2. तापीय कायान्तरण (thermal or contact metamorphism ) : तापीय कायान्तरण के अन्तर्गत उच्च तापीय कायान्तरण , संस्पर्श कायान्तरण , भ्रज्जनी कायान्तरण तथा ऊष्मावाष्मीय कायान्तरण सम्मिलित है। उच्च तापीय कायान्तरण से यहाँ तात्पर्य ऐसे उच्चतम सामान्य ऊष्मा के प्रभाव से है जिसमे वास्तविक गलन न हो और कायान्तरण शुष्क वातावरण में सम्पन्न हो। संस्पर्श कायान्तरण उससे निम्न तापमान पर होता है तथा इसमें शैल आद्रता एवं मैग्मीय प्रसंगों से सहयोग मिलता है। इन कायान्तरनो का प्रभाव तापक्रम ठंडा होने की गति , मैग्मीय अन्तर्वेध के प्रकार तथा कायान्तरित होने वाले मूल शैलो के संघटन और घठन पर निर्भर है।
भ्रज्जनी कायान्तरण द्वारा डाइक के पाशर्वो में दहन , आद्रवण होता है। हार्नस्टोन , निकषाशम पोर्सेलेनाईट तथा नोवाकुलाईट इत्यादि का निर्माण भ्रज्जनी कायान्तरण का ही परिणाम है।
3. ऊष्मागतिक कायान्तरण (dynamo metamorphism ) : अत्यधिक ताप और दिष्ट बल के एक साथ कार्य करने पर उष्मागतिक कायान्तरण होता है। दिष्ट बल विभंजन , विदारण और बेल्हन के प्रक्रम संखंडन , बिना विदारण के विदलन और विसर्पण तलों में दिर्घित और प्रवाहित होने प्रक्रम प्लैस्टिक विरूपण , तथा अधिकतम दाब की दिशा में पूर्व निर्मित खनिजो के दिर्घित होने एवं अनुकूल विदलन और विसर्पण वाले खनिजो के नव निर्माण के प्रक्रम ब्लास्टि विरूपण द्वारा शैलो को प्रभावित करता है। ऊष्मा शैलों को पुन: क्रिस्टलित करने का प्रयास करती है। कुछ स्थितियों में दिष्ट बल द्वारा संचलन और पुन: क्रिस्टलन साथ साथ होता है और इसलिए क्वार्टज़ और बायोटाइट के सर्पिल विन्यास में परिबद्ध गार्नेट की हिमकंदुक संरचना का विकास होता है। मृण्मय शैलो का उष्मागतिक कायान्तरण पर पुन: क्रिस्टलन होता है तथा प्राथमिक अवस्था में फाइलाइट शैल का निर्माण होता है और भी अधिक कायान्तरण पर वे अभ्रक शिष्ट में परिवर्तित हो जाते है। कायान्तरण की उग्रता की वृद्धि के साथ शिष्टाम और अंतत: नाइसी संरचना विकसित होती है। मृण्मय शैलों के उष्मागतिक कायान्तरण से उत्पन्न समस्त शैल प्ररूपो के लिए सामूहिकत: मृदास्मिक शिस्ट और मृदास्मिक नाइस शब्दों का प्रयोग होता है।
4. वितलीय कायान्तरण (plutonic metamorphism) : निम्न मण्डल में एक समान दाब और अत्यधिक ऊष्मा पर होने वाले कायान्तरण को वितलीय कायान्तरण कहते है। इस प्रकार के कायान्तरण में दिष्ट दाब के अनुपस्थित होने के कारण समान्तर संरचनाएं विकसित नहीं होती , इनके स्थान पर समकणीय , समविमीय कणिकामय संरचना उत्पन्न होती है। वितलीय कायांतरण में दाब और ताप की स्थितियाँ कम विशिष्ट एवं अधिक आपेक्षिक घनत्व वाले समबल खनिजो के विकास के लिए अनुकूल है। मृण्मय बालुकामय संघटन वाले शैलो के वितलीय कायान्तरण के कार्डीएराइट सिलीमैनाईट और गार्नेट नाइस तथा अल्पसिलिक आग्नेय शैलो के कायान्तरण से पाईराक्सिन नाइस , एक्लोजाईट एवं गार्नेट एम्फीबोलाइट शैल उत्पन्न होते है। क्वार्टज़ फेल्सपारीय शैलो के कायान्तरण से कणिकाशम एवं लैपटाइट शैल निर्मित होते है। चार्नोकाईट जैसे कुछ अन्य शैलो के लक्षण उनके वितलीय कायान्तरण से उत्पत्ति के धोतक है।