ac and dc current difference in hindi ac और dc धारा में अंतर क्या है , full form , ac and dc current in hindi : हम यहाँ बात करते है की एसी तथा डीसी करंट क्या है तथा इन दोनों में क्या अन्तर होता है।
AC current क्या है ?
सामान्यत: ac current को sine wave द्वारा दर्शाया जाता है।
जब current एक धनात्मक तथा एक ऋणात्मक चक्र पूरा कर लेती है तो इसे एक चक्र कहते है। इसमें हम देख सकते है की धारा का मान लगातार परिवर्तित हो रहा है तथा धारा की दिशा भी एक निश्चित समय बाद धनात्मक से ऋणात्मक अर्थात परिवर्तित हो रही है।
चक्र में धनात्मक तथा ऋणात्मक मान के अधिकतम मान को amplitude कहते है।
एक सेकंड में धारा कितने चक्र पूरे करती है उसे frequency कहते है।
एक चक्र पूरा करने में ac धारा को जितना समय लगता है उसे time period कहते है।
ट्रांसफार्मर की सहायता से इनके वोल्टेज को कम या अधिक किया जाता है , इस धारा को अधिक दूरी तक आसानी से भेजा जा सकता है।
हमारे घरों इत्यादि में हम ac current का प्रयोग करते है।
DC current क्या है ?
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में DC current का उपयोग किया जाता है।
AC और DC में अंतर (difference between AC and DC currents)
AC current
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DC current
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इसमें धारा की दिशा तथा परिमाण परिवर्तित होता रहता है।
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इसमें धारा की दिशा तथा परिमाण समान बना रहा है।
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इसे अल्टरनेटर की सहायता से produce किया जा सकता है।
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इसको commutator की सहायता से उत्पन्न किया जा सकता है।
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इसका उपयोग घरेलु , कारखानों इत्यादि में किया जाता है अर्थात मीटर में आने वाली धारा AC है।
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इसका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है।
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इसे अधिक दूरी तक भेजा जा सकता है।
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इसे अधिक दूरी तक नहीं भेजा जा सकता।
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DC को AC में परिवर्तित करने के लिए inverter का प्रयोग किया जाता है।
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AC को DC में बदलने के लिए rectifier का उपयोग किया जाता है।
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frequency 50Hz या 60Hz हो सकती है।
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frequency शून्य होती है।
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प्रत्यावर्ती वि. वा. बल : ऐसा वि.वा.बल जो समय के साथ परिमाण और दिशा दोनों में बदलता है तथा निश्चित समय के बाद पुनः उसी परिमाण से उसी दिशा में आरम्भ हो जाता है , प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल कहलाता है। इसी प्रकार ऐसी धारा जो समय के साथ परिमाण और दिशा दोनों में बदलती है तथा निश्चित समय के बाद फिर उसी परिमाण से उसी दिशा में आरम्भ हो जाती है , प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
हम प्रत्यावर्ती वि.वा.बल के तात्क्षणिक मान के लिए निम्नलिखित सूत्र स्थापित कर चुके है –
e = e0
sinwt समीकरण-1
यहाँ e = प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल का तात्क्षणिक मान
e0 = प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल का शिखर मान
शिखर मान = BAN.w
w = कुण्डली के घूर्णन का कोणीय वेग
समीकरण-1 से स्पष्ट है कि कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल e का मान समय t पर निर्भर करता है अर्थात समय परिवर्तन के साथ प्रेरित विद्युत वाहक बल बदलता रहता है और उच्च प्रत्यावर्ती वि.वा.बल उत्पन्न करने के लिए कुंडली में फेरों की संख्या (N) , तल का क्षेत्रफल (A) , चुम्बकीय क्षेत्र (B) और कुंडली के कोणीय वेग (w) के मान अधिक होने चाहिए।
समीकरण-1 से स्पष्ट है कि (wt = θ) –
(i) प्रारंभ में
θ = 0 तो e0 sin0 = 0
(ii) एक चौथाई चक्कर के बाद –
θ = 90 तो e0 sin90 = e0
(iii) आधे चक्कर के बाद –
θ = 180 तो e0 sin180 = 0
(iv) तीन चौथाई चक्कर के बाद –
θ = 270 तो e0 sin270 = –e0
(v) पूरे चक्कर के बाद –
θ = 360 तो e0 sin360 = 0
sinwt समीकरण-2
i = i0sinwt समीकरण-3
प्रत्यावर्ती धारा से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएं (some definitions related to alternating current)
प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान (root mean square value of alternating current)
, i2 , i3 . . . . in हो तो प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान
irms
= √(i12 + i22 + . . . . in2)/n समीकरण-1
प्रत्यावर्ती धारा का समीकरण –
i = i0sinθ
अत: वर्ग माध्य मूल मान की परिभाषा अनुसार –
irms
= √i2 का पूरे चक्र के लिए औसत मान
या
irms2 = पूरे चक्र के लिए i2 का औसत मान –
क्योंकि पूरे चक्र के लिए ज्या और कोज्या फलन का समाकलन शून्य होता है।
irms = 0.707
i0
इसी प्रकार प्रत्यावर्ती वोल्टता का वर्ग माध्य मूल –
erms = 0.707
e0
यदि प्रत्यावर्ती वोल्टता को V से व्यक्त करे तो –
Vrms = 0.707
V0
प्रत्यावर्ती धारा केवल ऊष्मीय प्रभाव प्रदर्शित करती है क्योंकि उष्मीय प्रभाव धारा के वर्ग पर निर्भर करता है। यदि प्रतिरोध R में प्रत्यावर्ती धारा बह रही है तो ऊष्मा उत्पन्न होने की दर –
P = i2R
हम जानते है कि प्रत्यावर्ती धारा का मान आवर्त रूप से बदलता रहता है , अत: ऊष्मा उत्पन्न होने की दर भी बदलती रहेगी। धारा के एक पूरे चक्र में ऊष्मा उत्पन्न होने की दर –
यहाँ