JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: इतिहास

आजादी की लड़ाई और हिंदी सिनेमा का महत्व क्या है , hindi cinema and independence in hindi

hindi cinema and independence in hindi आजादी की लड़ाई और हिंदी सिनेमा का महत्व क्या है ?

आजादी की लड़ाई और हिंदी सिनेमा
भारतीय सिनेमा की राष्ट्रीय आंदोलन में कोई भूमिका थी या नहीं, दरअसल यह जांचने का काम भी अभी गंभीरता से नहीं हुआ है। अब तक जो तथ्य सामने आए हैं, उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि राष्ट्रीय सिनेमा की धारा कमजोर भले ही रही हो लेकिन महत्वहीन नहीं थी।
वस्तुतः फिल्में देखना या न देखना उस समय सम्पूर्ण मध्यमवर्गीय भारतीय जनमानस का द्वंद्व था। मध्यवर्गीय परिवारों में यदि कोई युवा अच्छी पुस्तकें पढ़ता था तो जहां उसे एक ओर प्रोत्साहन मिलता था वहीं, अच्छी फिल्में देखने पर फटकार की भी आशंका बनी रहती थी। वैसे इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत में अंग्रेजी राज के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन ने समाज में जो लहरें पैदा कीं, 1930 के आस-पास उनमें से एक लहर राष्ट्रीय सिनेमा की भी थी, जिसका संघर्ष भारतीय सिनेमा के औपनिवेशिक शोषण से था। पर इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रीय आंदोलन ने जिन सांस्कृतिक लहरों को जन्म दिया था उनमें से यह सबसे कमजोर लहर थी।
एक तरफ जहां हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व सिनेमा की शक्ति से प्रायः अनभिज्ञ था और उसे उपेक्षित दृष्टि से देख रहा था वहीं दूसरी तरफ प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुए अपने अनुभवों से अंग्रेज संप्रभुओं ने सिनेमा की ताकत को अच्छी तरह से पहचान लिया था। अंग्रेजों ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जहां सिनेमा का इस्तेमाल अपने पक्ष में ‘प्रोपेगंडा’ के रूप में किया था, वहीं रूसी क्रांति के फलस्वरूप 1917 में रूस द्वारा साम्राज्यवादी युद्ध से अलग हो जागे पर सिनेमा को उन्होंने ‘बोल्शेविज्म’ के खिलाफ प्रचार के लिए भी इस्तेमाल करने का प्रयास किया। शायद सिनेमा की ताकत के अहसास ने ही युद्ध के अंतिम चरण में यानी 1918 में अंग्रेजों को ‘इंडियन सिनेमाटोग्राफ एक्ट’ पारित करने के लिए बाध्य किया। इसके अंतग्रत सार्वजनिक प्रदर्शन पूर्व हर फिल्म को सेंसर बोर्ड से प्रमाण-पत्र लेना आवश्यक था। यह सेंसर परोक्ष रूप से पूरी तरह राजनीतिक था और इसके तहत् किसी भी राजनीतिक आंदोलन, व्यक्ति या घटना का चित्रण अथवा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले कथानकों पर बने सिनेमा की नियति थी, उसका प्रतिबंधित होना। अर्थात् जब भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई जन-आंदोलन की शक्ल अख्तियार कर रही थी, सिनेमा पर सेंसर की पाबंदियां लगा दी गईं। 1916 में एक बार फिल्म बनाने के लिए गवर्नमेंट ट्रेजरी से 3,000 पौंड की धनराशि व्यय करने की संस्तुति दी गई थी। अतः जाहिर है उस व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए सत्ता से बैर लेना काफी महंगा था। आश्चर्य नहीं कि ऐसे में राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी फिल्में कम ही बनीं, इसके बावजूद ऐसी ढेरों फिल्में बनीं, जिन्होंने राष्ट्रीय जीवन-भावना एवं द्वंद्व को अभिव्यक्ति दी।
मूक सिनेमा के दौर में ही भ्रष्ट औपनिवेशिक संस्कृति के प्रभावों के खिलाफ सामाजिक चेतना से लैस फिल्मों की परम्परा शुरू हो गई थी। पाटनकर बंधुओं द्वारा निर्मित ‘शिक्षा एवं वासना’ एवं ‘कबीर कलाम’ (1919) उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने सामाजिक चेतना की अलख जगाने के प्रयासों से सिनेमा को भी जोड़ा। भारत में अंग्रेजों ने जिस नए आर्थिक आचार-विचार को जन्म दिया था, जमींदार एवं साहूकार उसके अभिन्न अंग थे। इन जमींदारों एवं साहूकारों के शोषण को पहली बार 1925 में बाबूराव पेंटर ने ‘सावकारी पाश’ बनाकर अभिव्यक्ति दी। 1931 में ‘आलमआरा’ के प्रदर्शन के साथ ही भारत में सवाक् फिल्मों की शुरुआत हुई। यह वह समय था, जब राष्ट्रीय आंदोलन गोलमेज सम्मेलन के उबाऊ दौर से गुजर रहा था और जनता बेचैनी से राष्ट्रीय नेताओं को निहार रही थी। इस समय भारतीय सिनेमा ने जनता की भावनाओं को पर्याप्त अभिव्यक्ति दी। सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव वहन करने के कारण बड़ी संख्या में 1931 से 1934 के बीच फिल्में प्रतिबंधित हुईं जिनमें से कुछ 1937 में कांग्रेस की सरकारों के अस्तित्व में आने के बाद प्रदर्शित हो सकीं।
बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक की अनेक फिल्मों में जमींदार और किसान, साहूकार और सर्वहारा वग्र तथा मिल मालिक और मजदूरों के संबंधों, उनके शोषण का चित्रण हुआ। किंतु पूरी ईमानदारी से विषय को चित्रित करने का साहस बहुत कम लोगों ने किया। बाॅम्बे टाकीज की फिल्म ‘जन्मभूमि’ (1936) और प्रभात फिलम्स की ‘वहां’ (1937) या ‘बियाॅन्ड द होराइजन’ में दासता के विरुद्ध क्रांतिकारी स्वरों को सजीवता के साथ चित्रित किया गया था, जिनमें देश के युवा वग्र के हृदय की कसमसाहट झलकती है। इसी दौर की एक फिल्म ‘आजादी’ थी जिसमें देश के अंदर व्याप्त गुलामी और दासता की मानसिकता को जड़ से उखाड़ फेंकने का अभिप्राय छिपा था।
व्ही शांताराम का नाम राष्ट्रवादी फिल्मकारों में अग्रणी है। श्री शांताराम ने हमेशा ज्वलंत सामाजिक और राजनीतिक प्रश्नों को लेकर फिल्म बनाई और भरसक प्रयास किया कि सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना के प्रसार में फिल्में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। 1937 में बनी उनकी फिल्म ‘दुनिया न माने’ बेमेल विवाह की समस्या को बड़ी शिद्दत के साथ उठाती है। 1939 में उन्होंने ‘आदमी’ बनाई, जिसमें पहली बार वेश्या को एक हाड़-मांस की भावना प्रवण महिला के रूप में चित्रित करते हुए, वेश्या पुनर्वास की समस्या को गंभीरता से उठाया गया।
चैरी-चैरा का.ड के फलस्वरूप असहयोग आंदोलन वापस लेने पर सारे देश में गांधी जी की तीव्र आलोचना हुई। उनकी नीतियों से देश के बुद्धिजीवियों का एक वग्र उनका तीव्र आलोचक बन गया। ऐसे बुद्धिजीवी सिनेमा में भी कार्यरत थे तथा पी.के. आत्रे एवं मास्टर विनयाक ऐसे ही लोगों में थे। इन दोनों ने अपनी फिल्मों ‘ब्रह्मचारी’ (1938)’, ब्रांडी की बोतल’ (1939) और धर्मवीर (1937) के माध्यम से गांधी जी की कार्यविधि ,वं कार्यक्रमों की आलोचना की।
40 के दशक में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी काफी प्रभावशाली हो चली थी। बुद्धिजीवियों को इसने बेहद प्रभावित किया। सर्वहारा की विजय और पूंजीवाद की अनिवार्य पराजय का सिद्धांत सिनेमा के पर्दे पर भी दिखाई देने लगा। 1942 में महबूब खान ने ‘रोटी’ बनाई, जिसमें श्रम पर केंद्रित समाज का एक चित्र प्रस्तुत किया गया था और पूंजी पर केंद्रित समाज की निस्सारता को भी केंद्रित किया गया था।। 1943 में ज्ञान मुखर्जी की ‘किस्मत’ प्रदर्शित हुई, जिसमें ‘दूर हटो ए दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है’ गाना था। युद्धकाल में ब्रिटिश सरकार ने इसे अपने पक्ष में माना किंतु वास्तव में ‘दूर हटो ए दुनिया वालो’ कहकर राष्ट्रवादियों ने ब्रिटेन को भी चेतावनी दी थी। विमल राय की ‘हमराही’ (1946) इस दौर की सर्वाधिक प्रगतिशील फिल्म थी। इसमें साधन सम्पन्न और सर्वहारा, पूंजीपति और मजदूर, समाजवाद और पूंजीवाद के बीच की समस्याओं का एक बौद्धिक हल देने का प्रयास किया गया था। रवीन्द्र नाथ टैगोर का गीत ‘जन-गण-मन अधिनायक’ इस फिल्म में पहली बार इस्तेमाल किया गया था जो 1947 में स्वतंत्रता पश्चात् भारत का राष्ट्रगान बना।
स्वतंत्रता के पश्चात् नेहरू जी के समाजवादी रुझान ने भारतीय फिल्मों की इस धारा को बना, रखा। बावजूद इसके कि बाॅक्स आॅफिस का उदय दूसरे विश्व युद्ध के बाद सिने उद्योग में आए काले धन के कारण हो चुका था। नेहरू जी के समाजवाद और पूंजीवाद के आदर्श मेल का सपना ज्यों-ज्यों टूटा, त्यों-त्यों भारतीय जनमानस में मोहभंग का दौर शुरू हुआ, जो नेहरू जी के देहांत के साथ तेजी से सामने आया। समाज के हर क्षेत्र में पतन हुआ। मानवीय और नैतिक मूल्य ढहने लगे। इस पतन और द्वंद्व को समझने के लिए राजकपूर सबसे उचित उदाहरण हैं, जो अपनी वामपंथी रुझान वाली फिल्मों ‘आवरा’ (1951), ‘श्री 420’ (1955), ‘जागते रहो’ (1956)’, ‘बूट पाॅलिश’ (1954) के कारण रूस में नेहरू जी के बाद सर्वाधिक चर्चित भारतीय हैं। नेहरू जी के समय में ही राजकपूर की एक फिल्म का गाना ‘मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर पे लाल टोपी रूसी’, ‘भारत-रूस मैत्री’ का प्रतीक बन गया था।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

20 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

4 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

6 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now