JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Geologyworld

अपसारी और अभिसरण सीमा क्या है ? प्लेट की अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अंतर क्या है

प्लेट की अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अंतर क्या है ? अपसारी और अभिसरण सीमा क्या है ? divergent and convergent boundary difference in hindi ?

भू-प्लेट्स की सीमायें (Plate Boundaries) – स्थलमण्डल पर जो प्लेटस विद्यमान हैं उनमें तीन प्रकार की सीमायें होती हैं। जो निम्न प्रकार
(1) अपसारी सीमायें (Divergent Boundaries) :-पृथ्वी के आन्तरिक भाग में संवहन तरंगों की उत्पत्ति के कारण जब दो प्लेटें विपरीत दिशा में गतिशील होती हैं,तो उनका वह किनारा अपसारी सीमा कहलाता है। इन सीमाओं के मध्य बनी दरार से भूगर्भ का तरल मेम्मा ऊपर आता है व दोनों प्लेट्स के मध्य नयी ठोस तली न निर्माण होता है। इसे अपसारी भी कहते है तथा ये किनारे रचनात्मक किनारे भी कहलाते हैं।
(2) अभिसारी सीमायें (Convergent Boundaries) :- जब कभी दो विपरीत दिशाओं से प्लेट्स एक दूसरे की तरफ अग्रसर होती हैं व टकराती हैं वो किनारा अभिसारी किनारा कहलाता १। इस हलचल में भप्लेट का एक किनारा दूसरे से दब जाता हव धीरे-धीरे धंस कर मेन्टल में विलीन हो जाता है। इसी कारण म किनारों को विनाशात्मक किनारा भी कहा जाता है। इस प्रकार घसाव महासागरों के गर्त व खाइयों में होता है। इन स्थानों विघटन क्षेत्र कहा जाता है। भूप्लेट के टकराने पर भूपृष्ठ पर माड़ भी पड़ते हैं। इसी क्रिया से मोड़दार पर्वतों का निर्माण हुआ है। इस हलचल से भूकम्प के झटके व भूसम्यक क्रिया भूपृष्ठ पर होती है। भूकम्प के झटके आते है।
(3) धरावर्ती सीमायें (Trancurrent Boundaries) : प्लेट का वह किनारा जहाँ प्लेट्स एक दूसरे के अगल-बगल में सरकती है परावर्ती किनारा कहलाता है। इस किनारे पर विनाश होता है न ही संरचना इसीलिये इन किनारों को संरक्षात्मक किनारा कहा जाता है। प्लेट्स की सापेक्षिक गति के कारण रूपान्तरण भ्रंश का निर्माण होता है। अमेरिकी प्लेट व पेसिफिक प्लेट के मध्य इसी प्रकार सान ऐन्ड्रियास भ्रंश का निर्माण हुआ है। इस किनारे पर भूकम्प क्षेत्र पाये जाते हैं।

प्लेटों का वितरण (Distribution of Plates)

प्लेट स्थलमण्डल का एक बड़ा भाग होती है जिसमें ऊर्ध्वाधर रूप में ठोस ऊपरी मैण्टिल तथा तथा महाद्वीप भूपृष्ठ सम्मिलित किया जाता है जो दुर्बलतामण्डल पर तैरती हुई स्वतन्त्र रूप् से दूसरी प्लेटों की ओर संचलित होती रहती है। 1968 में प्लेटों का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया है।
(अ) बड़ी प्लेट (Major Plates):
(1) अफ्रीकन प्लेट, (2) अमेरिकन प्लेट, (3) अण्टार्कटिक प्लेटे, (4) आस्ट्रेलियन प्लेट, (5) यूरोशियन प्लेट तथा (6) प्रशांत प्लेट।

प्लेटों का संचलन (Movement of Plates)
पृथ्वी की सभी स्थलमण्डलीय प्लेटों में संचलन होता रहता है। जिसमें इनकी नियमित दिशायें होती है। प्लेट विवर्तनिकी शब्द का प्रयोग यहां गति के सन्दर्भ में किया गया है। पृथ्वी को अधिकांश दृश्यभूमि तथा भूआकारों के लिए प्लेट संचलन प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी हैं। प्लेटों के संचलन का दिसा के बारे में अनेक अध्ययन किये जा चुके हैं इससे स्पष्ट हुआ है कि अफ्रीकन प्लेट पूर्व की ओर संचलित हो रहो है, तथा दक्षिणी अमेरिकी प्लेट पश्चिम की ओर प्रवाहित है। इनके परस्पर विपरीत दिशा में प्रवाहित होने से मध्य अटलांटिक कटक के सहारे नवीन भू-पृष्ठ का सृजन हो रहा है। महाद्वीपीय प्लेटों की संचलन की गति 2 से.मी. प्रतिवर्ष है जबकि महासागरीय प्लेटों की औसत गति 5 सेमी. प्रति वर्ष है। विश्व में ग्रीनलैण्ड गौण प्लेट सर्वाधिक गति (20 सेमी. प्रति वर्ष) से संचलित हो रही है। भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष 0.6 से 1.0 सेमी, की गति से उत्तर पूर्व में प्रवाहित हो रही है।
प्लेट की सीमायें (Plate Boundaries)
प्लेटों का संचलन द्वारा पृथ्वी पर भूपष्ठीय पदार्थों का पुनविर्तरण होने के बाद महाद्वीपो तथा महसागरों की स्थिति, आकार तथा आकृति निर्धारित होती है। स्थलरूपों का परिवर्तन सर्वाधिक तथा प्लेट की सीमाओं पर दृष्टिगत होता है जहां भूगर्भिक अस्थिरता सर्वाधिक होती है। इस सन्दर्भ में विभिन्न प्लेट सीमाओं के सहारे स्थित भूकम्प तथा ज्वालामुखी क्षेत्रों का अस्तित्व स्पष्ट होता है। प्लेटों की सीमाएं सीधी या वक्राकार होती है तथा एक प्लेट की गति एवं आकृति में दसरी से अनेक ज्यामितिय भिन्नतायें भी मिलती है। प्लेटों के मुख्यतः तीन प्रकार के किनारे होते हैं।
(1) अपसरित प्लेट किनारे – जब दो प्लेट परस्पर विपरीत दिशा में संचलन करके एक दूसरी से दर जाती हैं तो इन्हें अपसरित प्लेट सीमाएँ कहते हैं। अपसरित प्लेट किनारे मध्य महासागरीय कटक के सहारे पाये जाते हैं जहाँ उष्ण पदार्थ मेण्टिल से ऊपर आकार रिक्त स्थान भरता है अर्थात् नवीन पृष्ठ की रचना करता है जिस कारण इन्हें रचनात्मक प्लेट किनारे भी कहते हैं।
अपसरित प्लेट किनारे तनाव पूर्ण प्रकृति के होते हैं जहाँ पतली भूपर्पटी में तनाव होने से भ्रंश घाटे के रूप में खुल जाती है। कुछ भूगोलवेत्ताओं के अनुसार यह प्रक्रिया महाद्वीपीय भूपर्पटी को भी प्रभावित करती है। जब किसी ऐसी प्लेट पर तनाव उत्पन्न होता है जिसकी सियाल पर सीमा परत से संचलन करके पृथक है तो वहाँ भ्रंश घाटी बनती है। पूर्वी अफ्रीकी का रिफ्ट घाटी ऐसे ही बनी थी इस सीमा के सहारे भविष्य में भ्रंशन होने की संभावना बताई गई है। यहाँ भूपर्पटी काफी पतली है। लाल सागर इस प्रक्रिया में अधिक पर्वगामी अवस्था को प्रदर्शित करता है जहाँ अरेबियन प्लेट अफ्रीकन प्लेट से पृथक होती है तथा इन दोनों के मध्य बेसाल्ट तलीय सागरीय पाया जाता है तथा समय के साथ आगे चलकर लाल सागर विस्तृत होगा तथा एक नवीन महासागर बन जायेगा। स्पष्ट है कि ‘‘सागर नितल प्रसरण‘‘ नाम भूगर्भिक शब्दावली की जगह ‘‘भूपटलीय प्रसरण‘‘ नामक भौगोलिक शब्दावली आसानी से प्रयुक्त होगी। यद्यपि आज भी यही माना जा रहा है कि कोई सागरीय नितल का प्रसरण नहीं हो रहा है यह तो पोजिया नामक वृहत् महाद्वीप में प्रथम बार भ्रंशन-क्रिया के दौरान बनी रिफ्ट घाटी है।
(2) विनाशात्मक प्लेट किनारे :- जब दो प्लेट परस्पर एक दूसरे की ओर संचलित होकर अभिसारित होती हैं तथा टकराती हैं तो इन्हें विनाशात्मक किनारे कहते हैं। जिस प्रकार अधिकांश रचनात्मक किनारे महासागरीय कटकों के सहारे पाये जाते हैं, वैसे ही अधिकांश विनाशात्मक किनारे गहन महासागरीय खाइयों के सहारे मिलते हैं। महासागरीय खाइयों पर परस्पर जब प्लेटें मिलती है तो किनारों के सहारे एक प्लेट नीचे की ओर 45° के कोण पर डूब जाती है। इस प्रकार दो प्लेटों के अभिसरण से टकराने से भूसतह का विनाश होता है जिस कारण इसे विनाशात्मक प्लेट किनारे कहते हैं।
विनाशात्मक प्लेटों के पुनः तीन भाग किए जाते हैं:
(अ) सागरीय- महाद्वीपीय प्लेट का अभिसरण – इनमें महासागरीय प्लेट का महाद्वीपीय प्लेट के नीचे अद्योगमन होता है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण दक्षिणी अमेरीकी प्लेट का पश्चिमी किनारा है जहां नज्का सागरीय प्लेट दक्षिणी अमेरीकी महाद्वीपीय प्लेट के नीचे अधोगमित हो रही है। इस संघदन क्षेत्र में भूपृष्ठ काफी गहराई तक घुस गया है तथा तट से संलग्न बाहरी सागरीय खाई बन्द हो गई है। इसके कछ किमी. पूर्व में महाद्वीपीय शैलों का विशाल एण्डीज पर्वत में शिकन हो गया है, जहाँ नियमित वलन कमजोर पड़ गये है।
(ब) सागरीय-सागरीय प्लेट अभिसरण – इनमें दो सागरीय प्लेट सीमाओं का अभिसरण होता है। जब एक सागरीय प्लेट दूसरी सागरीय प्लेट टकराती हैं तो अधोगमन या क्षेपण होने से सागरीय का निर्माण होता है। इन क्षेत्रों के सहारे ज्वालामुखी प्रायः सागर तल से ऊपर निकल आती है। उत्तरी तथा पश्चिमी प्रशांत महासागर में प्रंशात, उत्तरी अमेरीकी, यूरेशियन, फिलीपिन्स तथा भारतीय-आस्टेलियन प्लेट के संघट्टन क्षेत्र में एक द्विपीय चाप तथा द्विपीय समूहों का निर्माण हुआ है।
(स) महाद्वीपीय प्लेट का महाद्वीपीय प्लेट से अभिसरण – इस प्रकार के अभिसरण में दो महाद्वीपीय प्लेटों परस्पर टकराती है इसका सर्वोत्तम उदाहरण यूरेशियन प्लेट तथा भारतीय-आस्ट्रेलियन के मध्य हो अभिसरण है। यूरेशियन प्लेट दक्षिण की ओर संचलित हो रही है, तथा भारतीय उपमहाद्वीप उत्तर की ओर संचालित हो रही है। ऐसे महाद्वीपीय अभिसरण से ठोस विरूपण तथा विशाल सियाल संहति का निर्माण होता है एक महाद्वीपीय भाग दूसरे पर अभिभूत हो जाता है।
(3) संरक्षणात्मक प्लेट किनारे – ये ऐसे किनारे होते हैं जहाँ प्लेट न तो नवीन सतही क्षेत्रों की रचना करती है तथा न ही भूतल का ह्रास होता है क्योंकि इनमें पार्शि्वक प्लेट संपर्क होता है। इस क्रिया द्वारा पाश्र्विक या रूपांतर भ्रंश बनते हैं। इस प्रकार न तो भपृष्ठ का सृजन होता है तथा न हो विनाश। प्लेट किनारों के परस्पर खिसकने से भूकम्प सभावना यद्यपि अवश्य बनती है। प्रशांत प्लेट की पूर्वी सीमा के सहारे पाश्र्विक या रूपांतर भ्रंश व्यवस्था मिलती है। केलिफोर्निया का सान एण्ड्रीयाज भ्रंश इसका प्रसिद्ध उदाहरण है।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

2 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now