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इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की , भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना किसने एवं कब की

जाने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की , भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना किसने एवं कब की ?

उत्तर : ‘‘ 1924 ई. में टोक्यों (जापान) में रास बिहारी बोस ने भारतीय स्वतंत्रता लीग (इंडियन इंडीपेंडेंट्स लीग) की स्थापना की।

प्रश्न: भारत में राष्ट्रीय क्रांतिकारी आंदोलन में रास बिहारी बोस का योगदान बताइए।
उत्तर: रासबिहारी बोस का जन्म 25 मई, 1886 में उनके मामा के घर कलकत्ता के हुगली जिले में भद्रेश्वर के समीप पलाति विघतीर नामक ग्राम में हुआ था। रास बिहारी बोस की प्रारंभिक शिक्षा चंद्रनगर में हुई। 1906 में वे देहरादून में सरकारी सेवा करने लगे। देहरादून में उनका संपर्क बहुत से क्रांतिकारियों से हुआ।
23 दिसम्बर, 1912 को कलकत्ता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने का दिन तय किया। चाँदनी चैक में लॉर्ड हार्डिंग्स पर बम फेंकने की योजना रास बिहारी बोस ने बनाई। 1913 में रास बिहारी बोस ने अंग्रेजी में ‘लिबर्टी‘ नामक एक पर्चा छाप कर बँटवाया जिसमें यह घोषणा की गई थी कि ‘इंकबाल‘ आज के समय का तकाजा है। ‘…… हमारी आजादी की मंजिल सशस्त्र क्रांति के रास्ते ही हासिल हो सकती है। रास बिहारी बोस छिप-छिपकर क्रांतिकारियों का नेतृत्व करने लगे थे। लाख कोशिश करने पर भी पुलिस उनको पकड़ नहीं पाई थी।
रास बिहारी बोस एक फर्जी पासपोर्ट बनाकर, 1915 में जापान चले गए। वहाँ उन्होंने एक जापानी लडकी से विवाह करके जापान की नागरिकता प्राप्त की । रास बिहारी बोस को जापान में अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने का मौका मिला। उनका संपर्क जापान के बड़े बड़े लोगों से बढ़ता गया। वे क्रांतिकारियों के लिए हथियार आदि भेजने की व्यवस्था में लगे रहे।
रास बिहारी बोस ने ही सबसे पहले यह नारा बुलंद किया था कि “एशिया एशियावासियों का है।‘‘ 1924 ई. में टोक्यों (जापान) में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता लीग (इंडियन इंडीपेंडेंट्स लीग) की स्थापना की। स्वतंत्रता आंदोलन को शक्तिशाली बनाने के लिए रास बिहारी बोस ने 21 जून, 1942 को बैंकाक में सम्मेलन बुलाया।
श्री बोस का विश्वास था कि सुसंगठित सशस्त्र क्रांति से ही देश को आजाद किया जा सकता है। उनका यह भी विश्वास था कि इस क्रांति को सफल बनाने में ब्रिटिश विरोधी विदेशी राज्यों की सहायता आवश्यक है। दिसम्बर 1941 में रास बिहारी बोस ने जापान में प्रथम आजाद हिंद फौज की स्थापना की और कैप्टन मोहन सिंह को उसका प्रधान नियुक्त किया। इस फौज का उद्देश्य भारत की भूमि से अंग्रेजों को मार भगाना था।
4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की बागडोर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हाथ सौंप दी । उन्होंने इंडियन इंडीपेंडेंट्स लीग के सभापति पद से इस्तीफा देकर सुभाषचंद बोस को इस पद पर नियुक्त किया। रास बिहारी बोस अब अस्थायी आजाद हिंदू सरकार के सर्वोच्च परामर्शदाता थे। नेताजी ने कहा था कि रास बिहारी बोस पूर्व एशिया में भारतीय स्वांतत्र्य संग्राम के जन्मदाता थे। रास बिहारी बोस का देहान्त 21 जनवरी, 1945 को जापान की ही भूमि पर हुआ।

स्वतंत्रता पश्चात् वास्तुकला पर प्रभाव या विकास समझाइये ?

भारत के स्वाधीन होने तक पूरी दुनिया में एक सार्वभौम वास्तुकला का युग आ चुका था, जो किसी भी विशिष्ट शैली की सीमा में न बंधते हुए विज्ञान तथा आधुनिक भवन सामग्रियों की आवश्यकताओं के अनुरूप था, जिसे पूरी दुनिया स्थापत्य एवं कला 333 334 भारतीय संस्कृति में स्वीकृति मिली और उपयोग में लाया गया। फैरो कंक्रीट के आगमन से पूरी दुनिया में न केवल वर्तमान वास्तुशिल्पीय अवधारणा में क्रांति आ गई, बल्कि इसने विभिन्न देशों को विशाल निर्माण की एक समान शैली अपनाने पर भी विवश कर दिया। केवल जलवायु ही वह तत्व था जिसके कारण इसमें स्थानीय स्तरों पर कुछ संशोधन परिवर्तन करने पड़े। हाल के समय में निर्माण की परंपराग्त सामग्रियों, जैसे मिट्टी, के उपयोग के भी सफल प्रयोग किए गए हैं। वास्तुकला के नक्शों को इस विचार से तैयार किया जाता है कि सरलता से उपलब्ध उन निर्माण सामग्रियों का उपयोग किया जाए जो किसी स्थान विशेष की जलवायु के अनुकूल हों। जिनसे नैसग्रिक संवाहन या वायु संचार में भी सहायता मिले।
इस संदर्भ में ल्यूरी बेकर का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने केरल में सामूहिक आवास निर्माण में क्रांति ला दी थी। गरीबों के वास्तुशिल्पी के रूप में मशहूर बेकर का मूल निर्माण सिद्धांत भवनों का पर्यावरण या परिवेश में विलयन, जहां तक संभव हो निर्माण को भूदृश्य के अनुरूप रखना और स्थानीय रूप से उपलब्ध निर्माण सामग्रियों का अधिकाधिक उपयोग करना था ताकि स्टील और सीमेंट का कम से कम इस्तेमाल करना पड़े। उन्होंने फिल्टर स्लैब निर्माण विधि लागू की। मेहराबों और टोडों के प्रभावशाली उपयोग से पुनःसंवर्धित लिंटलों के उपयोग की बिल्कुल आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उन्होंने मकानों के अंदर वायु संचार और ऊष्मीय सुविधा की दृष्टि से सफलतापूर्वक नए दृष्टिकोण अपनाए। निर्मित केंद्र तथा काॅस्टफोर्ड जैसे संगठन इस देश में असंख्य गरीबों के लिए आश्रय उपलब्ध कराने के लिए वास्तुशिल्पीय क्रांति के अग्रदूत बने हैं, और इस समय इसी बात की आवश्यकता भी है।

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