विद्युत आवेश संरक्षण (conservation of electric charge) : आवेश के इस गुणधर्म के अनुसार आवेश को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।
किसी भी वस्तु पर उपस्थित कुल आवेश संरक्षित रहता है , किन्ही भी प्रक्रिया या विधियों द्वारा कुल आवेश को परिवर्तित अर्थात कम या अधिक नहीं किया जा सकता है।
आवेश को केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर स्थान्तरित किया जा सकता है।
विद्युत आवेश संरक्षण नियम को अधिक समझने के लिए निम्न उदाहरणों पर ध्यान दीजिये –
- घर्षण द्वारा आवेशन प्रक्रिया में हमने देखा था की जब एक काँच की छड़ व रेशम के कपडे में घर्षण से पूर्व कोई आवेश उपस्थित नहीं था अर्थात दोनों वस्तुऐ उदासीन थी , लेकिन घर्षण प्रक्रिया के बाद काँच की छड़ धनावेशित तथा रेशम का कपड़ा ऋणावेशित (समान मात्रा में) हो जाता है , दोनों वस्तुओं पर आवेश स्वतः उत्पन्न नहीं हुआ है यह आवेश स्थानांतरण प्रक्रिया से आया है।
जब काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ा जाये तो काँच की छड़ से इलेक्ट्रॉन रेशम के कपड़े में स्थानांतरित हो जाता है , इलेक्ट्रॉन की अधिकता के कारण रेशम का कपड़ा ऋणावेशित हो जाता है , जितनी मात्रा में रेशम के कपड़े पर इलेक्ट्रॉन की अधिकता हुई है उतनी मात्रा में कांच की छड़ पर कमी हुई है जिससे काँच की छड़ पर धनावेश आ जाता है (समान मात्रा में )
परन्तु अगर पूरे निकाय के कुल आवेश की बात करे तो वह शून्य होगा अर्थात यदि रेशम के कपड़े पर -q आवेश उत्पन्न हुआ है तो कांच की छड़ पर +q आवेश उत्पन्न होगा और कुल आवेश = +q + (-q) = 0
अर्थात शून्य होगा।
- जब electron व पॉज़िट्रॉन आपस में टकराते है तो फलस्वरूप चुंबकीय विकिरण उत्पन्न होती है , चुंबकीय विकिरण पर आवेश शून्य होता है तथा प्रारम्भ में भी इलेक्ट्रॉन व पॉज़िट्रान दोनों का कुल आवेश शून्य होता है यहाँ आवेश संरक्षण गुणधर्म देखा जा सकता है।
(इलेक्ट्रॉन)e– + (पॉज़िट्रॉन)e+ → y (1.02 Mev)
ठीक इसी प्रकार चुंबकीय विकिरण द्वारा इलेक्ट्रॉन व पॉजिट्रॉन उत्पन्न किये जा सकते है जिसमे भी आवेश संरक्षित रहता है।
Y (1.02 Mev) → (इलेक्ट्रॉन)e– + (पॉज़िट्रॉन)e+
- नाभिक अभिक्रिया तथा रेडियो धर्मी क्षय में भी आवेश संरक्षण का नियम कार्य करता है।
92U238 → 90Th234 + 2He4 (अल्फा कण)
7N14 + 2He4 → 9F18 → 8O17 + 1H1