ऊष्मा का चालन heat conduction in hindi

(heat conduction in hindi) ऊष्मा का चालन  : ऊष्मा संचरण की यह पहली विधि है , जब किसी वस्तु के अलग अलग भाग पर ऊष्मा या ताप का मान अलग अलग होता है तो इस ताप (ऊष्मा) में अंतर के कारण वस्तु के कण उच्च ताप (ऊष्मा) से निम्न ताप की ओर स्थित कणों को अपनी उर्जा स्थानांतरित कर देता है , इस प्रकार कण अपनी स्थिति पर बने रहते हुए ही आगे से आगे ऊर्जा का स्थानान्तरण करते है , इस प्रकार ऊष्मा के संचरण को चालन विधि कहते है जिसमे कण अपनी स्थिति में बने रहते है और ऊष्मा का संचरण भी करते रहते है।

सामान्यतया इस प्रकार का संचरण अर्थात चालन विधि द्वारा ऊष्मा का संचरण ठोसों में देखा जा सकता है लेकिन यह गैस और द्रव में भी पाया जाता है , जब गैस या द्रव को ऊपर से गरम किया जाता है तो इनके कण ऊपर से निचे की तरफ ऊष्मा का संचरण चालन विधि द्वारा करते है।

जब एक धातु की छड को गर्म किया जाता है जिससे माना की छड का एक सिरा दुसरे की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाता है , ऐसी स्थिति में अधिक गर्म हिस्से पर धातु के कण बहुत अधिक आयाम से कम्पन्न करने लग जाते है और कम्पन्न के कारण वे ठन्डे सिरे की ओर स्थित धातु के कणों से टकराते है और टकराव के दौरान वे अपनी उष्मा उन कणों को दे देते है जिससे ऊष्मा उच्च ताप से निम्न ताप वाले सिरे की ओर संचरित होती है इसे भी चालन विधि ही कहते है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की ऊष्मा संचरण विधि के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है और इस विधि में ऊष्मा का संचरण बहुत ही धीरे वेग से होता है।

जब दो बिन्दुओ के मध्य ताप या ऊष्मा का अंतर पाया जाता है जो चालन विधि द्वारा ऊष्मा का संचरण तब तक होता रहेगा जब तक की दोनों बिन्दुओं पर ऊष्मा का मान समान न हो जाए।

सबसे अधिक ऊष्मा का चालन ठोसो में पाया जाता है उसके बाद द्रवों में और सबसे कम ऊष्मा का चालन विधि से संचरण गैसों में सबसे कम होता है।

यही कारण है की धातु ऊष्मा की सबसे अधिक चालक होती है अर्थात ऊष्मा का चालन अधिक और आसानी से होता है।

अधातु पदार्थो में ऊष्मा का चालन बहुत कम पाया जाता है।