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अव्ययीभाव समास के 100 उदाहरण क्या है | अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं परिभाषा अर्थ की पहचान

अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं परिभाषा अर्थ की पहचान अव्ययीभाव समास के 100 उदाहरण क्या है |
समास

ऽ समास का शाब्दिक अर्थ है ‘संक्षेपीकरण‘।
ऽ परिभाषा-दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। समास में दो पद होते हैं- (1) पूर्वपद (2) उत्तरपद
ऽ सामासिक शब्द/समस्त पद – समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्त पद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।
ऽ समास विग्रह-सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। जैसे-राजा का पुत्र।
विशेष टिप्पणी: संस्कृत में (द्विगु) तथा (कर्मधारय) को अलग-अलग भेद माना गया है लेकिन हिन्दी में इनकी चर्चा तत्पुरुष समास के अर्न्तगत की जाती है।
पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण
ऽ प्रधान खंड-जिस खंड पर अर्थ का मुख्य बल पड़ता है उसे प्रधान खंड कहते हैं।
ऽ गौण खंड-जिस खंड पर अर्थ का बल नहीं पड़ता है उसे गौण खंड कहते हैं।
प्रमुख समास पद की प्रधानता
(1) अव्ययीभाव समास में
(2) तत्पुरुष समास में
(ख)कर्मधारय समास में
(द) द्विगु समास में
(3) द्वन्द्व समास में
(4) बहुव्रीहि समास में पूर्वपद प्रधान होता है।
उत्तरपद प्रधान होता है।
उत्तरपद प्रधान होता है।
उत्तरपद प्रधान होता है।
दोनों पद प्रधान होता है।
दोनों पद अप्रधान होता है।

(1) अव्ययीभाव समास – जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
टिप्पणी: पहला पद नामपद समास में पहला पद अव्यय या उपसर्ग न होकर संज्ञा या विशेषण शब्द होता है। हिंदी में ऐसे समासों का प्रयोग बहुत होता है।
उदाहरण
समस्त पद अव्यय विग्रह
प्रतिदिन
यथाशक्ति
आमरण
अनुरुप
यथाक्रम
भरपेट प्रति + दिन
यथा + शक्ति
आ + मरण
अनु + रुप
यथा + क्रम
भर + पेट दिन दिन
शक्ति के अनुसार
मरण तक
रुप के योग्य
क्रम के अनुसार
पेटभर
(2) तत्पुरुष समास-जिस समास में पूर्वपद विशेषण होने के गौण तथा उत्तरपद विशेष्य होने के कारण प्रधान होता है वहाँ तत्पुरुष समास होता है।
विशेष-समस्त पद बनते समय विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है तथा इसके विपरीत समास विग्रह के अन्तर्गत विभक्ति चिह्नों ‘से‘, ‘पर‘, ‘को‘ आदि का प्रयोग किया जाता है।
ऽ संस्कृत से हिंदी में कुछ ऐसे समास भी आ गए हैं जिनसे कुछ विशिष्ट नियमों के कारण संस्कृत की विभक्तियों का लोप नहीं होता। जैसे-
ऽ मृत्यु को जीतने वाला- मृत्युंजय (शिव)
ऽ विश्व को भरने वाला – विश्वंभर (ईश्वर)
ऽ अनेक बार दोनों पदों के मध्य आने वाला ‘पूरा शब्द समूह‘ (परसर्ग की तरह लुप्त) हो जाता है, जैसे-
दही + बड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा
उदाहरण-
(1) कर्म- गिरहकट = गिरह को काटने वाला।
स्वर्गवास = स्वर्ग को प्राप्त।
(2) करण- मनचाहा = मन से चाहा।
बिहारी रचित = बिहारी द्वारा रचित।
(3) सम्प्रदान- रसोईघर = रसोई के लिए घर।
मार्गव्यय = मार्ग के लिए व्यय।
(4) अपादान- देशनिकाला = देश से निकाला।
ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त।
(5) सम्प्रदान- गंगाजल = गंगा का जल।
दीनानाथ = दीनों के नाथ।
(6) अधिकरण- नगरवास = नगर में वास।
आपबीती = आप पर बीती।
ऽ नञ् समास-जिस शब्द में ‘न‘ के अर्थ में ‘अ‘ अथवा ‘अन‘ का प्रयोग हो, वह ‘न तत्पुरुष समास‘ कहलाता है।
जैसे- असभ्य = न सभ्य अनन्त = न अन्त
अभाव = न भाव असम्भव = न सम्भव
(क) कर्मधारय समास-जिस सामासिक शब्द का उत्तर पद प्रधान हो और पूर्वपद का उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान उपमेय का संबंध हो, वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे-
विशेषण विशेष्य
नीलकंठ नील + कंठ नीलाकंठ
नीलकमल नील + कमल नीलाकमल
पीतांबर पीत + अंबर पीलावस्त्र
महादेव महा + देव महान देवता
नीलगाय – नीली है जो गाय
परमानन्द – परम है जो आनन्द
नीलकंठ – नीला है जो कंठ
महात्मा – महान है जो आत्मा
सद्धर्म – सत् है जो धर्म
अधपका – आधा है जो पका

ध्यान दें- हिन्दी में कभी-कभी विशेष्य पहले तथा विशेषण बाद में भी आ सकता है। जैसे-
पुरुषोत्तम पुरुष + उत्तम
(संज्ञा) (विशेषण)
ऋषिवर ऋषि +वर (श्रेष्ठ)
(संज्ञा) (विशेषण)
ऽ इस स्थिति में कर्मधारय का ग्राफ उलटा बनेगा।
(ख) द्विगु समास -जिस सामासिक शब्द का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे-
सं० वि० विशेष्य
पंचवटी पंच + वटी पाँच वट
(वृक्षों) वाला स्थान
शताब्दी शत + अब्दी सौ अब्दों (सौ वर्षों) का समूह

उपपद तत्पुरुष: ऐसे समास जिनका बाद वाला मान में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त नहीं होता और प्रत्यय की तर अन्य शब्द के साथ ही आता है; जैसे-कार, चर, ज्ञ आदि शब्द स्वतंत्र रूप से प्रयोग में नहीं आते किन्तु समास शब्दों के निर्माण में सहायक होते हैं। इनमें दिनकर, जलज, जलद स्वर्ग, तटस्थ, नभचर, खग, महीप, स्वस्थ आदि शब्द विशिष्ट अर्थ रखने के कारण बहुव्रीहि भी हैं।
समास पद विग्रह
स्वर्णकार
दिनकर
चर्मकार
नभचर
राजनीतिज्ञ
स्वर्ग
स्वस्थ स्वर्ण का काम करनेवाला
दिन को करनेवाला (बहुव्रीहि)
चर्म का काम करनेवाला
नभ में विचरण करनेवाला
राजनीति को जाननेवाला
स्वयं गमन करना
स्व में स्थित रहनेवाला (बहु.)

लुप्तपद तत्पुरुष– किसी समास में न केवल कारक-चिह्न बल्कि पद के पद ही लुप्त हो जाएँ तो वह लुप्तपद तत्पुरुष कहलाता है, उसका विग्रह इस प्रकार होता है-
समास पद विग्रह
तुलादान
मालगाड़ी
वनमानुष
पर्णशाला
व्यर्थ
जलकुंभी
मधुमक्खी
जलपोत
अश्रुगैस
जलयान तुला से बराबर करके दिया जानेवाला दान
माल ढोने वाली गाड़ी
वन में रहनेवाला मानुष
पर्ण (घास) से बनी हुई शाला
जिसका अर्थ चला गया है
जल में उत्पन्न होनेवाली कुंभी
मधु एकत्र करनेवाली मक्खी
जल पर चलनेवाला पोत
अश्रु लानेवाली गैस
जल पर चलनेवाला यान
3. द्वन्द्व समास – जिस सामासिक शब्द के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और‘, ‘अथवा‘, ‘या‘, ‘एवं‘ लगता है, वह द्वन्द्व समास कहलाता है।
समास पद विग्रह
भाई-बहन गंगा-यमुना
पाप-पुण्य आचार-विचार माँ-बाप
दाल-भात खरा-खोटा आगा-पीछा भाई और बहिन
गंगा और यमुना
पाप और पुण्य
आचार और विचार
माँ और बाप
दाल और भात
खरा या खोटा
आगा और पीछा
द्वंद्व समास के मुख्य रुप से तीन भेद लोप
1. इतरेतर द्वंद और/तथा
2. समाहार द्वंद्व (पदों के अर्थ के अतिरिक्त
उसी प्रकार के अन्य अर्थ का ज्ञान)
3. वैकल्पिक द्वंद्व या/अथवा
4. बहुव्रीहि समास-जिस सामासिक शब्द के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हों, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-
नीलकंठ-नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
चन्द्रमौलि-चन्द्र है सिर पर जिसके अर्थात् शंकर
चक्रपाणि-चक्र है पाणि (हाथ) में जिसके अर्थात् विष्णु

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