(crystal field theory in hindi) CFT क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत , क्रिस्टल फील्ड थ्योरी , लिमिटेशन , नोट्स हिंदी लैंग्वेज : –
संक्रमण धातु संकुल यौगिकों में धातु आयन एवं लेगेंड के मध्य बने बंध की प्रकृति को समझाने के लिए निम्न सिद्धांत काम आते है –
1. VBT सिद्धांत (संयोजकता बंध सिद्धान्त)
2. CFT सिद्धांत (क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त) (crystal field theory in hindi)
3. MOT (अणु कक्षक सिद्धांत)
4. LFT (लिगेंड क्षेत्र सिद्धान्त )
VBT सिद्धांत की सीमाएं
VBT में धातु आयन को अधिक महत्व दिया गया जबकि लिगेंड के महत्व की ओर उचित ध्यान नहीं दिया गया।
यह सिद्धांत बाह्य कक्षक संकुल यौगिक तथा आन्तरिक कक्षक संकुल यौगिक के बनने की व्याख्या नहीं कर सका।
इस सिद्धांत के द्वारा संकुल यौगिको के रंग एवं स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकती है।
यह सिद्धांत विकृत संरचना वाले संकुल यौगिकों की संरचना की व्याख्या नहीं कर सका।
यह सिद्धान्त संकुल यौगिको की ऊष्मा गतिकी स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर सका।
यह सिद्धान्त विभिन्न संकुल यौगिकों के चुम्बकीय गुणों में ताप के साथ परिवर्तन को नहीं समझा सका।
:- Co(II) , Cu(II) दोनों के संकुलों की ज्यामिति को समझाने के लिए VBT के अनुसार यह व्याख्या दी जाती है की एक अयुग्मित electron उच्च उर्जा के 4p या 4d कक्षकों में उत्तेजित हो जाता है।
प्रश्न : अष्ट फलकीय प्रबल क्षेत्र CO(II) संकुल आसानी से CO(III) संकुल में ऑक्सीकृत हो जाते है क्यों ?
उत्तर : CO(II) का विन्यास 3d होने के कारण इसमें 6 electrons तो 3d कक्षकों में आ जाते है एवं 7 वा electron उच्च उर्जा के 4p या 4d कक्षकों में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
CO(II) का यह electron नाभिक से बहुत दूर चले जाने के कारण इस पर नाभिकीय आकर्षण बल बहुत कम हो जाता है। इस कारण CO(II) electron त्यागकर CO(III) में ऑक्सीकृत हो जाते है
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत (crystal field theory in hindi) CFT :
इस सिद्धान्त को मुख्य रूप से अधिक क्रिस्टलों पर लागू किया गया था। इस कारण इसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत कहते है।
इसके मुख्य बिन्दु निम्न है –
यह सिद्धान्त लिगेंड को ऋण बिन्दु आवेश मानता है।
इसके अनुसार धातु आयन एवं लिगेंड में मध्य बने बंध की प्रकृति आयनिक होती है।
एक मुक्त धातु आयन के ओर्थो d कक्षक समान उर्जा के होते है लेकिन संकुल यौगिक के निर्माण के समय ज्यो ही लिगेंड धातु आयन की ओर आते है तो इन कक्षकों की उर्जा समान नहीं रह पाती। और ये भिन्न उर्जा के कक्षकों में विभाजित (split) हो जाते है।