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आर्तव चक्र क्या है ? आर्तव चक्र ( मेंस्ट्रुअल साइकिल) का कौन-से हॉर्मोन नियमन करते हैं ? Menstrual Cycle in hindi
प्रश्न 17. आर्तव चक्र क्या है ? आर्तव चक्र ( मेंस्ट्रुअल साइकिल) का कौन-से हॉर्मोन नियमन करते हैं ? (Menstrual Cycle in hindi)
उत्तर : आर्तव चक्र (Menstrual Cycle) – मादा प्राइमेटों के अण्डाशय , सहायक नलिकाओं और विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनल स्तर में होने वाले जनन चक्रिक परिवर्तनों को आर्तव चक्र (मेंस्ट्रुअल साइकिल) कहते हैं। इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे मासिक धर्म , रजोधर्म , पीरियड्स आदि | स्त्रियों में ये परिवर्तन माह में एक बार दोहराए जाते हैं। अत: इसे माहवारी चक्र या आर्तव चक्र कहते हैं। प्रथम ऋतुस्राव/रजोधर्म (मेन्सट्रएशन) का प्रारम्भ यौवनारम्भ (10 से 16 वर्ष की उम्र में) से होता है जिसे रजोदर्शन (मेना-menarche) कहते हैं। अर्थात प्रथम बार जब स्त्री या मादा में आर्तव चक्र शुरू होता है उसे रजोदर्शन कहा जाता है |
स्त्रियों में यह आर्तव चक्र प्रायः 26-28 दिन की अवधि के बाद दोहराया जाता है। ऋतुस्राव में अनिषेचित अण्डाणु कुछ रक्त और गर्भाशयी अन्तःस्तर की खण्डित कोशिकाओं के साथ योनि मार्ग से बाहर आता है। इसमें ऋतुस्राव (menstruation) की अवस्था के बाद पुटिकीय अथवा फॉलिकुलर अवस्था होती है जिसमें गर्भाशय के अन्तःस्तर की टूट-फूट की मरम्मत व नयी वृद्धि होती है और पुटिकीय विकास होता है। अगली अवस्था 14 वें दिन अण्डोत्सर्ग की होती है जिसके बाद पीत अवस्था (luleal phase) अथवा स्रावी अवस्था आती है जिसमें प्रोजेस्टेरॉन के प्रभाव से गर्भाशयी भित्ति का विकास होता है एवं यह अपेक्षित गर्भधारण हेतु तैयार होती है। अण्डोत्सर्ग के बाद पुटिका कॉर्पस ल्यूटियम बना देती है। निषेचन के अभाव में पुनः ऋतुस्राव अवस्था दोहराई जाती है।
आर्तव चक्र का नियमन (Regulation of Menstrual Cycle) – यह पीयूष ग्रन्थि और अण्डाशयी हॉर्मोन्स द्वारा नियमित होता है। एल०एच० (L.H.) तथा एफ०एस०एच० (F.S.H) (Luteinizing Hormone & Follicle Stimulating Hormone) ग्राफियन पुटिकाओं की वृद्धि, अण्डजनन और एस्ट्रोजन्स (estrogens) के स्रावण को प्रेरित करते हैं। एल०एच० (L.H.) का स्रावण आर्तव चक्र के मध्य (लगभग 14वें दिन) अपने उच्चतम स्तर पर होता है। इसे एल०एच० सर्ज (L.H. Surge) कहा जाता हैं। यह ग्राफियन पुटिका के फटने को प्रेरित करता है , अर्थात अण्डोत्सर्ग हो जाता है। अण्डोत्सर्ग के पश्चात् अण्डाणु फैलोपियन नलिका में आता है जहाँ पर इसका निषेचन होता है। निषेचन के बाद सगर्भता शुरू होती है। अगर अण्डाणु का निषेचन नहीं हो पाता तो कॉर्पस ल्यूटियम विलुप्त होने लगता है। प्रोजेस्टेरॉन और एस्ट्रोजन की कमी से गर्भाशय की भित्ति का खण्डन प्रारम्भ हो जाता है और गर्भाशय की भित्ति के खंडन अर्थात टूटने के कारण रक्तस्राव शुरू हो जाता है। रक्तस्राव के साथ अनिषेचित अण्डाणु भी बाहर आ जाता है। इसी को ऋतुस्त्राव कहा जाता हैं। 4-5 दिन तक रक्तस्त्राव होता रहता है। इसके पश्चात् लगभग 9 दिन में गर्भाशय की भित्ति की मरम्मत हो जाती है। और पुन: वही प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है जैसा ऊपर बताया गया है |
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