Valence bond theory (VBT) की कमियां drawbacks in hindi

VBT (Valence bond theory) की कमियां :

  1. यह सिद्धांत पूर्व अनुमानों पर आधारित है
  2. इस सिद्धांत में धातु आयन की प्रकृति पर अधिक ध्यान दिया जाता है जब की  लिगेंड की प्रकृति पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता
  3. यह संकुल यौगिकों के रंग तथा स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं करता
  4. यह सिद्धांत संकुल यौगिकों के उष्मागतिकी स्थायित्व के बारे में नहीं बताता
  5. उपसहसंयोजन संख्या 4 वाले योगीको की ज्यामिति को स्पष्ट नहीं किया जा सकता
  6. प्रबल क्षेत्र लिगेंड तथा दुर्बल क्षेत्र लिगेंड के बारे में नहीं बताया गया

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत (Crystal field theory)(CFT)

इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है

  • इस सिद्धांत में धातु को आयन तथा लिगेंड को बिंदु आवेश माना गया है
  • धातू व लिगेंड के मध्य वैद्युत समांगी या आयनिक बंध होता है
  • विलगित धातु आयन में पांच d  कक्षक dxy , dyz , dzx, dx2-y2, dz2 समान उर्जा के होते हैं इन्हें संभ्रंश कक्षक कहते हैं, इनमें से dxy , dyz , dzx  की पालियों  अक्ष के मध्य होते हैं इन्हें t2g कक्षक कहते हैं ,  जबकि की dx2-y2, dz2 पालिया अक्ष पर होती हैं इन्हें egकक्षक कहते हैं | , लिगेंड के पास में आने से पांच d कक्षक की  समभ्रंशता समाप्त हो जाती है अर्थार्थ d कक्षक दो भागों में विभक्त हो जाते हैं इसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहते हैं ,  क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (Crystal field spilit) तथा उसके प्रभाव के अध्ययन को CFT कहते हैं |

अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन (Crystal area lamination in octetal package compounds):

केंद्रीय धातु परमाणु में समान ऊर्जा के पांच d कक्षको को समभ्रंश  कक्षक कहते हैं ,  लिगेंड के पास में आने से यह दो भागों में विभक्त हो जाते हैं इसे क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहते हैं ,  5 d  कक्षको में से 3 कक्षको की ऊर्जा कम हो जाती है अर्थार्थ t2g  कक्षको की ऊर्जा कम हो जाती है जबकि दो eg d कक्षको की ऊर्जा अधिक हो जाती है |

t2g  व eg  कक्षको के मध्य ऊर्जा के अंतर को क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा Crystal area spilit energy (CFSE) कहते हैं , पानी निम्न कारक पर निर्भर करता है

  1. धातु आयन की प्रकृति
  2. संकुल यौगिक की ज्यामिति
  3. लिगेंड की प्रकृति
  4. धातु आयन पर आवेश