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आशय या अर्थ क्या होता है | आशय की परिभाषा क्या है | आशय अथवा अर्थ किसे कहते , आशय स्पष्ट करो

आशय स्पष्ट करो , क्या होता है | आशय की परिभाषा क्या है | आशय अथवा अर्थ किसे कहते ? आशय meaning in english in hindi , अंग्रेजी में क्या कहते है ?

आशय या अर्थ (meaning या Intent)

किसी अवतरण के मूल भावों को अपनी भाषा में प्रस्तुत करने की विधि को ‘अर्थ‘ अथवा ‘आशय‘ कहते हैं। आशय या अर्थ के लिए यह आवश्यक होता है कि अवतरण के भावों और विचारों को ध्यान में रखा जाय। अर्थ वस्तुतः किसी अवतरण की व्याख्या, सारांश और भावार्थ से भिन्न है।

आशय या अर्थ लिखने के लिए निम्नांकित विचार बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए-

1. सर्वप्रथम मूल अवतरण को खूब ध्यान से पढ़ना चाहिए जिससे प्रत्येक पंक्ति और वाक्य समझ में आ जाय और यह भी पता चल जाय कि किस प्रसंग और किस विषय में क्या कहा गया है।

2. अवतरण के मूल अर्थ को समझने के बाद महत्वपूर्ण तथ्यों एवं विचारों का विश्लेषण करना चाहिए । तात्पर्य यह है कि अवतरण में मूल रूप से क्या कहा गया है, उस पर ध्यान देना चाहिए।

3. मूल अवतरण के प्रत्येक तथ्य या विचार का विभाजन कर लेने के बाद प्रत्येक विचार को एक-एक अनुच्छेद (पैरा) में अपनी भाषा में लिखना चाहिए।

4. अर्थ की रूपरेखा तैयार हो जाने के बाद उसे सावधानी से पढ़ लेना चाहिए । इस प्रकार पढ़ने से यह स्पष्ट मालूम होना चाहिए कि मूल अवतरण का कोई भाव या विचार छूटा नहीं है।

5. यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अर्थ या आशय की भाषा सरल एवं अपनी होनी चाहिए । आलंकारिक भाषा एवं कठिन. शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

6. अर्थ के विस्तार अथवा संक्षेप में कोई निश्चित नियम नहीं है । आशय या अर्थ मूल अवतरण से बड़ा भी हो सकता है, क्योंकि सभी विचार स्पष्ट होने चाहिए । फिर भी परीक्षा में पूछे गये इस अर्थ के अंक पर इसका विस्तार निर्भर करता है। यदि इस प्रश्न का पूर्णाक 10 है तो उसी के अनुसार अर्थ या आशय का विस्तार करना चाहिए । अवतरण का जो विषय है उसकी लम्बी-चैड़ी भूमिका बाँधने अथवा विस्तार के साथ प्रसंग निर्देश करने की जरूरत नहीं होती है । साथ ही विस्तार से व्याख्या करने की भी आवश्यकता नहीं होती है । केवल पदान्वय से भी काम नहीं चलता है । अतः आवश्यकतानुसार अवतरण का आशय या अर्थ लिखना चाहिए ।

7. दिया गया अवतरण यदि बड़ा अथवा लम्बा हो तो उसका आशय या अर्थ संक्षेप में प्रस्तुत करना चाहिए अर्थात् आशय को कम से कम मूल का आधा होना चाहिए । यदि मूल अवतरण छोटा हो तो उसका अर्थ या आशय थोड़ा विस्तार से लिखना चाहिए अर्थात् उसे मूल का दुगुना होना चाहिए ।

उदाहरण के लिए कुछ अवतरणों का आशय नीचे दिया जा रहा है–

(क) निम्नलिखित पद्यांश का आशय लिखिए–

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है ।

दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है ।

आशय-इन पंक्तियों में कवि ने यह बताया है कि कौन व्यक्ति ‘श्रेष्ठ-ज्ञानी‘ है और कौन ‘पूज्य-प्राणी‘ है। वस्तुतः समानता की दृष्टि से सबको देखने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी है । जिस ज्ञान द्वारा मानव समाज में ऊँच-नीच का भाव जागे, वह उत्तम ज्ञान नहीं है । उत्तम ज्ञान वही है जिसे प्राप्त कर हम सभी मनुष्यों को एक समान देखें । समाज में दयालु और धर्मपरायण व्यक्ति की ही पूजा होनी चाहिए । वही सर्वाधिक पूजनीय व्यक्ति है जो दूसरों पर दया करता है और धर्म के अनुसार आचरण करता है । जो दया का पात्र है उस पर दया करना मानव का धर्म है और इस धर्म से युक्त प्राणी ही समाज में सबसे अधिक पूजा जाता है।

(ख) निम्नांकित गद्यावतरण का आशय या अर्थ लिखिये–

मनुष्य के व्यक्तित्व का जहाँ पूर्ण विकास होता है, उसके दिव्य गुणों का चरम प्रकाश होता है वहीं हम मनुष्यत्व में ईश्वरत्व की, नर में नारायण की कल्पना कर सकते हैं।

आशय का अर्थ-इन पंक्तियों में लेखक ने बताया है कि मनुष्य यदि अपने गुणों का विकास कर ले तो वह देवत्व को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य में अनेक गुण हैं । इन गुणों के विकास के अभाव में मनुष्य का व्यक्तित्व अधूरा रहता है । अपने छिपे हुए गुणों को मनुष्य जब प्रकाशित करता है तभी वह मनुष्यत्व से देवत्व की ओर अग्रसर होता है । तात्पर्य यह है कि दिव्य और अलौकिक गुणों से युक्त हो कर मनुष्य देवत्व को प्राप्त होता है । देवत्व के इस धरातल पर पहुँचने के बाद मनुष्य साधारण नर से नारायण बन जाता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व का निर्माण जब पूर्ण होता है तब मनुष्यत्व की उपलब्धि होती है और इस मनुष्यत्व की चरम उपलब्धि में देवत्व के दर्शन होते हैं।

द्रष्टव्य-यहाँ मूल अवतरण छोटा है । इसलिए आशय बड़ा लिखा गया है । यदि अवतरण बड़ा हो तो आशय छोटा लिखा जायगा ।

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