आनुवंशिकता में सुधार (Genetic improvement in hindi) पादप जनन द्रव्य भंडारण संरक्षण (Germ plasm Storage/preservation)

आनुवंशिकता में सुधार (Genetic improvement) — फलदार वृक्ष अधिकतर काष्टीय (woody) होते हैं अतः इनके ऊतक संवर्धन तथा पुनर्जनन (regeneration) कार्यों में मुश्किले आती हैं अतः ऐसे पादपों हेतु प्रोटोप्लास्ट संवर्धन, अगुणित पादपों का विकास व जीन स्थानांतरण की विधियों का इस्तेमाल किसा जाता है। प्रोटोप्लास्ट संवर्धन प्रक्रिया द्वारा सेब, आलूबुखारा व नाशपाती के पादपों में वांछित आनुवांशिक सुधार किये गये हैं। चेरी व नाशपाती के मध्य प्रोटोप्लास्ट संयुग्मित (fuse) करवाकर कायिक संकर बनाने में वैज्ञानिक सफल रहे हैं।
भारत में सिट्रस की कई जातियों जैसे नीबू, संतरा, मौसमी आदि में कई विधियों का उपयोग करके उनकी उन्नत जातियों प्राप्त की गई हैं। इन विधियों में मुख्यतः कायिक प्रवर्धन, कायिक भू्रणजनन प्रोटोप्लास्ट संवर्धन तथा जीव स्थानांतरण उपयोग में लाई गई हैं। नीबू में सूक्ष्मकलम (micrografting) तकनीक को भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। इस विधि में ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार किये गये छोटे पादपको (plantlets) में कलम लगाकर क्लोनीय प्रवर्धन किया जाता है।
 जनन द्रव्य भंडारण संरक्षण (Germ plasm Storage/preservation) – : जनन द्रव्य संरक्षण में कितने काल तक जनन द्रव्य संरक्षित रखना है इस आधार पर दो तकनीके अपनाई जाती हैं। पहली मन्द वृद्धि (कम या मध्यम समय के भंडारण हेतु) तथा दूसरी हिम संरक्षण (लंबे काल तक भंडारण व संरक्षण हेतु) विधि है। मन्द वृद्धि में ऊतको को 2° से 4° तक के तापमान पर भंडारित करके संरक्षित करते हैं जबकि हिम संरक्षण में – 196 °C पर भंडारण तरल नाइट्रोजन में किया जाता है। उपरोक्त विधियों से यह तय है कि जैव प्रौद्योगिकी की मदद से फलदार पादपों का प्रवर्धन व संरक्षण हो रहा है तथा नई उन्नत किस्में तैयार हो रही है।
(क्) जैव प्रौद्योगिकी के कृषि में अनुप्रयोग
(Application of Biotechnology in Agriculture)
पूरे विश्व में जैव प्रौद्योगिकी का कृषि में उपयोग करने हेतु वैज्ञानिक विभिन्न स्तरों पर शोध कर रहे हैं। जिससे जो दलहन, सब्जी, फल, धान्य, आदि की फसले हैं उनकी गुणवता में सुधार लाया जा सके उनकी मात्रा बढ़ाई जा सके व उनका परिपक्वन काल कम किया जा सके। पादपो को सूखा, कीट प्रतिरोधी आदि बनाया जा सके। जैवप्रौद्योगिकी की कुछ विशिष्ट तकनीके जो फसल सुधार में उपयोगी है। वह निम्न हैं.
(प) कायिक क्लोनीय विविधता (Somaclonal variation)
(2) निषेचन पर नियंत्रण (Control on fertilçation)
(3) परागकोष सवंर्धन (Anther culture)
(4) बीजांडकाय सवंर्धन (Nucellus culture)
(5) अंडाशय व बीजांड संवर्धन (Ovary and ovule culture)
(6) भू्रण संवर्धन (Embryo culture)
(7) भ्रूणपोष संवर्धन (Endosperm culture)
(8) जैव प्रौद्योगिकी द्वारा गोल्डन राइस का निर्माण
(Formation of golden rice with help of Biotechnology)
(9) पीड़कनाशी प्रतिरोधी पादप (Pest resistant plants) .
(10) आनुवंशिक रूप से परिवर्तित फसलें (Genetically Modified Crops)
(प) कायिक क्लोनीय विविधता (Somaclonal variation)– किस भी पादप का ऊतक लेकर जब उसका संवर्धन करते हैं तब उसमें तेजी से विभाजन होते हैं व कई आंतरिक तथा बाहरी कारणों से कायिक क्लोनीय विविधता पैदा हो जाती है जैसे चावल, गेंहू, जौ, गन्ना, तम्बाकू, आलू चुकन्दर आदि।
(पप) निषेचन पर नियंत्रण – (Cantrol on fertilçation)– पारम्परिक विधि से प्रजनन के दौरान कई बार परागकण अंकुरित नहीं हो पाता है या परागनलिका अवरूद्ध हो जाती है अथवा नर युग्मक बीजांड में पहुंचकर सफल संयुग्मन नही कर पाते हैं। इन्ही सब कठिनाइयों का निराकरण परखनली निषेचन द्वारा संभव है। इस प्रक्रिया में भ्रूण विकास के अध्ययन का लाभ मिलता है व जननक्षम संकर बीज प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार के सफल प्रयोग आर्जीमोन मेक्सीकाना, पापावर सोमनीफेरम तथा इश्कोलजिया कैलीफोर्निका पर किये गये हैं।
(3) परागकोष सवंर्धन (Anther culture)– वांछित गुणों युक्त अगुणित पादप तैयार करने हेतु परागकोष संवर्धन एक सरल तकनीक है। इसके द्वारा कुछ ही महीनों में अगुणित पादप तैयार किये जा सकते हैं। ऐसे पादप जो लंबी अवधि में परिपक्व होते हैं जैसे रबर, कॉफी, चाय, व आलू आदि इनमें परागकोष संवर्धन द्वारा कम समय में पादप तैयार कर लिये जाते हैं। अगुणित पादपों को जैव प्रौद्योगिकी की तकनीकों का इस्तेमाल करके द्विगुणित कर लिया जाता है व इनकी वांछित गुणवता लंबे समय तक बनी रहती है। कुछ पादप जिनमें परागकोष संवर्धन द्वारा पादप तैयार किये गये हैं वह हैं- संकर सरसों, टमाटर, मिर्च, बैंगन, चावल, गेंहू इत्यादि ।
(4) बीजांडकाय सवंर्धन (Nucellus culture) — प्रकृति में भी कभी कभी कुछ पादपों में बीजांडकाय की कोशिकाएं भ्रूण बनाती है। इसी से प्रेरित होकर वैज्ञानिकों ने बीजांडकाय की कोशिकाओं (2n) को क्लोनीय संवर्धन के लिये उपयुक्त माना क्योंकि इनके द्वारा जिन पादपों का पुनर्जनन किया जाता है वह पूर्णतः जनक पादपों के समान गुणवता लिये होते हैं। बीजांडकाय का संवर्धन मुख्यतः निम्न पादपों में किया गया है – बेल (Aegle marmelos), नींबू (Citrus sps) खरबूजा (Cucuinis melo) आदि।
(5) अंडाशय व बीजांड संवर्धन (Ovary and cvule culture) — जिन पादपों के भ्रूण बहुत सूक्ष्म होते हैं। उन पादपों से अण्डाशय या बीण्डज को निकाल कर उनकी संवर्धन माध्यम पर वृद्धि करवाना अपेक्षाकृत सरल होता है। अण्डाशय संवर्धन खरबूजे व टमाटर में सफलतापर्वक किया जा चुका है।
(6) भ्रूण संवर्धन (Embryo culture) — कुछ अच्छी किस्मों के मध्य प्रजनक (breeder) अगर संकरण करवा कर वांछित गुणों युक्त संतति प्राप्त करना चाहते हैं तब भ्रूण का प्रयोग के दौरा नष्ट होना, वृद्धि अच्छी तरहा ना करना आदि कठिनाइयाँ सामने आती है। इनसे निपटने के लि भ्रूण संवर्धन एक बेहद उपयोगी तकनीक है जिसके द्वारा संवर्धन माध्यम पर भ्रूण परिवर्धित होत संकर पादप निर्मित कर लेते हैं।
(7) भ्रूणपोष संवर्धन (Endosperm culture) — भ्रूणपोष अधिकतर त्रिगुणित होता है अतः दुर निर्मित पादपों में बीज नहीं बनते हैं अतः त्रिगुणित पौधों का इस्तेमाल करके बीजरहित कर (Seedless fruits) उत्पन्न किये जा सकते हैं। बीजरहित फलों का ज्यूस उद्योगों में उपयोग किया जाता है तथा बीजरहित फलों में खाने योग्य भाग अधिक होने से उपभोक्ता भी उन्हें पसन्द करने हैं। इस विधि से पादप अंगूर, नीबू, सेब व चावल के तैयार किये गये हैं।
(8) जैव प्रौद्योगिकी द्वारा गोल्डन राइस का निर्माण (Fermation of golden rice with the help of biotechnology)
गोल्डन राइस स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट साइंसिस में इंगोपॉरिकस (Ingo potrykus) द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रीबर्ग (Freibarg) के पीटर बेयर (Peter Beyer) के साथ कार्य करते हुये बनाई गई। गोल्डन राइस ओरयजा सेटाइवा चावल की एक ऐसी किस्म है जिसे आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा निर्मित किया गया है व इस खाद्य चावल में बीटा-केरोटीन (प्रोविटामिन ।) के प्रीकर्सर (precursor) जैव संश्लेषित (biosynthesçe) कर सकते हैं। इस चावल के वैज्ञानिक पहलू साइंस मैग्जीन 2000 में छपे थे। गोल्डन राइस उन स्थानों के लिये उपयुक्त था जहाँ व्यक्तियों के भोजन में विटामिन -A की कमी थी। सन् 2005 में एक ओर गोल्डन राइस की जाति गोल्डन राइस 2 (Golden Rice 2) खोजी गई जिसमें 23 गुणा अधिक मात्रा में बीटा कैरोटीन विकसित किया गया। वर्तमान में दोनों गोल्डन राइस की जातियाँ कृषकों को उगाने के लिये नहीं दी गई क्योंकि इनका पर्यावरणविदों ने विरोध किया है।
(9) पीड़क प्रतिरोधी पादप (Pest resistant plants) कुछ जाति के नीमेटोड कई पादपों व जन्तुओं पर परजीवी के रूप में निवास करते हैं। नीमेटोड मेलेडोगाइन इनकोगनिटा (Meleoidogyne incognita) तम्बाकू की मूल में निवास करके उन्हें क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे फसल को नुकसान पहुंचता है। यूकेरयोटिक कोशिकाओं में कोशिकीय सुरक्षा हेतु एक विधि होती है जो RNA अंतरक्षेप (RNA interference – RNAi) पर आधारित होती है। इस विधि का इस्तेमाल करके कीटों के संक्रमण को रोका जा सकता है। इसमें विशिष्ट mRNA को निष्क्रिय किया जाता है एक पूरक (complementary) केत्छ। अणु द्वारा जो उत्छ। के साथ बंध कर उसका स्थानान्तरण (translation) अवरूद्ध कर देता है। पूरक त्छ। को ऐसे वायरस द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जिनमें RNA जीनोम है अथवा उनमें ट्रांसपोसन (Transposons) है जो RNA मध्यवर्ती intermediate) द्वारा प्रतिकृति (replicate) कर सकते हैं।
एग्रोबैक्टीरियम वाहक का इस्तेमाल करके परपोषी (host) पादप में नीमेटोड-विशिष्ट जीनों को स्थानांतरित किया गया। पादप में डी.एन.ए. प्रवेश के पश्चात् कोशिकाओं में सेंस (sense) व एंटीसेंस (anti-sense) RNA का निर्माण किया जा सकता है। उपरोक्त दोनों RNA एक दूसरे के पूरक (complementary) होते हैं अतः एक द्विसूत्रीय (double stranded) RNA का निर्माण कर लेते हैं। जो RNA i का प्रारम्भन (Initiation) कर लेते हैं जिससे विशिष्ट RNA निष्क्रिय हो जाता है व परजीवी-नीमेटोड नष्ट हो जाता है।