मेल्डी का प्रयोग (melde’s  experiments in hindi) , अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य विन्यास

(melde’s  experiments in hindi) मेल्डी का प्रयोग : मेल्डी के इस प्रयोग को set up करने के लिए एक पतली रस्सी लेते है और इस रस्सी के एक तरफ स्वरित्र बाँध देते है और रस्सी के दूसरे सिरे को एक चिकनी (घर्षण रहित ) घिरनी से गुजारते हुए इस पर भार लटका देते है , जितना ज्यादा भार लटकाते है उतना ही ज्यादा रस्सी में तनाव उत्पन्न होता है। इस प्रयोग में डोरी या रस्सी में उत्पन्न तनाव का मान रस्सी के दूसरी तरफ लटके भार द्वारा बढाया या कम किया जा सकता है। तथा कम्पन्न वाली डोरी की लम्बाई का मान भी स्वरित्र से घिरनी तक की डोरी की लम्बाई को बढ़ाकर समायोजित किया जा सकता है।
स्वरित्र को डोरी से बाँधकर कंपनीत करने की दो व्यवस्था होती है जिन्हें आगे विस्तार से समझाया गया है –
1. अनुप्रस्थ विन्यास (transverse configuration) :  अनुप्रस्थ व्यवस्था में स्वरित्र को चित्रानुसार रस्सी के एक छोर से जोड़ते है , जब स्वरित्र कम्पन्न उत्पन्न करता है तो डोरी के लम्बवत भी कम्पन्न उत्पन्न हो जाते है , यहाँ स्वरित्र में उत्पन्न कम्पन्न और डोरी में उत्पन्न कम्पन्नो की आवृति का मान समान होता है , यहाँ स्वरित्र से शुरू हो रही कम्पन्न और दूसरे छोर से टकराकर आ रही तरंगे आपस में अध्यारोपित हो जाती है , और यदि डोरी की लम्बाई और तनाव को सही से समंजन किया जाए तो डोरी में अनुप्रस्थ तरंगे उत्पन्न होती है।

यदि डोरी पर m भार लटका हुआ है , डोरी में तनाव T उत्पन्न हो रहा है , डोरी की लम्बाई l है और लूपों की संख्या p है तो स्वरित्र की आवृति n होगी

2. अनुदैर्ध्य विन्यास (longitudinal configuration) : यदि स्वरित्र को ऊपर वाली स्थिति से 90 डिग्री घुमा दिया जाए तो यह चित्रानुसार प्राप्त होगी जिसे अनुदैर्ध्य विन्यास कहते है।
जब इस स्थिति में स्वरित्र कम्पन्न करता है तो डोरी में उत्पन्न कम्पन्न स्वरित्र के सामानांतर होगा , इस स्थिति में स्वरित्र में उत्पन्न कम्पन्न की आवृति का मान डोरी में उत्पन्न तरंग आवृति के दोगुने के बराबर होती है।
यदि डोरी में उत्पन्न कम्पन्न की आवृति n है तो

यदि N स्वरित्र में उत्पन्न आवृति है तो इसे निम्न द्वारा व्यक्त किया जाता है –