WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

पंडित रविशंकर किस वाद्ययंत्र के प्रसिद्ध वादक थे ? पंडित रविशंकर कौन सा वाद्य यंत्र बजाते थे का नाम संगीत के किस राज्य से जुड़ा है

पंडित रविशंकर कौन सा वाद्य यंत्र बजाते थे का नाम संगीत के किस राज्य से जुड़ा है पंडित रविशंकर किस वाद्ययंत्र के प्रसिद्ध वादक थे ?

पंडित रवि शंकर
वह एक अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सितार के उस्ताद थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में ख्याति दिलाने में उनका हाथ रहा है। उन्होंने वर्ष 1967 में लॉस एंजलिस में ‘क्यूनारा‘ स्कूल ऑफ म्युजिक की स्थापना की। उनका संगीत वादन विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध संगीत गोष्ठी भवनों में हो चुका है, तथा उन्हें कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मान, यथा अंतर्राष्ट्रीय संगीत वेंसको सम्मान, मैग्सेसे पुरस्कार, इत्यादि प्राप्त हो चुके हैं। उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया था तथा प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी का उन्हें फेलो बनाया गया था।
1949-55 के दौरान वह आकाशवाणी के संगीत निदेशक भी रहे थे, तथा ‘मेरा जीवन मेरा संगीत‘ शीर्षक से अपनी आत्मकथा भी लिखी है। उनके तीन बच्चे हैं, तथा उनकी दो बेटियाँ नोरा जोंस और अनुष्का शंकर अपने संगीत क्षेत्र की विख्यात कलाकार हैं।

मोहम्मद रफी
उनका जन्म पंजाब में हुआ था, तथा उनकी शानदार आवाज उनकी जड़ों का प्रतिबिम्ब प्रतीत होती है। उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी, किन्तु बॉलीवुड के साथ उनके संबंधों ने उन्हें लोकप्रियता प्रदान की। उन्होंने आकाशवाणी के लिए ढेरो गीत गाये, और उन्हें प्रथम व्यावसायिक ब्रेक फिल्म ‘लैला मजनू‘ से प्राप्त हुआ। उन्होंने 26, 000 से अधिक गीत गाये। भारतीय सिनेमा को उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। कई बार उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

शिवमणि
उनका जन्म आनंदन शिवमणि के रूप में हुआ, तथा वे भारत के विख्यात तालवादक हैं। उन्हें कई वाद्य-यंत्र, यथा ढोलक, डारबुका, उडुकाई, ऑक्टोबन तथा कांजिरा बजाने के लिए जाना जाता है। उन्हें ए.आर.रहमान की मंडली से सम्बद्ध होने के कारण प्रसिद्धि प्राप्त हुई। उन्होंने कर्नाटक संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त किया है, तथा कई अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों के साथ वादन किया है। उन्हें वर्ष 2009 में तमिल नाडू सरकार द्वारा कलाईमामणि सम्मान प्रदान किया गया था।

डॉ. भूपेन हजारिका
वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति तथा एक गीतकार, गायक, कवि, फिल्म-निर्माता, तथा सबसे बढ़कर एक उत्कृष्ट संगीतकार थे। वे असम राज्य के रहने वाले थे तथा उन्होंने जनता की आवाज को मुख्यधारा में सम्मिलित किया। वह आई.पी. टी.ए. या भारतीय लोक नाट्य संगठन से सम्बन्धित थे तथा उन्होंने इसके लिए नाटकों की रचना भी की।
उन्हें कई सम्मान, यथा संगीत नाटक अकादमी सम्मान तथा अध्येतावृत्ति भी प्राप्त हुए थे। उन्होंने पद्मश्री तथा पद्म-भूषण पुरस्कार भी प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें पद्म विभूषण प्रदान किया गया। उनकी विज्ञ प्रकृति के कारण भारत सरकार ने उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया।

लालगुड़ी जयरमा अय्यर
ये एक उत्कृष्ट वायलिन वादक हैं जिन्होंने कार्नाटक संगीत शैली का प्रशिक्षण लिया है। वे एक प्रतिभावान गायक तथा संगीत-रचनाकार भी हैं। उन्होंने प्रसिद्ध संगीत आधारित फिल्म शृंगारमः प्यार का नृत्य के लिए संगीत भी दिया है। उन्होंने अपने विस्तृत थिल्लानाज तथा वर्णम रचनाओं के कारण ख्याति प्राप्त की। उन्होंने कई मुख्य पुरस्कार, यथा सर्वोत्तम संगीत निदेशक के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, जीते हैं। उन्हें पद्म श्री सम्मान भी प्राप्त हुआ है तथा बाद में भारत सरकार ने वर्ष 2001 में उन्हें पद्म भूषण भी प्रदान किया। वे संगीत नाटक अकादमी के फेलो भी थे।

उस्ताद विलायत खां
वे हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक प्रमुख हस्ती थे, तथा उनका संबंध इटावा घराने से था। वह भारत के सर्वोत्तम सितार वादकों में से एक थे। उन्हें सितार वादन की एक नयी शैली प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है जिसे उनके नाम पर बाद में विलायत खानी बाज कहा गया। यद्यपि उनका अधिकाँश वादन संगीत समारोहों में हुआ तथा लम्बी अवधि तक वह आकाशवाणी से जुड़े रहे, उन्होंने बहुत सारी फिल्मों के लिए भी संगीत की रचना की थी।
उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कृतियों में सत्यजित रे की जलसागर तथा आइवरी मर्चेट की गुरु सम्मिलित हैं। उन्हें कई मुख्य राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए, किन्तु वह वर्ष 1964 में पद्म श्री सम्मान को ठुकराने के लिए प्रसिद्ध हुए। उन्हें पद्म भूषण तथा वर्ष 2000 में पद्म विभूषण प्रदान किया गया। भारतीय राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हाथों उन्हें आफताब-ए-सितार प्रदान किया गया।

सेम्मानगुड़ी आर. श्रीनिवास अय्यर
वे बीसवीं शताब्दी में कर्नाटक संगीत के सर्वाधिक ख्याति प्राप्त गायकों में से एक हैं। उन्होंने अल्पायु में अपनी संगीत यात्रा का आरम्भ किया तथा अपनी प्रभावशाली आवाज के कारण ख्याति पाई । वे संगीत अकादमी के द्वारा संगीत कलानिधि सम्मान प्राप्त करने वाले सबसे कम आयु के व्यक्ति बने । उनके सभी शिष्यों के बीच उनकी ख्याति ‘सेम्मानगुड़ी मामा‘ के रूप में है। अपने कार्य में उनकी पैठ के कारण उन्हें आधुनिक कर्नाटक संगीत का पितामह या दादाजी कहा गया है। वह कृतियों, रागों के कई प्रकार का गायन कर सकते थे, तथा मंच पर ही उनकी प्रकृति में बदलाव करके श्रोताओं को हर्ष-विभोर कर देते थे। उन्हें भारत सरकार से कई प्रसिद्ध सम्मान, यथा पद्म भूषण तथा पद्म विभूषण प्राप्त हुए हैं। मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा उन्हें ‘कालिदास सम्मान‘ भी प्रदान किया गया है।

फिल्म और टेलिविजन
दादासाहब फाल्के
‘भारतीय फिल्म उद्योग के जनक‘ के रूप में लोकप्रिय, दादासाहेब फाल्के के बारे कहा जाता है कि उन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग की आधारशिला रखी थी। वे न केवल एक कुशल स्वप्नदर्शी थे, बल्कि उन्होंने 175 से अधिक फिल्में बनाईं। उनकी सर्वाधिक ख्याति प्राप्त कृतियों में ‘राजा हरिश्चंद्र‘, तथा ‘सत्यवान सावित्री‘ आती हैं, किन्तु सबसे बड़ी व्यापारिक सफलता ‘लंका दहन‘ से मिली जिसे भारत की प्रथम सबसे हिट फिल्म माना जाता है। उनके जीवन काल में ही लोग उनका इतना सम्मान करते थे कि उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके सम्मान में कई पुरस्कार दिए जाने लगे, जिसमें सर्वाधिक प्रसिद्ध ‘दादासाहेब फाल्के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड‘ है।

सत्यजीत रे
वे एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक थे जिन्होंने निर्देशन में हाथ आजमाने से पर्व एक व्यावसायिक कलाकार के रूप में कार्यारम्भ किया तथा इसे अपने करियर के रूप में स्थापित किया। उन्हें ‘पाथेर पांचाली‘ के निर्देशक के रूप में जाना जाता है। इससे उन्हें आदमी के रोजमर्रा के संघर्षों के वास्तविक चित्रण के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। एक अन्य कृति थी ‘शतरंज के खिलाड़ी‘ जिसे समानान्तर सिनेमा प्रेमियों के लिए एक अनमोल रत्न समझा जाता है।
उन्हें ‘घरे-बायरे‘ के लिए भी प्रसिद्धि मिली जिसमे नारियों तथा इस दुनिया में उनके स्थान को उजागर किया गया है। उन्हें कई सम्मान, यथा वर्ष 1992 में भारत-रत्न तथा दादासाहेब लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी प्राप्त हुऐं।
उन्हें कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, यथा फ्रांस सरकार के द्वारा कला के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द लीजन ऑफ ऑनर‘, प्रदान किए गए। उन्हें अकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स के द्वारा ‘लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए विशेष ऑस्कर सम्मान‘ प्रदान किया गया।

श्याम बेनेगल
उनका संबंध मूलतः विज्ञापन की दुनिया से रहा है तथा उन्होंने कुछ अत्यंत लोकप्रिय विज्ञापनों का निर्माण किया। मुख्य धारा की फिल्मों के साथ उनका पहला नाता उनकी प्रथम कृति ‘अंकुर‘ के साथ बना जिसमें शबाना आजमी मुख्य भूमिका में थीं। कुछ अन्य कृतियों में ‘निशांत‘, ‘मंथन‘, ‘जूनून‘, ‘कलयुग‘, ‘यात्रा‘ आदि सम्मिलित हैं। उनकी सभी कृतियों तथा वृत्तचित्रों के लिए उन्हें अपने आलोचकों की भारी प्रशंसा मिली, जिसमे से एक उदाहरण ‘भारत एक खोज‘ है। यह जवाहर लाल नेहरू की प्रसिद्ध पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया‘ पर आधारित है। एक उत्कृष्ट निर्माता तथा निर्देशक होने के अतिरिक्त, बेनेगल एक प्रवीण शिक्षक भी हैं, जिन्होंने पुणे के फिल्म और टेलिविजन संस्थान में अध्यापन भी किया।

गुलजार
गुलजार को किसी विशिष्ट वर्ग तक सीमित रखना कठिन है, चूँकि वे केवल एक गीतकार ही नहीं हैं बल्कि एक निर्देशक, एक कवि तथा एक स्क्रिप्ट-लेखक भी हैं। बंटवारे के बाद गुलजार दिल्ली आये तथा निर्देशक बिमल रॉय के सहायक के रूप में काम करना आरम्भ किया। तत्पश्चात, वे गीत लेखन आरंभ किया तथा कई मर्म-स्पर्शी गीत लिखे। ‘दिल से‘ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। स्लमडॉग मिलियनेयर के गीत ‘जय हो‘ के लिए उन्हें वर्ष 2009 में अकेडमी सम्मान (ऑस्कर) भी मिला। उनकी प्रसिद्ध तथा आलोचकों द्वारा प्रशंसित फिल्में ‘माचिस‘ और ‘हु तू तू‘ रही है। वर्ष 2004 में उन्हें पद्म भूषण प्रदान किया गया, तथा उन्हें वर्ष 2014 में दादासाहेब फाल्के सम्मान से नवाजा गया।