किन्तु गुण एव संरचना भिन्न-भिन्न होती है।
समन्यूट्रॉनिक-वे परमाण्विक नाभिक, जिनमें न्यूट्रॉनों की संख्या बराबर होती है किन्तु उनकी द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है।
केरोसीन आयल-कोल तथा पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन से प्राप्त होता है, जिसका उपयोग प्रदीपक, स्टोव के ईंधन के रूप में होता है।
केओलिन- सफेद महीन मिट्टी, जिसे चाइना क्ले व पोर्सिलेन क्ले कहा जाता है। यह खनिज केओलिनाइट Al14SI4O10(OH)8 की बनी होती है।
एल.एस.डी.-लाइसर्जिक अम्ल डाइथाइलेमाइड भ्रम उत्पन्न करने वाली ड्रग है।
लैक्टोस- दूध की शर्करा।
द्रव्यमान संरक्षण का नियम-रासायनिक अभिक्रियाओं में पदार्थों का कुल द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता है।
ला-शातेलिए का नियम-यदि एक साम्य निकाय के किसी कारक, जैसे-ताप, दाब या सान्द्रण में परिवर्तन किया जाता है तो साम्य उस दिशा में विस्थापित होता है, जिधर उस परिवर्तन का प्रभाव निरस्त होता है।
मैग्नीशिया-श्वेत, स्वादहीन चूर्ण, Mg(OH)2 जो आमाशय की अम्लता दूर करता है।
गलनांक-वह ताप जिस पर कोई ठोस पदार्थ द्रव में परिवर्तित हो जाए।
मेन्थोल-पिपरमेण्ट के तेल से प्राप्त।
मरकरी वाष्प लैम्प-एक गैस विसर्जन लैम्प जिसमें एक निर्वातित काँच की नली होती है। इसमें कुछ मरकरी होता है जो वाष्पित होकर विद्युत् विसर्जन में तीव्र प्रकाश देता है।
धातु प्रदूषक-कुछ भारी धातुएँ जल में घुलकर उसे प्रदूषित करती हैं, जैसे-कैडमियम, लैड तथा मरकरी। ब्क तथा भ्ह गुर्दो को नष्ट कर देते हैं। लैड गुर्दो, जिगर, मस्तिष्क तथा केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को प्रभावित करता है।
उपधातु-तत्वों का एक समूह जिनके गुणधर्म, धातुओं तथा अधातुओं के मध्य होते हैं। ये अर्धधातु तथा अर्धचालक होते हैं।
धातुकर्म-अयस्क से धातु प्राप्त करने में प्रयुक्त विभिन्न प्रक्रमों को सामूहिक रूप से धातुकर्म कहते हैं।
दूधिया चूना-जल में कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड या जलयोजित चूने का निलम्बन।
दूधिया सल्फर-एक रंगहीन, गन्धहीन, हल्का अक्रिस्टलीय चूर्ण।
खनिज-धातु तथा उनके यौगिक पृथ्वी में जिस रूप में मिलते हैं, खनिज कहलाते हैं।
खनिज अयस्क सामान्यतः मृदा अशुद्धियों जैसे- रेत, चट्टानों तथा चूने के पत्थर आदि से जुड़ा होता है, जो गैंग या मैट्रिक्स कहलाती है।
ऐसे पदार्थ, जो जलीय विलयन में हाइड्रोजन आयन (H़) प्रदान करे या ऐसे पदार्थ, जो एक जोड़े इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करें, अम्ल हैं, जैसे- HCl, H2SO4, HNO3 आदि।
पदार्थ, जिनमें हाइड्रॉक्सिल समूह पाया जाता है तथा जिनके जलीय विलयन में हाइड्रॉक्सिल आयन (OH) उपस्थित रहते हैं या ऐसे पदार्थ जो प्रोटीन ग्रहण करें या एक जोड़े इलेक्ट्रॉन को प्रदान करें, क्षार (Bsae) कहलाते हैं, जैसे-NaOH, KOH, Ca(OH)2 आदि।
अधातु के ऑक्साइड अम्लीय गुण दिखाते हैं। यद्यपि उनमें H़ आयन नहीं होते हैं, जैसे- SO2, CO2, SO3 आदि ।
धातु के ऑक्साइड क्षारीय गुण दिखाते हैं। यद्यपि उनमें OH- आयन नहीं होते हैं, जैसे-K2O, Na2O, FeO आदि ।
अम्ल और क्षार के बीच अभिक्रिया के उपरान्त यदि अम्ल के हाइड्रोजन का विस्थापन हो जाता है तो लवण (Salt) का निर्माण होता है। जैस-HCi~ ़ NaOHk~ = NaCl ़ H2o~ |
जल एक अम्ल तथा क्षार, दोनों की तरह कार्य करता है क्योंकि यह प्रोटॉन दे सकता है तथा प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है।
पेट की अम्लीयता को दूर करने के लिए प्रभावी अम्ल (Antiacid) के रूप में ऐल्यूमिनियम हाइड्रॉक्साइड [Al(OH)3, का प्रयोग किया जाता है।
कोल गैस में 54% H2, 35% NH4, 11% CO, 5% हाइड्रोकार्बन व 3% CO2 आदि गैसों का मिश्रण होता है। कोयले के भंजक आसवन के द्वारा निर्मित, यह रंगहीन व विशेष गन्ध वाली गैस है, जो वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है।
सुक्रोस-गन्ने के रस से प्राप्त शर्करा C12H22O11 |
सुपर फॉस्फेट ऑफ लाइम-फॉस्फेटी उर्वरक।
संश्लेषित रेशे- इसका निर्माण कार्बनिक यौगिकों के बहुलकीकरण द्वारा किया जाता है। नायलॉन पहला मानव निर्मित रेशा है। च्टब् एक थर्मोप्लास्टिक है। थायोकॉल एक संश्लेशित रबड़ है। प्राकृतिक रबड़ में आइसोप्रीन होता है।
टैनिन-पौधों में प्राप्त रंगहीन, अक्रिस्टलीय पदार्थों का एक समूह, जो जल में कोलॉइडी विलयन देता है।
टार्टरिक अम्ल- इमली तथा अंगूर में उपस्थित । क्रीम ऑफ टार्टर का उपयोग बेकिंग पाउडर में किया जाता है।
थोरियम- मोनाजाइट रेत से प्राप्त रेडियोसक्रिय धातु, जिसका उपयोग नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन में होता है।
टाइटेनियम- यह अपने भार की तुलना में अधिक सुदृढ़ धातु है। यह संक्षारण का प्रतिरोधक तथा उच्च गलनांक वाला होता है। इसका उपयोग सेना के उपकरणों में किया जाता है। अतः इसे रणनीतिक धातु कहते हैं।
विटामिन-सी-ऐस्कॉर्बिक अम्ल सन्तुलित भोजन का एक आवश्यक अवयव।
ढलवाँ लोहा-इसमें 98.8-99.9% लोहा तथा 0.1-0.25% कार्बन होता है।
जर्कोनियम-श्वेत धातु, जिसका उपयोग मिश्र धातु तथा अग्निरोधी यौगिक बनाने में होता है।
रसायन विज्ञान का विकास सर्वप्रथम मिस्र से हुआ।
रसायन विज्ञान के अन्तर्गत द्रव्य (Matter) के संघटन और उसके अति सूक्ष्म कणों की संरचना का अध्ययन किया है। इसके अन्तर्गत द्रव्य के गुण, द्रव्यों में परस्पर संयोग के नियम, ऊष्मा आदि ऊर्जाओं का द्रव्य पर प्रभाव, यौगिकों का संश्लेषण, जटिल व मिश्रित पदार्थों से सरल व शुद्ध पदार्थ अलग करना आदि आता है।
द्रव्य (Matter) का वर्गीकरण दो प्रकार का होता है-समांगी द्रव्य (Homogeneous Matter) एवं विषमांगी द्रव्य (Heterogeneous Matter)।
तत्व (Element), द्रव्य का वह भाग, जो किसी भी ज्ञात भौतिक व रासायनिक विधि से, न तो दो से अधिक द्रव्यों में विभाजित किया जा सकता है और न ही बनाया जा सकता है, जैसे-लोहा, ताँबा, सोना या गैसीय तत्व (ऑक्सीजन) आदि।
पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्रमुख तत्वों का प्रतिशत आरोही क्रम में- ऑक्सीजन (49.9%), सिलिकान (26%), एल्युमीनियम (7.3%) आदि।
सामान्य मानव शरीर में तत्वों की औसत मात्रा-ऑक्सीजन (65%), कार्बन (18%), हाइड्रोजन (10%) आदि।
दो या दो से अधिक तत्वों के निश्चित अनुपात में मिलाने से यौगिक प्राप्त होते हैं, जो साधारण विधि से पुनः तत्वों में विभाजित किये जा सकते हैं। यौगिक के गुण इसके संघटक तत्वों के गुणों से पूर्णतः भिन्न होते हैं। यौगिक में उपस्थिति तत्वों का अनुपात सदैव एक समान रहता है जैसे-जल में H2 व O2, 2 : 1 के अनुपात में पाये जाते हैं। उदाहरण-पानी, नमक, चीनी, ऐल्कोहॉल आदि।
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